Tuesday, 12 December 2017

नव लोक प्रबंधन

पिछले सौ वर्षों के इतिहास में लोक प्रशासन समय के साथ-साथ स्वयं में      परिवर्तनों को आत्मसात् करता हुआ विकसित होता रहा है। बदलते परिदृश्य के साथ-साथ सामाजिक और व्यावहारिक विज्ञान के क्षेत्र में हुए शोध कार्यों ने यद्यपि व्यवस्था का संवर्द्धित किया है परन्तु मूलभूत सिद्धान्त एक ही रहे हैं। समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप लोक प्रशासन प्रगति को प्राप्त नहीं कर सका है। आज का समाज संक्रमणकाल से गुजर रहा है। बाजार और मुद्रा, राजनीति और जनता का वैश्वीकरण भयावह संदिग्धता अस्पष्टता से ओत-प्रोत है। वैश्वी एकीकरण बनाम राष्ट्रीय संप्रभुता के वाद-प्रतिवाद का विश्लेषण समय का प्रचलन है।
1980 के शुरूआत से सरकारी संस्थाओं की प्रकृति, उनके कार्य और व्यवहार विश्व भर में अप्रत्याशित रूप से बदलते जा रहे हैं। इस प्रकार के परितर्वनों के प्रेरक तत्व हैं -
(प) तकनीकी खोज
(पप) राज्य और राज्य संगठनों की भूमिका के निदर्शनात्मक (च्ंतंकपहउंजपब) पुनर्निश्चयन (तंकमपिदपजपवद) का प्रयास।
(पपप) संधि आधारित अधिराष्ट्रीय संस्थानों का विकास।
(पअ) अपने प्रतियोगी देशों के तीव्र आर्थिक विकास से उत्पन्न अपने राष्ट्रीय संप्रभुता/सुरक्षा के संदर्भ में कुछ राष्ट्रों द्वारा खतरा महसूस करना।
उपर्युक्त प्रेरक तत्वों के साथ परिवर्तनशील परिस्थिति में लोक प्रशासन के एक नए प्रतिमान ‘नव लोक प्रबंधन’ का उदय हुआ है। यह नया प्रतिमान लोक संगठनों के उद्यमशील भूमिका पर बल देता है। नए प्रतिमान के विकास के साथ यह अनुभव किया गया है कि आधुनिक विश्व की बढ़ती जटिलताओं के साथ राज्य की शक्ति समाज की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान में सीमित होती जा रही है। समय के बढ़ते क्रम में सरकार ने स्वयं अनेक उत्तरदायित्व ले लिए हैं जिसे समाज के साथ बाँटा जा सकता है। अपनी दक्षता और कुशलता बनाए रखने के लिए उसे स्वयं को सीमित करना चाहिए।
इस तरह यह नया प्रतिमान नए परिवर्तनों का समर्थन करता है। इन अपेक्षित परिवर्तनों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है - (प) व्यापक परिवर्तन (डंबतव बींदहमे) तथा सूक्ष्म परिवर्तन (डंबतव बींदहमे)। व्यापक परिवर्तन लोक संगठनों की संरचना और कार्य में परिवर्तन से संबंधित है जबकि सूक्ष्म परिवर्तन लोक संगठनों के प्रदर्शन सुधार के लिए उनके कार्यों में अधिक से अधिक प्रबंधकीय तत्वों को लाने से संबंधित है। दोनों ही प्रकार के परिवर्तनों का मूल उद्देश्य लोक संगठन को उपभोक्ता केन्द्रित, बहिर्दृष्टियुक्त और लागत-सचेतन बनाना है। इसलिए नव लोक प्रबंधन तीन श्म्श् की अवधारणा को कार्यान्वित करना चाहता है - दक्षता (मिपिबपमदबल)ए प्रभावशीलता (मिमिबजपअमदमेे) और मितव्ययिता (म्बवदवउल)। इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं -
1- प्रबंधन निष्पादन मूल्यांकन तथा दक्षता
2- सार्वजनिक अधिकारीतंत्रें को उन अभिकरणों को विभाजित करना जो उपभोक्ता-भुगतान आधार (नेमत-चंल इेंपे) पर परस्पर कार्य करेंगे।
3- अर्ध-बाजार (ुनेंप-उंतामज) का उपयोग तथा प्रतिस्पर्धा के लिए ठेके पर देना।
4- लागत-कटौती लोक प्रशासन को कम खर्चीला बनाने के लिए।
5- प्रबंधन की एक शैली जो अन्य विषयों के साथ-साथ उत्पादन लक्ष्य, अल्पावधि ठेके, आर्थिक प्रोत्साहन तथा प्रबन्धन की स्वतंत्रता पर बल देती है।
अपनी उपर्युक्त विशेषताओं के साथ नव लोक प्रबंधन ने राज्य के क्रियाकलापों पर सशक्त प्रभाव बनाया है और लोकप्रिय नई तकनीकों के मजबूत अभिव्यक्ति का सरकार की योग्यता/क्षमता पर गहरा और दीर्घकालीन प्रभाव पड़ेगा। विशेषकर सेवा प्रदान करने और संसाधन एकत्रीकरण में। यद्यपि ‘नव लोक प्रबंधन’ की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका अभी तक सहर्ष  प्रयुक्त नहीं है (वहाँ ‘रि-इन्वेंटिंग’ और ‘उत्तर नौकरशाही सुधार प्रतिमान’ शब्द बहुतायत में प्रयुक्त होते हैं) तथापि यूरोप में प्रशासनिक संरचना और संस्कृति को पुनर्पारिभाषित करने के प्रयास को वर्णित करने के लिए इसका व्यापक प्रयोग हो रहा है। ऑस्वार्न और गैवलर ने नव लोक प्रबंधन के दस लक्ष्य या सिद्धान्त बताए हैं। ये हैं -
1- उत्प्रेरक सरकार (ब्ंजंसलजपब ळवअजण्): सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और स्वयंसेवी संस्थाओं को उत्प्रेरित (ब्ंजंसलेंजपवद) करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए तथा उन्हें सामाजिक समस्याओं के समाधान में लगाना चाहिए एवं स्वयं को मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।
2- समुदाय स्वामित्व सरकार (ब्वउउनदपजल-वूदमक ळवअजण्): सरकार को नागरिकों, परिवारों और समुदायों को शक्ति सम्पन्न बनाना चाहिए जिससे वे अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान कर सकें।
3- प्रतियोगी सरकार (ब्वउचमजमजपअम ळवअजण्): सरकार को विभिन्न उपलब्धकर्त्ताओं के मध्य प्रतियोगिता की भावना विकसित करनी चाहिए। इससे लागत कम होगी और प्रतियोगिता बढे़गी।
4- लक्ष्य निर्देशित सरकार (डपेेपवद क्तपअमद ळवअजण्): सरकार को लक्ष्य द्वारा निर्देशित होना चाहिए न कि नियमों व विनियमों द्वारा।
5- प्रतिफल उन्मुखी सरकार (त्मेनसज वतपमदजमक ळवअजण्): सरकार को लक्ष्य उपलब्धि को बढ़ावा देकर प्रतिफल पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और प्रदर्शन का मापन करना चाहिए।
6- उपभोक्ता निर्देशित सरकार (ब्वदेनउमत क्तपअमद ळवअजण्): सरकार को ग्राहक के प्रति ध्यान केन्द्रीकृत करना चाहिए न कि नौकरशाही के प्रति। ग्राहक को विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए तथा उसकी अभिरूचि का सर्वेक्षण करना चाहिए और उन्हें सुझाव देने को प्रेरित करना चाहिए।
7- उपक्रम सरकार (म्दजमतचतपेपदह ळवअजण्): सरकार को राजस्व प्राप्त करने पर ज्यादा व व्यय पर कम बल देना चाहिए।
8- पूर्वाभासी सरकार (।दजपबपचंजवतल ळवअजण्): सरकार को समस्याओं की पहचान और उसकी रोकथाम करने पर ज्यादा बल देना चाहिए न कि उसके बढ़ने या उसके इलाज पर।
9- विकेन्द्रीकृत सरकार (क्मबमदजतंसपेमक ळवअजण्): सरकार को प्राधिकार विकेन्द्रीकृत करना चाहिए।
10- बाजार उन्मुखी सरकार (डंतामज वतपमदजमक ळवअजण्): सरकार को नौकरशाही तंत्र की अपेक्षा बाजारी तंत्र को अपनाना चाहिए।
उपर्युक्त लक्ष्यों के साथ विश्व के विभिन्न देशों में ‘नव लोक प्रबंधन’ की अवधारणा को लागू किया जा रहा है। अनेक पश्चिमी देशों में नव लोक प्रबंधन तकनीक के कार्यान्वयन ने लोक क्षेत्रें के एजेंसीकरण बाजारीकरण और निजीकरण में नाटकीय वृद्धि की है। हालाँकि यह भी सही है कि यह सभी मामलों के साथ नहीं है। आस्टेªलिया का अनुभव ब्रिटेन से भिन्न रहा है तो खुद ब्रिटेन का अन्य यूरोपीय संघीय देशों, कनाडा या अमेरिका से भिन्न रहा है। नव लोक प्रबंधन एजेंसीकरण को बढ़ावा देकर लोक क्षेत्र को लचीला, अस्थिर और अल्प ढाँचागत बनाना चाहता है। वास्तव में लोक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बीच की सीमाएँ अनुबंधीकरण और संविदाकार प्रमुख/एजेंट संबंधों की उपच्छाया (च्मदनउइतं) में समाविष्ट हो गई हैं। आज इस अवधारणा की परिभाषा को निरंतर परिस्कृत और अद्यतन बनाया जा रहा है। नौकरशाही नियमों और पदसोपानों में कमी, बजट पारदर्शिता तथा आगत और निर्गत के लागत की पहचान, संविदा संजाल का उपयोग, संगठनों और उनके कार्यों का असंकलन (कपेंहहतमहंजम), प्रबंधक प्रतियोगिता बढ़ाना और उपभोक्ता की शक्ति बढ़ाना आज नव लोक प्रबंधन की माँग है। आधुनिक निजी क्षेत्र व्यवसाय तकनीकों कीदक्षता माँग तथा लागत-कटौती तर्क और नव लोक प्रबंधन की सहवर्ती (बवदबवउपजंदज) गतिशीलता या गतिकी ने बाजारीकरण को और अधिक बढ़ाया है तथा अब लोक सेवा और वस्तुओं की उपलब्धता विश्व बाजार में कार्यरत बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से ही होती है। अतः यह कहा जा सकता है कि नव लोक प्रबंधन ने अपने चपटे (सिंजजमदमक) पदसोपान, संविदा पर विश्वास, व्यक्तिगत पहल और निजी क्षेत्र के लिए गए प्रबंधकीय तकनीक से पुरानी पद्धति की अक्षमता और अप्रभावशीलता को मिटा दिया जो विधि-तार्किक नियमों पर केन्द्रित होती थी। हालाँकि यहाँ स्पष्ट करना उचित होगा कि नव लोक प्रबंधन के समर्थकों ने यह भुला दिया कि जटिल और प्रायः बोझिल पदसोपानों की स्थापना, भाई-भतीजावाद, अन्याय, अनुत्तरदायित्व और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ही हुआ था।
पुरातन नौकरशाही के नव लोक प्रबंधन द्वारा नियमित व स्थिर प्रतिस्थापन के साथ व्यवसायियों तथा विद्वतपरिषद् द्वारा सरकार के केन्द्रीय कार्य की परिभाषा माँगी जा रही है। नीति-निर्माण प्रक्रियाओं में वरिष्ठ कैरियर अधिकारियों की वास्तविक आगत भी कम हो रही है। उनकी भूमिका और सलाह अमेरिकी राष्ट्रपति रीगन, बुश और लींटन के समय में अतिअनिश्चित बनी रही। चूँकि नव लोक प्रबंधन बाजार उदार नीति विश्लेषण का अनुकूलित, गैर राजनीतिक रूप है, इसलिए ज्यादा तकनीकपूर्ण, सहमतिजन्य और जातीय (हमदमतपब) है। इस उपागम की छाप नीति और प्रशासकीय समाधान का मिश्रण है जिसमें असंकलन (कपेंहहतंहंजपवद), प्रतियोगिता और उद्यीपतीकरण पर बल दिया जाता है।
निष्कर्ष: नव लोक प्रबंधन की अद्यतन अवधारणा सरकार की अधिकतम भूमिका और उसके केन्द्रीय विशिष्ट कार्यों को नागरिकों की ओर से एक अभिज्ञ या समझदार उपभोक्ता के रूप में पहचान रही है। साथ-ही-साथ यह अवधारणा जनहित को अधिकतम बनाने हेतु निजी क्षेत्र द्वारा आपूर्ति कराए जा रहे सेवाओं के क्रेता के रूप में भी प्रस्तुत कर रही है। लेकिन उदार लोकतांत्रिक सरकारों के ये नए रूप उनकी मूल व केन्द्रीय योग्यता को ही समाप्त कर देंगे और एक खोखला या निरर्थक राज्य का उदय हो जाएगा यदि कुछ विशिष्ट कदम न उठाए गए या कोई मार्गदर्शिका नहीं तैयार की गई। 

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