लोक प्रशासन पर विल्सन के विचार
वुडरो विल्सन को लोक प्रशासन के क्षेत्र में एक प्रारंभिक अथवा बीजीय (ैमउपदंस) व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। अपने प्रसिद्ध लेख ‘द स्टडी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन’ के माध्यम से उन्होंने न सिर्फ प्रशासन के वैज्ञानिक अध्ययन के प्रति रूचि जागृत की बल्कि प्रशासन के वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता पर भी बल दिया। उनका लेख सरकार के व्यवहार को विश्लेषणात्मक अध्ययन और सामान्यीकरण के क्षेत्र के रूप में रेखांकित करने वाला युगान्तकारी लेख था और माना जाता है कि लोक प्रशासन की खोज के विषय के रूप में शुरूआत यहीं से हुई। प्रशासन के अध्ययन के बारे में यह लेख उन्होंने उस वक्त लिखा जब उन्हें अमरीकी प्रशासन का कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं था। फिर भी उनके लेख का ‘अर्थपूर्ण दूरगामी प्रयास’ माना गया है।
वुडरो विल्सन ने प्रशासन संबंधी अपने विचारों का प्रतिपादन करते हुए उन कारणों की चर्चा की जिसके कारण लोक प्रशासन एक अध्ययन और जाँच (प्दअमेजपहंजपवद) क्षेत्र के रूप में विलम्ब से उभरा जबकि राजनीति विज्ञान, जिसका लोक प्रशासन उत्पाद या फल है, का उदय 2200 वर्ष पूर्व हुआ था। प्रशासन संबंधी अपने विचारों के प्रतिपादन में विल्सन के विचार पर वाल्टर वागेहॉट के विचारों का व्यापक प्रभाव पड़ा हालाँकि विल्सन का राजनीतिक दर्शन सबसे अधिक एडमंड बुर्के के विचार से प्रभावित हुआ था। जान हापकिन्स विश्वविद्यालय के प्रो- रिचर्ड ने विल्सन को प्रशासनिक अध्ययन के लिए प्रेरित और प्रभावित किया।
प्रशासन के सामान्य क्षेत्र से जनमानस को अवगत कराते हुए विल्सन ने अपने लेख में स्पष्ट किया कि प्रशासन के अध्ययन का विकास समाज में बढ़ती हुई जटिलताओं, राज्य के कार्यों में बढ़ोतरी और लोकतांत्रिक ढाँचों में सरकारो के विकास के परिणामस्वरूप हुआ। कार्यों का बढ़ता हुआ बोझ यह सोचने को विवश किया कि निरन्तर बढ़ते और जटिल होते कार्यों को किस प्रकार और किन दिशाओं में किया जाए। इन्हीं समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव देते हुए विल्सन ने कहा कि सरकारों में सुधार की आवश्यकता है और विशेषतौर पर प्रशासनिक क्षेत्र में। प्रशासनिक अध्ययन का उद्देश्य यह खोजना था कि सरकार सही तरह से और सफलतापूर्वक क्या कर सकती है और किस प्रकार इन कार्यों को सर्वाधिक सम्भव दक्षता तथा न्यूनतम सम्भावित धन और ऊर्जा की लागत से कर सकती है। इस अध्ययन का दूसरा उद्देश्य था कार्यकारी पद्धतियों को अनुभवजन्य (म्उचपतपबंस) प्रयागों तथा असमंजसता से बचाना और उन्हें स्थायी सिद्धान्तों की जड़ में छिपे हुए आधारों पर स्थापित करना। इसी कारण विल्सन ने कहा कि प्रशासन का एक विज्ञान होना चाहिए जो सरकार के मार्ग को शक्तिशाली बनाए, उसके कार्य कुछ कम सरकारी बनाए, उसके संगठन को शुद्धता और मजबूती दे तथा कर्त्तव्यपरायणता के साथ उसके कर्त्तव्यों को पूर्ण करे।
विल्सन के अनुसार प्रशासन सरकार का सर्वाधिक स्वभाविक और सुस्पष्ट अंग है। प्रशासन कार्यरत सरकार है। यह कार्यकारी है, क्रियात्मक है और सबसे ज्यादा दृष्टिगोचर अंग है सरकार का। लेकिन चूँकि ‘कार्यरत सरकार’ राजनीति के विद्यार्थियों को प्रेरित नहीं करती इसलिए किसी ने भी प्रशासन का विधिवत अध्ययन आवश्यक नहीं समझा। इन्हीं कारणों से विल्सन ने प्रशासन के पृथक अध्ययन और राजनीति से प्रशासन के अलगाव पर बल दिया। उनका यह विश्वास था कि प्रशासन का क्षेत्र व्यवसाय का क्षेत्र है। इसलिए राजनीति के कार्यकर्ताओं को प्रशासन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। शुद्ध प्रशासनिक कार्यों में किया गया राजनीतिक हस्तक्षेप एक भयानक पाप है, विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों में। विल्सन का मानना था कि लोक प्रशासन के विषय संविधान निर्माताओं के विषय से भिन्न होते हैं। संविधान बनाने से कहीं ज्यादा कठिन उसे चलाना होता है। उनके अनुसार संविधान में निहित सिद्धान्त ऐसे अवश्य होने चाहिए जो प्रशासनिक प्रक्रियाओं और कार्यों को सरल बना सकें। प्रशासनिक सिद्धान्त और विचारधारा के साथ सांविधानिक मूल्य का सामंजस्यपूर्ण होना चाहिए। हालाँकि यह सर्वदा सरल नहीं होता। अपने इस राजनीति प्रशासन द्विभाजन संबंधी विचारों के प्रतिपादन में विल्सन पूर्ण स्पष्टता प्रदर्शित नहीं कर पाते क्योंकि कई स्थानों पर वह इन दोनों के बीच निर्भरता और घनिष्ठ संबंध दर्शाने का भी प्रयत्न करते हैं। उनके इस विचार पर आगे के विचारकों के विचार भी भिन्न हैं। जहाँ एक तरफ मोशर का मानना है कि विल्सन ने राजनीति-प्रशासन द्विभाजन पर सबसे शक्तिशाली वक्तव्य दिया वहीं दूसरी ओर रिग्स के अनुसार विल्सन को कोई भ्रम नहीं था कि प्रशासनिक विकास राजनीतिक शून्य में नहीं हो सकता क्योंकि प्रशासनिक कार्यों को राजनीतिक साधनों द्वारा बनाई नई सामान्य नीतियों के कार्यान्वयन के सिवाए देखना मुश्किल है।
विल्सन के अनुसार प्रशासन के विज्ञान में धीमी गति से प्रगति का कारण यू-एस-ए- में व्याप्त लोक संप्रभुता थी। उनकी धारणा थी कि राजतंत्र की तुलना में लोकतंत्र में प्रशासन को संगठित करना कठिन कार्य है। जब भी लोकमत सरकारी सिद्धान्तों पर प्रभावी होंगे प्रशासनिक सुधार की गति धीमी होगी और अवांछनीय समझौते करने होंगे। उनके अनुसार जब तक किसी देश के संविधान से खिलवाड़ (पिदबमतमसल) बन्द नहीं होता, तब तक प्रशासन पर ध्यान केन्द्रित करना बहुत मुश्किल है।
लोक प्रशासन की विषय-वस्तु और विशेषताओं की चर्चा करते हुए विल्सन ने लोक प्रशासन को पारिभाषित किया। उनके अनुसार लोक प्रशासन विधि का विस्तृत और व्यवस्थित प्रयोग है। समान्य विधि का हर विशिष्ट प्रयोग प्रशासन का कार्य है। उनके अनुसार सरकारी कार्यवाही की विस्तृत योजनाएँ प्रशासनिक नहीं होती हालाँकि ऐसी योजनाओं का विस्तृत प्रयोग प्रशासनिक अवश्य होता है। यह भिन्नता सामान्य योजनाओं और प्रशासनिक माध्यमों के बीच का है। विल्सन लोक प्रशासन में प्रबंधकीय दृष्टिकोण के महान समर्थक थे, इसके बावजूद कि उनकी यह मान्यता थी कि प्रशासनिक सिद्धान्तों को उन मूल्यों, विचारों और प्रतिमानों के अनुरूप होना चाहिए जिन पर संविधान आधारित है। उनके अनुसार प्रशासन के अध्ययन को व्यवसाय प्रशासन के केन्द्रीय तत्वों यथा दक्षता, मितव्ययिता और प्रभावशीलता से संबंधित या सदृश होना चाहिए। लोक प्रशासन के कार्य और निजी प्रशासन के कार्य दोनों एक-दूसरे के समान हैं। अतः दोनों में कोई मौलिक अन्तर पर दृष्टिकोण परिवर्तन उचित नहीं।
विल्सन यू-एस-ए- में लोक सेवा सुधार के अग्रणी विचारकों में एक थे। उन्होंने राजनीतिक तटस्था और पेशेवर योग्यता रखने वाले लोक सेवा समूह का दृष्टिकोण प्रतिपादित किया। यह कहा जा सकता है कि विल्सन के मन में एक आधुनिक कार्मिक प्रशासन का बौद्धिक आधार था। यों तो विल्सन का विश्वास था कि प्रशासक सिद्धान्ततः राजनीतिक प्रक्रियाओं में शामिल नहीं होते फिर भी वे ऐसे नौकरशाही अभिजन वर्ग या बुर्जुआ वर्ग का विरोध करते थे जो लोकतांत्रिक नियंत्रण के अधीन न हों। उनके अनुसार भर्ती के तरीकों में किए गए सुधार को कार्यकारी कार्यों और कार्यकारी संगठनों और उनकी कार्यवाही की पद्धतियों पर भी लागू किया जाना चाहिए। निकोलस हेनरी ने कहा है कि विल्सन ने लोक कर्त्तव्य के नैतिक अर्थ को लोकसेवा की अवधारणा की सीमा से अलग हटकर विस्तार देने का प्रयास किया और वह भी लोक प्रशासन के सम्पूर्ण क्षेत्र में।
समाज में प्रशासन की बढ़ती महत्ता से प्रेरित होकर विल्सन ने प्रशासकों के एक योग्य व दक्ष समूह को तैयार करने के लिए औपचारिक प्रशासनिक व्यवस्था की आवश्यकता पर बल दिया। उनके अनुसार प्रशिक्षण पाठ्यक्रम को प्रशासनिक सिद्धान्तों और तकनीकों के स्व-प्रमाणित सत्य के अध्ययन और प्रयोग पर बल देना चाहिए।
विल्सन का विचार था कि तुलनात्मक पद्धति प्रशासन के क्षेत्र से ज्यादा कहीं और सहायक नहीं हो सकती। उन्होंने दार्शनिक पद्धति को अस्वीकार कर ऐतिहासिक और तुलनात्मक पद्धति पर बल दिया और कहा कि सरकारों के तुलनात्मक अध्ययन के बगैर इस गलतफहमी से मुक्ति नहीं मिल सकती कि लोकतांत्रिक और अन्य राज्यों में प्रशासन के आधार अलग-अलग होते हैं। किसी पद्धति या व्यवस्था की कमजोरियों, गुणों और विशेषताओं को अन्य व्यवस्थाओं से तुलना किए बगैर समझना सम्भव नहीं। यह डर दूर करते हुए कि तुलनात्मक पद्धति से विदेशी पद्धति के आयात का मार्ग प्रशस्त होगा, विल्सन ने कहा कि ‘‘अगर मैं किसी खूनी को चाकू तेज करता हुआ देखूँ तो मैं खून करने के उसके सम्भावित उद्देश्य को लिए बगैर उसके चाकू तेज करने की कला सीख सकता हूँ।’’ अतः यूरोपीय एकतंत्रें से दक्ष प्रशासनिक पद्धति को उनके एकतंत्रीय भावना और लक्ष्य को स्वीकार्य किए बगैर सीखा जा सकता है और निश्चित रूप से सीखा जाना चाहिए। अगर लोकतंत्र को इतना योग्य और ताकतवर बनाता है कि वह आन्तरिक और बाह्य बलों से प्राप्त अराजकता की चुनौतियों का सामना कर सके।
निष्कर्षतः लोक प्रशासन संबंधी विल्सन के चिंतन को सारांश रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है -
(प) समाज कल्याण और हित के लिए प्रशासन की महत्ता लगातार बढ़ रही है।
(पप) प्रशासन को ‘विज्ञान’ के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
(पपप) मनुष्य प्रशासनिक सिद्धान्तों और तकनीकों को सीख सकता है और उसे प्रशिक्षित किया जा सकता है।
(पअ) प्रशासन के कार्य निष्पक्ष, विस्तृत और प्रबंधनीय हैं।
(अ) ऐसी प्रशासनिक प्रक्रियाएँ और तकनीक हैं जो सार्वभौमिक रूप से प्रयोग योग्य हैं और इस तरह से सभी आधुनिक सरकारों के लिए समान (बवउउवद) हैं।
(अप) प्रशासन ज्ञान का एक क्षेत्र है जिसे महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में प्राप्त किया जा सकता है।
(अपप) प्रशासन राजनीति से पृथक है।
(अपपप) प्रशासनिक अध्ययन में दूसरी सरकारों का अनुभव भी शामिल किया जाना चाहिए।
विल्सन के विचारों की आलोचना
प्रथमतः लोक प्रशासन का अध्ययन विल्सन के विचार के आने के पहले से ही हो रहा था। यह विषय 1880 के दशक में यूरोप में काफी विकसित था और इस विषय पर यूरोपीय साहित्य का ही इस्तेमाल अमरीकी विद्वानों ने किया। लोक प्रशासन का शैक्षणिक क्षेत्र फ्रांस में 1812 से 1859 के बीच परिपक्व अवस्था में था। विल्सन ने खुद स्वीकार किया है कि उनके राजनीति-प्रशासन द्विभाजन संबंधी विचार का स्रोत ब्लंशली था। साथ ही साथ यह भी एक तथ्य है कि विल्सन के लेख को 1930 के दशक के पूर्व लगभग किसी भी विद्वान ने नहीं पढ़ा था।
द्वितीयतः विल्सन प्रतिपादन राजनीति-प्रशासन द्विभाजन संबंधी विचार उसके जर्मनी के स्रोतों के गलत अध्ययनों पर आधारित था। इस कारण वह यूरोपीय वृतांत से मौलिक रूप से भिन्न था। अपनी इसी त्रुटि को महसूस करते हुए विल्सन ने अपने लेख के प्रकाशन के तीन वर्ष के भीतर ही राजनीति-प्रशासन द्विभाजन संबंधी विचार का परित्याग कर दिया।
तृतीयतः विल्सन का लेख अतिसामान्य, अति व्यापक और अति अस्पष्ट था। विल्सन कई मुद्दों पर असमंजसता की स्थिति में थे और उन्होंने उत्तर देने की अपेक्षा प्रश्न ज्यादा खड़े किए। वह यह स्पष्ट करने में विफल रहे कि प्रशासन के अध्ययन में क्या शामिल हो या फिर राजनीतिक क्षेत्रें और प्रशासन के बीच सही संबंध क्या हो या प्रशासन विज्ञान कभी प्राकृतिक विज्ञान की तरह विज्ञान बन पाएगा अथवा नहीं। ऐसी स्थिति में यह आशंका उत्पन्न होती है कि क्या विल्सन स्वयं ठीक से यह जानते थे कि लोक प्रशासन वास्तव में क्या है। हाल के शोध कार्यों ने इस धारणा पर भी प्रश्न उठाए हैं कि विल्सन ने ही लोक प्रशासन को शैक्षणिक विषय बनाया। बान रिपर ने तो अमेरिकी प्रशासनिक अध्ययन के पहले विवरणों को अन्य जन्मदाताओं की उपज मानकर विल्सन और उनके लेख को इससे संबंधित किसी भी जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया है।
उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद अंततः यह कहना अनुचित होगा कि लोक प्रशासन के क्षेत्र में विल्सन की भूमिका शून्य थी। वे अमेरीकी इतिहास के उदार विचारक थे और उदार पूंजीवाद के प्रति प्रतिबद्ध थे। उन्होंने अपना लेख उस वक्त लिखा जब अमेरीका ने पेशेवर विशेषज्ञ लोक सेवा के विचार को खोजा ही था और 1883 में पेंडेल्टन एक्ट कानून का रूप लिया था। उस वक्त अमेरीका को प्रासंगिक अनुभवों की खोज में बाहरी देशों की ओर देखना आवश्यक था और इस खातिर विल्सन ने तुलनात्मक अध्ययन की इच्छा व आवश्यकता पर बल दिया। वे एक आधुनिकीकर्त्ता (उवकमतदपेमत) के रूप में उभरे। वे चाहते थे प्रशासन में अभिरूचि बढ़ाना और उसे न्यायोचित ठहराना। अपने ‘सबसे विशिष्ट’ लेख के माध्यम से उन्होंने न केवल ‘‘प्रशासन के विचार’’ प्रस्तुत किए बल्कि लोक प्रशासन को एक सामान्य विषय के तौर पर स्थापित भी किया।
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