कैसी विडंबना है कि नेपाल में कम्युनिस्ट आंदोलन का काला इतिहास उसी दिन लिखा जाना था, जिस दिन कार्ल मार्क्स की 198वीं जयंती थी। गुरुवार, पांच मई को एक कम्युनिस्ट सरकार का तख्ता पलट दूसरे कम्युनिस्ट नेता द्वारा किया जाना लगभग तय था, लेकिन कहानी में अचानक ट्विस्ट आ गया। कैसे? किसके कहने पर इस पटकथा में परिवर्तन किया गया? इन सवालों के उत्तर ढूंढ़े जा रहे हैं।
गरमागरम चाय का प्याला एकीकृत नेकपा (माओवादी) के अध्यक्ष प्रचंड के मुंह तक आ चुका था, पर उसे वह पी नहीं पाए। तख्ता पलट की परिकल्पना 598 सदस्यीय संसद में सबसे ताकतवर 207
सदस्यों वाली नेपाली कांग्रेस के सभापति शेर बहादुर देउबा और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक मधेसी फ्रंट के बूते की गई थी।
83 सदस्यों वाले माओवादी, तीनों ताकतों को मिलाकर सदन में 324
सदस्यों के समर्थन का दम भर रहे थे। साल 2008 में राजतंत्र की समाप्ति के बाद के इन आठ वर्षों में नेपाल में आठ प्रधानमंत्री बदले गए। इसलिए यह सवाल तो बनता है कि क्या नेपाल एक 'बनाना रिपब्लिक' है?
शेर बहादुर देउबा तख्ता पलट की तकलीफ को सबसे बेहतर समझते हैं। चार अक्तूबर, 2002 को तत्कालीन नरेश ज्ञानेंद्र ने प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा का तख्ता पलट दिया था। शेर बहादुर देउबा दोबारा सरकार में आए, तो एक फरवरी,
2005 को ज्ञानेंद्र ने एक बार फिर उन्हें गद्दी से हटा दिया, और उसके छह माह बाद उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में डाल दिया। नेपाल में अब राजतंत्र नहीं है, इसलिए तख्ता पलट का तरीका बदल चुका है। प्रचंड यदि इसमें कामयाब हो जाते, तो 16 वर्षों में तख्ता पलट की यह तीसरी घटना होती।
लेकिन क्या प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली इसे रोकने के वास्ते कोई 'राजनीतिक फायरवॉल' तैयार कर चुके थे? संसद को संबोधित करते हुए पांच मई के उनके शब्द 'मैं सरकार भंग करना नहीं चाहता था' बहुत सारे संकेत दे जाते हैं। पूरे यकीन से नहीं कहा जा सकता कि संसद भंग करने के वास्ते उन्होंने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को राजी कर लिया था। नेकपा-एमाले नेता रह चुकीं विद्या देवी भंडारी, प्रधानमंत्री ओली की पहली पसंद थीं, इसीलिए उन्हें नेपाल की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का अवसर प्राप्त हुआ। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि राष्ट्रपति भवन के जरिये के पी शर्मा ओली सारा कुछ उलट-पुलट देना चाहते थे।
के पी शर्मा ओली के चाहने वालों को शक है कि यह सब कुछ नई दिल्ली के इशारे पर हो रहा था। ओली जिस तरह चीन से तोहफा लेकर आए, उसके साथ रेलवे से लेकर जल विद्युत परियोजनाओं तक करार किया, और पोखरा में एयरपोर्ट बनाने के काम में तेजी आई थी, उससे उनके मन का चोर बार-बार डरा रहा था कि बहुत दिनों तक वह 'हाइड ऐंड सीक (लुका-छिपी की) कूटनीति' नहीं कर पाएंगे। प्रचंड उनसे नाराज थे, तो उसकी वजह सिर्फ वे नौ बिंदु नहीं हैं, जिन पर सहमत होकर दोनों नेताओं ने पांच मई 2016 को दस्तखत किए हैं।
परदे के पीछे राजनीतिक फैसलों, और परियोजनाओं में हिस्सेदारी है, जिससे धन का आगमन होता है। प्रचंड इसलिए नाखुश थे, क्योंकि ओली सरकार उनके नक्शे-कदम पर नहीं चल रही थी। ओली सरकार पर 25 सांसदों वाली राजावादी पार्टी 'राप्रपा' सवार रही है। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता कमल थापा बीजिंग से लेकर नई दिल्ली तक की कूटनीतिक यात्राओं में सरकार के सारथी बने हुए थे, जो माओवादी नेतृत्व को कतई सुहा नहीं रहा था।
आज की हालत यह है कि नेपाल का कोई बड़ा नेता इलाज के भी अगर नई दिल्ली आ रहा हो, तो खबरें बननी शुरू हो जाती हैं कि वह कुछ जोड़-तोड़ के लिए गया है। बाज दफा ऐसा हुआ है कि दिल्ली से लौटने के बाद नेपाली नेता सबसे पहले मेडिकल कार्ड के जरिये सुबूत देते हैं कि वे वाकई बीमार थे, और इलाज के वास्ते वहां गए थे। हालत यह है कि एयरपोर्ट से लेकर अस्पताल के केबिन तक नेपाली नेताओं के खेल की खुफियागिरी होती है।
पांच मई को संसद में नूरा-कुश्ती के बाद तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष महंत ठाकुर जब नई दिल्ली के लिए उड़ान भर रहे थे, तब उनके सहयोगी सत्येंद्र कुमार मिश्रा को सफाई देनी पड़ी कि वह पांव दिखाने और 'हेल्थ चेकअप' के लिए नई दिल्ली जा रहे हैं। लेकिन महंत ठाकुर के 'चाहने वाले' मानने को तैयार नहीं हैं कि वह नई दिल्ली में किसी भारतीय नेता से मिलेंगे नहीं, वह भी ऐसे समय में, जब भारतीय संसद का सत्र चल रहा हो। गुरुवार को नेपाली संसद में पीएम ओली ने साफ कर दिया है कि वह संविधान का पुनर्लेखन नहीं करेंगे। ऐसे बयान के बाद तराई आंदोलन की दिशा तय करना आवश्यक हो जाता है।
पिछले महीने शेर बहादुर देउबा की पत्नी आरजू राणा देउबा की नई दिल्ली के एक अस्पताल में सर्जरी हुई थी। नेपाली कांग्रेस अध्यक्ष देउबा अपनी पत्नी को देखने के सिलसिले में राजधानी आए हुए थे। लेकिन प्रचंड के बाद नंबर दो की पोजीशन पर रहने वाले कृष्ण बहादुर महरा आखिर किस कारण से उसी दौरान नई दिल्ली आए? इन परिस्थितियों ने देउबा की दिल्ली यात्रा को सवालों की परिधि में खड़ा कर दिया।
ऐन वक्त पर शतरंज का पासा पलटने में क्या चीनी दूतावास की कोई भूमिका रही? पूरे यकीन से तो नहीं कहा जा सकता, पर
टेलीग्राफ नेपाल ने इसे 'चाइना इन्फ्लुएंस' माना है। इस वेब पोर्टल का कहना है कि महरा व देउबा नई दिल्ली से जैसे ही स्वदेश लौटे, उनसे चीनी दूतावास के कुछ अधिकारी मिले थे।
इसका यह मतलब क्यों न निकाला जाए कि नेपाली नेताओं की मॉनिटरिंग लगातार की जा रही थी। फिर भी, नेपाल में जो हुआ, ठीक हुआ। क्योंकि 'सांपनाथ' के बदले 'नागनाथ' को लाने से किसी का भला नहीं होना था। के पी शर्मा ओली को भी यह समझाना जरूरी था कि उनकी सरकार सिर्फ माओवादियों के सहारे नहीं, नेपाली कांगे्रस के बूते भी चल रही है। फिर भी बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी?
Also related to present political situation of nepal
essay on present political situation of nepal 2015
KEYWORDS: PARLIAMENT, OUR PARLIAMENT,
FREE CIVIL SERVICES STUDY MATERIAL, IAS STUDY MATERIAL, IAS COACHINGS ,RAU’S
,VAJIRAM AND RAVI, IAS Preparation, Free Study Materials and Notes for IAS
Preparation, Civil Services Preliminary Exam Paper, Download UPSC Civil Service
Material,
FREE CONTENT FOR HINDI MEDIUM, history
of constitution of india in hindi,FREE history of constitution of india in
hindi, constitution of india in
hindi,preamble of constitution of india in hindi ,articles of constitution of india
in hindi,complete indian constitution in hindi,schedules of indian
constitution,fundamental duties,directive principles of state policy,critical
analysis of directive principles of state policy
Vice President of India AND Attorney
General of India ,electoral
college, single ,transferable vote, House of Parliament, Council
of States, simple majority
Appointment of Attorney General of India ,Duties of
Attorney General of India, Various Commissions and Councils , Finance
Commission of India, Distribution
of net proceeds of taxes ,Planning Commission, National
Development Council, Public Service Commission , Union Public Service Commission, Election
Commission, Kartiya Lal Omar Vs R.K.
Trivdei (1985) , Election Symbols, Natural Justice, Service conditions of Chief Election
Commissioner, The role of the CEC in the removal of an Election Commissioner, Zonal
Council, Interstate Council , Sarkaria
Commission, Composition of the Council