Tuesday, 16 August 2016

Unification of Germany in Hindi

जर्मनी का एकीकरण
जर्मन राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमि
Úांसीसी क्रांति और नेपोलियन की सेना द्वारा होली रोमन साम्राज्य को नष्ट किए जाने से यूरोप और जर्मन राज्यों के राजनीतिक मानचित्रा के हुए सरलीकरण से लगभग 18वीं शाब्दी के अंत में आधुनिक जर्मन राष्ट्रवाद का मार्ग प्रशस्त हुआ। हालांकि आधुनिक राष्ट्रवाद का संबंध पूंजीवाद और बुर्जुआ उदारवाद के उदय के साथ जोड़ा जाता है जिसमें राष्ट्रों की भाषाई या जातीय परिभाषा निर्धारित की गई परंतु राट्रवाद की शुरूआत कापफी पहले हो चुकी थी।
आरंभिक मध्य काल के दौरान टकराव और मेल की प्रक्रिया द्वारा कई जर्मन कबीले और सेल्ट तथा स्लाव एक सूत्रा में पिरो दिए गए और उन्हें जर्मन माना जाने लगा। 19वीं शताब्दी के बाद से ईस्टर्न Úैंक्स के साम्राज्य में रहने वाले बड़े कबीलों को ‘जर्मन’ के रूप मे जाना गया। रोमन और स्लावियाई भाषा समूहों से इन्हें अलग चिन्हित करने के लिए ऐसा किया गया। रोमन और स्लावियाई भाषा समूहों से इन्हें अलग चिन्हित करने के लिए ऐसा किया गया। 1000 ई. के बाद जर्मन शब्द का विस्तार हुआ और यह जर्मन राष्ट्र की जातीयता का प्रतीक बन गया। जर्मन राष्ट्र का इतिहास प्रथम सहस्त्राब्दी के उत्तरार्ध में आरंभिक सामंती युग से शुरू होता है। मध्यकाल में राष्ट्रीय भावना के कुछ ज्यादा प्रमाण नहीं मिलते हैं, हालांकि कुछ इतिहासकारों ने बड़े राजतंत्राीय राज्यों में सामंती राष्ट्रवाद का विकास दिखाया है। मध्यकालीन शाही विचार, जिस पर जर्मन साम्राज्य आधारित था, एक सार्वभौम विचार था और इस अवधि में पूरब में जर्मन औपनिवेशीकरण और आक्रमण धार्मिक उद्देश्यों से नियंत्रित होते थे।
8वीं और 9वीं शताब्दी में जर्मन भाषा के लिए इस्तेमाल होने वाला ड्यूश शब्द 11वीं शताब्दी में जर्मन भाषी समूहों और उनके क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल होने लगा। 1455 में प्राप्त टैसीट्स जर्मेनिया की पांडुलिपि तथा जर्मन पुनर्जागरण के अन्य रचनाकारों ने राष्ट्रवाद की एक नई चेतना पैदा की, जिसे ईसाई धर्म और रोमन लोगों से भी पुराना और श्रेष्ठ समझा गया। प्रोटेस्टेंटों द्वारा बाइबल के जर्मन भाषा में अनुवाद से आधुनिक जर्मन का विकास हुआ परंतु जर्मन राष्ट्रवाद का विकास मुख्यतः जर्मन स्वच्छंदतावाद के साथ शुरू हुआ। जर्मनी में पुनर्जागरण और धर्मसुधार आंदोलन मुख्यतः विद्वानों और धर्म शास्त्रिायों तक सीमित थे, अतः पश्चिमी यूरोपीय देशों की तरह राजनीति और समाज को या विश्व साम्राज्य के मध्ययुगीन शास्त्रिायों तक सीमित थे, अतः पश्चिमी यूरोपीय देशों की तरह राजनीति और समाज को या विश्व साम्राज्य के मध्ययुगीन विचार को समाप्त करने में ये आंदोलन असपफल रहे। जर्मन राष्ट्रवाद 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ और समुदाय का ‘प्राकृतिक’ गठजोड़ तथा सगोत्राता इसका आधार बना, यह किसी अनुबंध या नागरिकता अी अवधारणा पर आधारित नहीं था। रूसियों की तरह जर्मन राष्ट्रवाद भी राष्ट्र की ‘आत्मा’ या ‘लक्ष्य’ से पूर्वाग्रहग्रस्त था क्योंकि इसका संबंध सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ से नहीं था और नीति निर्माण तथा सरकार की अपेक्षा शिक्षा और अधिप्रचार के द्वारा इसका माहौल बनाया गया था।
मार्टिन लूथर द्वारा पोप की सत्ता को अस्वीकार किए जाने से राष्ट्रीय चेतना का आधार निर्मित हुआ। 1486 में पहली बार जर्मन राष्ट्र के लिए पवित्रा रोमन साम्राज्य अभिव्यक्ति का प्रयोग किया गया और 16वीं शताब्दी में इसका आम प्रयोग होने लगा। सबसे पहले लूथर, उलरिख वाॅन हटन और मानवतावादियों ने ‘जर्मन राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग किया। हालांकि जर्मन स्वच्छंदतावादियों और बु(िजीवियों ने ‘सांस्कृतिक राष्ट्र’ ;ब्नसजनतम छंजपवदद्ध की अवधारणा के आधार पर राष्ट्रवाद की जातीय और भाषाई परिभाषा विकसित की परंतु राष्ट्र-राज्य के निर्माण की वास्तविक प्रक्रिया जटिल ऐतिहासिक वास्तविकताओं से होकर गुजरी।
राजनीतिक पृष्ठभूमिµनेपोलियन के यु(ों की समाप्ति के समय जर्मनी का राजनैतिक विखंडीकरण अंशतः समाप्त हुआ। होली रोमन साम्राज्य की समाप्ति के बाद संप्रभु जर्मन राज्यों की संख्या 300 से घटकर 38 हो गई। प्रत्येक जर्मन राज्य की स्वतंत्राता और संप्रभुता को कायम रखने के लिए 1815 में जर्मन संघ ;ठनतकद्ध की स्थापना हुई। वियना कांग्रेस ;1815द्ध के बाद यूरोपीय व्यवस्था का निर्माण हुआ। इस व्यवस्था का निर्माण आस्ट्रिया, प्रशा और रूस के संकीर्णतावादी राजतंत्रों द्वारा किया गया था जिनका उद्देश्य यूरोप में जनतांत्रिक विचार के प्रसार को नियंत्रित करना था। इस नीति के प्रमुख निर्माता आस्ट्रिया के चांसलर प्रिस मेटरनिख ने 1820 और 1830 के बीच जनतांत्रिक विचारों और आंदोलनों तथा शाही सत्ता को दी गई चुनौतियों को दबाने में सक्रिय भूमिका निभाई। 19वीं शताब्दी में जर्मनी का राजनैतिक एकीकरण कठिन था क्योंकि संकीर्णवादी शासक उदारवादी विचारों के खिलापफ थे। 1815 के बाद जर्मन राज्यों में प्रतिनिधिक संस्थाओं की स्थापना की गई और उन्हें कापफी सीमित अधिकार दिए गए। 1848 के बाद अधिकांश जर्मन राज्यों में जनतांत्रिक सुधार लागू किए गए। प्रशा में सुधार की गति धीमी थी क्योंकि मत देने का अधिकार तीन प्रकार के आयकर दाताओं को समान रूप से प्रदान किया गया। यह विभाजन आयकर देने के परिमाण पर आधारित था। समूह अल्पसंख्यक एक तिहाई आयकर देते थे। अतः प्रशा की बिधाई संस्थाओं में उन्हें एक तिहाई मत देने का अधिकार प्राप्त था। प्रशा में प्रतिनिधित्व की यह व्यवस्था 1918 तक जारी रही और इसने एक पिछड़ी राजनैतिक व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
आर्थिक पृष्ठभूमिµब्रिटेन की तुलना में जर्मनी का सापेक्षित पिछड़ापन और ब्रिटिश प्रतियोगिता का सामना करने की इच्छा ने जर्मनी में बुर्जुआ विचारधारा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और कुछ हद तक बुर्जुआ और कामगार हितों, जर्मन राज्यों और खासकर प्रशा की नीतियों के बीच संतुलन स्थापित किया। हालांकि कृषि अभी भी अर्थव्यवस्था का प्रमुख ड्डोत था परंतु 1833 में सीमा शुल्क संघ या जाॅल्वेरिन की स्थापना के बाद 1830 के दशक में कपड़ा उद्योग में महत्वपूर्ण विकास हुआ। 1840 के दशक में औद्योगिक विकास हुआ और रेलवे में निवेश किया गया। जर्मन औद्योगीकरण की शुरूआत की अवधि में 1850-1873 के दौरान कोयला, लोहा और रेलवे पर आधारित भारी उद्योगों का विकास हुआ। हालांकि जाॅल्वेरिन और रेलवे के तीव्र विकास के कारण जर्मन उद्योग में तीव्र प्रगति हुई परंतु जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करने की दृष्टि से औद्योगिक प्रगति पर्याप्त मजबूत नहीं थी। जर्मन औद्योगिक वर्ग इतना बड़ा या अर्थव्यवस्था में इतना महत्वपूर्ण नहीं था कि वह जर्मन राजनीति, चाहे वह एकीकरण हो या उदारवादी जनतंत्रा हो, में निर्णयक भूमिका अदा कर सके। लेकिन यह भी सत्य है कि 19वीं शताब्दी के दौरान जर्मन बुर्जुआ वर्ग का तेजी से विकास हुआ और इसके पफलस्वरूप 1800-1830 के बीच उदारवाद के आरंभिक युग में उत्पादन प्रणाली के स्थान पर औद्योगिक क्रांति की कारखाना प्रणाली की स्थापना हुई खराब प्रबंधन और अपेक्षाकृत अविकसित और राजनीतिक दृष्टि से विभाजित बाजारों के कारण कई समस्याएं पैदा हुई और कई उद्यम 1800-1830 के बीच दिवालिया हो गए। बुजुआ समूहों ने परिहवन और औद्योगिक विकास की मांग के लिए आर्थिक प्रगति का जो रास्ता अख्तियार किया वह 1848 के पहले ही पितृ भूमि के लिए उद्योग के संदेश से जुड़ गया। उदारवादी उद्यमियों ने पितृभूमि के लिए उद्योग के मुद्दे को 1848 से पहले राजनीतिक एकता की अपेक्षाओं के साथ जोड़ दिया।
एकीकरण की प्रक्रियाµजर्मन एकीकरण की प्रक्रिया यु( और सैनिक प्रयत्नों से प्रभावित हुई सबसे बड़े जर्मन राज्य प्रशा ने इस प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई। यदि प्रशा और आस्ट्रिया ने समय पर सेना न भेजी होती तो हेसे-कैसल, ब्रान-शेविग और सैक्सोनी जैसे छोटे जर्मन राज्य 1830 के क्रांतिकारी विप्लवों में धाराशाई हो जाते। 1848-49 में एक बार पिफर प्रशा और आस्ट्रिया ने जन आंदोलनों को दबाने के लिए सैन्य शक्ति का उपयोग किया। डेनमार्क के खिलापफ लड़ाई लड़कर स्लेशविग, हाॅल्सटीन को जर्मन संघ में शामिल कर लिया गया। अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद 1815 का जर्मन परिसंघ या बंड 1876 तक जर्मनी की राष्ट्रवादी शक्तियों के लिए पूर्व निर्धारित और वैध रंगमंच बना रहा। 1851 में पूर्वी प्रशा और श्लेशविग जर्मन परिसंघ के हिस्से नहीं थे जबकि चेक बहुल क्षेत्रा बोहेमिया और मोसविया इसमें शामिल थे। 1848 में जर्मन सभा के लिए होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने से चेक उदारवादियों ने मना कर दिया। इस प्रकार यह परिसंघ एक ऐसे वृहद् जर्मनी का आधार नहीं प्रदान कर सका जिसमें सभी जर्मन भाषी लोग शामिल हों बल्कि यह एक एकीकृत जर्मनी के लिए एक सर्वाधिक मान्य स्वरूप के रूप में उभरकर सामने आया। 19वीं शताब्दी में जर्मनी में हुए सबसे बड़े और व्यापक आंदोलन के कारण 1848 में जर्मन राष्ट्रीय सभा की स्थापना की गई। 1848 के Úैंकपफर्ट संसद में संक्षेप में जनतांत्रिक और एकीकृत जर्मनी की संभावना का संकेत दिया गया। जनतांत्रिक आंदोलन को दबाए जाने से इस प्रक्रिया में देरी हुई और जर्मन राष्ट्रवाद की प्रकृति बदल गई।
हालांकि 1848-49 की क्रांतियां जर्मन राजनीति के जनतांत्राीकरण या जर्मनी के एकीकरण में असपफल रहीं परंतु आनेवाले वर्षों में जर्मन राज्यों में सकीर्णवादिता और विशिष्टतावादिता में सुधार हो सका। लेकिन जर्मन का एकीकरण मात्रा उदारवादी उपायों से संभव नहीं था। प्रशा की पुरानी व्यवस्था के खिलापफ अपनी कमजोरियों को पहचानने के बाद राष्ट्रीय उदारवादियों ने 1866-1878 में बिस्मार्क से सहयोग प्राप्त करने का प्रयत्न किया। प्रशा में संसदीय प्रजातंत्रा लागू किए जाने की मांग के स्थगन के आधार पर यह सहयोग प्राप्त किया गया। वस्तुतः राष्ट्रीय एकीकरण और जनतांत्रिक सुधारों के सभीकरण के साथ लक्ष्य की प्राप्ति बहुत मुश्किल थी। 1848-49 की क्रांतियों की असपफलता और बिस्मार्क द्वारा रक्त और लौह की नीति अपनाए जाने के कारण एकीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में निस्ंदेह जर्मनी में बुर्जुआ वर्ग ने एक क्रांति की परंतु राजनैतिक जीवन का जनतांत्राीकरण न के बराबर हुआ।
यु( और कूटनीति केे सहार जर्मनी का एकीकरण किया गया क्योंकि मध्य यूरोप में एक मजबूत राज्य के बनने से बड़ी शक्तियों के संबंध में खलल पड़ना अवश्यभावी था और इससे Úांस के हितों पर विशेश रूप से प्रभाव पड़ना था। प्रशा की विधान सभा बिस्मार्क के सैन्य खर्च के प्रति सकारात्मक नहीं थी और इसके लिए उसने अनुमोदन देने से मना कर दिया था परंतु पिफर भी प्रशा का यह नेता प्रशा के वर्चस्व और जर्मन एकीकरण के अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सपफल रहा। 1863 में श्लेशविग-होस्टिंग के डचों पर जर्मनों के दावे के मुद्दे को पिफर से उठाने ;1848 में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा थाद्ध और डेनमार्क से इन डच क्षेत्रों को छीन लेने के बाद आस्ट्रिया से यु( होना अवश्य भावी हो गया। आस्ट्रिया और प्रशा के बीच हुए यु( में हालांकि कुस्टोज में आस्ट्रिया को विजय प्राप्त हुई किंतु कोनीग्राट्ज में उनकी शास्त्रिायों तक सीमित थे, अतः पश्चिमी यूरोपीय देशों की तरह राजनीति और समाज को या विश्व साम्राज्य के मध्ययुगीन विचार को समाप्त करने में ये आंदोलन असपफल रहे। जर्मन राष्ट्रवाद 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ और समुदाय का ‘प्राकृतिक’ गठजोड़ तथा सगोत्राता इसका आधार बना, यह किसी अनुबंध या नागरिकता अी अवधारणा पर आधारित नहीं था। रूसियों की तरह जर्मन राष्ट्रवाद भी राष्ट्र की ‘आत्मा’ या ‘लक्ष्य’ से पूर्वाग्रहग्रस्त था क्योंकि इसका संबंध सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ से नहीं था और नीति निर्माण तथा सरकार की अपेक्षा शिक्षा और अधिप्रचार के द्वारा इसका माहौल बनाया गया था।
मार्टिन लूथर द्वारा पोप की सत्ता को अस्वीकार किए जाने से राष्ट्रीय चेतना का आधार निर्मित हुआ। 1486 में पहली बार जर्मन राष्ट्र के लिए पवित्रा रोमन साम्राज्य अभिव्यक्ति का प्रयोग किया गया और 16वीं शताब्दी में इसका आम प्रयोग होने लगा। सबसे पहले लूथर, उलरिख वाॅन हटन और मानवतावादियों ने ‘जर्मन राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग किया। हालांकि जर्मन स्वच्छंदतावादियों और बु(िजीवियों ने ‘सांस्कृतिक राष्ट्र’ ;ब्नसजनतम छंजपवदद्ध की अवधारणा के आधार पर राष्ट्रवाद की जातीय और भाषाई परिभाषा विकसित की परंतु राष्ट्र-राज्य के निर्माण की वास्तविक प्रक्रिया जटिल ऐतिहासिक वास्तविकताओं से होकर गुजरी।
राजनीतिक पृष्ठभूमिµनेपोलियन के यु(ों की समाप्ति के समय जर्मनी का राजनैतिक विखंडीकरण अंशतः समाप्त हुआ। होली रोमन साम्राज्य की समाप्ति के बाद संप्रभु जर्मन राज्यों की संख्या 300 से घटकर 38 हो गई। प्रत्येक जर्मन राज्य की स्वतंत्राता और संप्रभुता को कायम रखने के लिए 1815 में जर्मन संघ ;ठनतकद्ध की स्थापना हुई। वियना कांग्रेस ;1815द्ध के बाद यूरोपीय व्यवस्था का निर्माण हुआ। इस व्यवस्था का निर्माण आस्ट्रिया, प्रशा और रूस के संकीर्णतावादी राजतंत्रों द्वारा किया गया था जिनका उद्देश्य यूरोप में जनतांत्रिक विचार के प्रसार को नियंत्रित करना था। इस नीति के प्रमुख निर्माता आस्ट्रिया के चांसलर प्रिस मेटरनिख ने 1820 और 1830 के बीच जनतांत्रिक विचारों और आंदोलनों तथा शाही सत्ता को दी गई चुनौतियों को दबाने में सक्रिय भूमिका निभाई। 19वीं शताब्दी में जर्मनी का राजनैतिक एकीकरण कठिन था क्योंकि संकीर्णवादी शासक उदारवादी विचारों के खिलापफ थे। 1815 के बाद जर्मन राज्यों में प्रतिनिधिक संस्थाओं की स्थापना की गई और उन्हें कापफी सीमित अधिकार दिए गए। 1848 के बाद अधिकांश जर्मन राज्यों में जनतांत्रिक सुधार लागू किए गए। प्रशा में सुधार की गति धीमी थी क्योंकि मत देने का अधिकार तीन प्रकार के आयकर दाताओं को समान रूप से प्रदान किया गया। यह विभाजन आयकर देने के परिमाण पर आधारित था। समूह अल्पसंख्यक एक तिहाई आयकर देते थे। अतः प्रशा की बिधाई संस्थाओं में उन्हें एक तिहाई मत देने का अधिकार प्राप्त था। प्रशा में प्रतिनिधित्व की यह व्यवस्था 1918 तक जारी रही और इसने एक पिछड़ी राजनैतिक व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
आर्थिक पृष्ठभूमिµब्रिटेन की तुलना में जर्मनी का सापेक्षित पिछड़ापन और ब्रिटिश प्रतियोगिता का सामना करने की इच्छा ने जर्मनी में बुर्जुआ विचारधारा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और कुछ हद तक बुर्जुआ और कामगार हितों, जर्मन राज्यों और खासकर प्रशा की नीतियों के बीच संतुलन स्थापित किया। हालांकि कृषि अभी भी अर्थव्यवस्था का प्रमुख ड्डोत था परंतु 1833 में सीमा शुल्क संघ या जाॅल्वेरिन की स्थापना के बाद 1830 के दशक में कपड़ा उद्योग में महत्वपूर्ण विकास हुआ। 1840 के दशक में औद्योगिक विकास हुआ और रेलवे में निवेश किया गया। जर्मन औद्योगीकरण की शुरूआत की अवधि में 1850-1873 के दौरान कोयला, लोहा और रेलवे पर आधारित भारी उद्योगों का विकास हुआ। हालांकि जाॅल्वेरिन और रेलवे के तीव्र विकास के कारण जर्मन उद्योग में तीव्र प्रगति हुई परंतु जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करने की दृष्टि से औद्योगिक प्रगति पर्याप्त मजबूत नहीं थी। जर्मन औद्योगिक वर्ग इतना बड़ा या अर्थव्यवस्था में इतना महत्वपूर्ण नहीं था कि वह जर्मन राजनीति, चाहे वह एकीकरण हो या उदारवादी जनतंत्रा हो, में निर्णयक भूमिका अदा कर सके। लेकिन यह भी सत्य है कि 19वीं शताब्दी के दौरान जर्मन बुर्जुआ वर्ग का तेजी से विकास हुआ और इसके पफलस्वरूप 1800-1830 के बीच उदारवाद के आरंभिक युग में उत्पादन प्रणाली के स्थान पर औद्योगिक क्रांति की कारखाना प्रणाली की स्थापना हुई खराब प्रबंधन और अपेक्षाकृत अविकसित और राजनीतिक दृष्टि से विभाजित बाजारों के कारण कई समस्याएं पैदा हुई और कई उद्यम 1800-1830 के बीच दिवालिया हो गए। बुजुआ समूहों ने परिहवन और औद्योगिक विकास की मांग के लिए आर्थिक प्रगति का जो रास्ता अख्तियार किया वह 1848 के पहले ही पितृ भूमि के लिए उद्योग के संदेश से जुड़ गया। उदारवादी उद्यमियों ने पितृभूमि के लिए उद्योग के मुद्दे को 1848 से पहले राजनीतिक एकता की अपेक्षाओं के साथ जोड़ दिया।
एकीकरण की प्रक्रियाµजर्मन एकीकरण की प्रक्रिया यु( और सैनिक प्रयत्नों से प्रभावित हुई सबसे बड़े जर्मन राज्य प्रशा ने इस प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई। यदि प्रशा और आस्ट्रिया ने समय पर सेना न भेजी होती तो हेसे-कैसल, ब्रान-शेविग और सैक्सोनी जैसे छोटे जर्मन राज्य 1830 के क्रांतिकारी विप्लवों में धाराशाई हो जाते। 1848-49 में एक बार पिफर प्रशा और आस्ट्रिया ने जन आंदोलनों को दबाने के लिए सैन्य शक्ति का उपयोग किया। डेनमार्क के खिलापफ लड़ाई लड़कर स्लेशविग, हाॅल्सटीन को जर्मन संघ में शामिल कर लिया गया। अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद 1815 का जर्मन परिसंघ या बंड 1876 तक जर्मनी की राष्ट्रवादी शक्तियों के लिए पूर्व निर्धारित और वैध रंगमंच बना रहा। 1851 में पूर्वी प्रशा और श्लेशविग जर्मन परिसंघ के हिस्से नहीं थे जबकि चेक बहुल क्षेत्रा बोहेमिया और मोसविया इसमें शामिल थे। 1848 में जर्मन सभा के लिए होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने से चेक उदारवादियों ने मना कर दिया। इस प्रकार यह परिसंघ एक ऐसे वृहद् जर्मनी का आधार नहीं प्रदान कर सका जिसमें सभी जर्मन भाषी लोग शामिल हों बल्कि यह एक एकीकृत जर्मनी के लिए एक सर्वाधिक मान्य स्वरूप के रूप में उभरकर सामने आया। 19वीं शताब्दी में जर्मनी में हुए सबसे बड़े और व्यापक आंदोलन के कारण 1848 में जर्मन राष्ट्रीय सभा की स्थापना की गई। 1848 के Úैंकपफर्ट संसद में संक्षेप में जनतांत्रिक और एकीकृत जर्मनी की संभावना का संकेत दिया गया। जनतांत्रिक आंदोलन को दबाए जाने से इस प्रक्रिया में देरी हुई और जर्मन राष्ट्रवाद की प्रकृति बदल गई।
हालांकि 1848-49 की क्रांतियां जर्मन राजनीति के जनतांत्राीकरण या जर्मनी के एकीकरण में असपफल रहीं परंतु आनेवाले वर्षों में जर्मन राज्यों में सकीर्णवादिता और विशिष्टतावादिता में सुधार हो सका। लेकिन जर्मन का एकीकरण मात्रा उदारवादी उपायों से संभव नहीं था। प्रशा की पुरानी व्यवस्था के खिलापफ अपनी कमजोरियों को पहचानने के बाद राष्ट्रीय उदारवादियों ने 1866-1878 में बिस्मार्क से सहयोग प्राप्त करने का प्रयत्न किया। प्रशा में संसदीय प्रजातंत्रा लागू किए जाने की मांग के स्थगन के आधार पर यह सहयोग प्राप्त किया गया। वस्तुतः राष्ट्रीय एकीकरण और जनतांत्रिक सुधारों के सभीकरण के साथ लक्ष्य की प्राप्ति बहुत मुश्किल थी। 1848-49 की क्रांतियों की असपफलता और बिस्मार्क द्वारा रक्त और लौह की नीति अपनाए जाने के कारण एकीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में निस्ंदेह जर्मनी में बुर्जुआ वर्ग ने एक क्रांति की परंतु राजनैतिक जीवन का जनतांत्राीकरण न के बराबर हुआ।
यु( और कूटनीति केे सहार जर्मनी का एकीकरण किया गया क्योंकि मध्य यूरोप में एक मजबूत राज्य के बनने से बड़ी शक्तियों के संबंध में खलल पड़ना अवश्यभावी था और इससे Úांस के हितों पर विशेश रूप से प्रभाव पड़ना था। प्रशा की विधान सभा बिस्मार्क के सैन्य खर्च के प्रति सकारात्मक नहीं थी और इसके लिए उसने अनुमोदन देने से मना कर दिया था परंतु पिफर भी प्रशा का यह नेता प्रशा के वर्चस्व और जर्मन एकीकरण के अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सपफल रहा। 1863 में श्लेशविग-होस्टिंग के डचों पर जर्मनों के दावे के मुद्दे को पिफर से उठाने ;1848 में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा थाद्ध और डेनमार्क से इन डच क्षेत्रों को छीन लेने के बाद आस्ट्रिया से यु( होना अवश्य भावी हो गया। आस्ट्रिया और प्रशा के बीच हुए यु( में हालांकि कुस्टोज में आस्ट्रिया को विजय प्राप्त हुई किंतु कोनीग्राट्ज में उनकी हार हुई। 1867 में उत्तर जर्मन परिसंघ के निर्माण से Úांस की शक्ति या सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया। इसीलिये यह कहा जाता है कि कोनीग्राट्ज में आस्ट्रिया की नहीं, Úांस की हार हुई। 1866 के आस्ट्रिया प्रशा यु( में बिस्मार्क की विजय से यह स्पष्ट हो गया कि Úांस और जर्मनी के यु( के बाद ही जर्मन एकता संभव हो सकेगी। नेपोलियन प्प्प् के परामर्शदाता यह नहीं चाहते थे कि जर्मन एकीकरण और आगे बढ़ सके, दूसरी ओर बिस्मार्क जर्मन राष्ट्र-राज्य को मजबूत करने के लिए Úांस को यु(भूमि में हराना चाहता था। स्पेन की गद्दी पर होहेन जाॅलरेन के उत्तराधिकार के विवाद को बहाना बनाकर बिस्मार्क ने Úांस के साथ यु( छेड़ दिया जिससे Úांस को प्रतिरक्षा की मुद्रा में आना पड़ा जबकि जर्मन लोगों में देशभक्ति की भावना पैदा हो गई।
अंततः प्रशा और आस्ट्रिया के बीच हुए यु( ने जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया में एक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जुलाई 1863 में आस्ट्रिया के सम्राट Úांसिस जोसेपफ ने संधीय सुधार की योजना पर विचार करने के लिए Úैकपफर्ट में सभी जर्मन राजाओं की एक बैठक बुलाई। इस सुधार के द्वारा पुनर्सगइित केंद्रीय सत्ता आस्ट्रिया और उसके सहयोगियों के हाथों में स्थायी रूप से सौंपी जानी थी। आस्ट्रिया के सम्राट ने प्रशा के राजा को इस सम्मेलन में आने का निमंत्राण दिया और कहा कि यह सुधार संकीर्णतावादी दृष्टि से होना था और इसमें क्रांति का कोई खतरा नहीं था। हालांकि प्रशा का राजा विलियम इस सम्मेलन में भाग लेने को लगभग राजी हो गया था परंतु बिस्मार्क ने कहा कि अगर राजा ने Úैंकपफर्ट के सम्मेलन में हिस्सा लिया तो वह इस्तीपफा दे देगा और इस प्रकार प्रशा के इस मंत्राी ने जर्मनी में आस्ट्रिया की स्थिति मजबूत करने की उसकी साजिश को नाकामयाब कर दिया। प्रशा की अनुपस्थिति से आस्ट्रिया के प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं रह गया। संघीय सुधार की अपनी योजना पर जर्मन परिसंघ के साथ मिलने के आस्ट्रिया के प्रस्ताव को छोटे जर्मन राज्यों के साथ-साथ जनमत ने भी अस्वीकार कर दिया। छोटे राज्य अपनी स्वायत्तता और लेन-देन की शक्ति बनाएं रखना चाहते थे, अतः उन्होंने आस्ट्रिया का यह प्रस्ताव वैसे ही नामंजूर कर दिया था। उदारवादी विचारधारा ने आस्ट्रिया का प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि उसमें लोक जनमत पर आधारित संसद का कोई प्रावधान नहीं था। विस्मार्क ने 1863 में यह घोषणा की कि वह प्रत्यक्ष मतदान पर आधारित जन सभा को समर्थन देने के लिए तैयार है। परंतु उसकी इस घोषणा पर किसी ने विश्वास नहीं किया। अंततः उत्तरी जर्मन परिसंघ ने राइखस्टैग का चुनाव चसस्क मताधिकार के आधार पर किया।
बिस्मार्क की नीति को प्रशा की प्रतिनिधिक सभा में पर्याप्त समर्थन प्राप्त नहीं था परंतु वह अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सपफल रहा क्योंकि आंतरिक नीति के कारणों से राजा बिस्मार्क की नीतियों को मानने के लिए तैयार था। अक्टूबर 1864 में 12 वर्षों के लिए जाॅल्वेरिन को उसके मल रूप में पुनः मंजूरी दे दी गई। इसका कारण यह था कि इससे प्रशा के हितों की पूर्ति होती थी और जर्मनी में संघीय सुधार के प्रश्न के साथ-साथ ज्यादातर लोग इसके समर्थन में थे। आस्ट्रिया ने दक्षिण जर्मन राज्यों के असंतोष का उपयोग कर जाॅल्वेरिन को समाप्त करने की कोशिश की और प्रशा की उदारवादी सीमा शुल्क नीति के खिलापफ दक्षिण जर्मन राज्यों की भावनाओं का अपने पक्ष में उपयोग करने की कोशिश की परंतु आस्ट्रिया शुल्क संघ में शामिल होकर दक्षिण जर्मन राज्यों को अधिक संरक्षणवादी नीति अपनाने के लिए उकसाना चाहता था लेकिन इसमें भी उसे सपफलता नहीं मिली। अशंतः इसका कारण यह था कि उत्तर जर्मनी के छोटे राज्य प्रशा से घिरे हुए थे और उन्हें आस्ट्रिया की इस प्रकार की संक्षणवादी नीति से पफायदा होने वाला नहीं था। बावेरिया और आस्ट्रिया के साथ राजनीतिक संबंध रखने के बावजूद सैक्सोनी जाॅल्वेरिन में बना रहा। दक्षिण जर्मन राज्य प्रशा की सीमा शुल्क नीति को मानने के लिए बाध्य हुए क्योंकि उत्तरी जर्मन राज्यों के बिना वे आस्ट्रिया के साथ शुल्क संघ में शामिल नहीं होना चाहते थे। चूंकि आस्ट्रियाई साम्राज्य के साथ शुल्क संघ में शामिल होने से उनका आर्थिक हित नहीं सघता था और चूँकि वे अलग-थलग नहीं रहना चाहते थे इसलिए छोटे दक्षिणी जर्मन राज्य भी जाॅल्वेरिन में बने रहे।
1866 में आस्ट्रिया से यु( करने से पहले बिस्मार्क ने अपनी नीतिगत कुशलता से अंतर्राष्ट्रीय स्थिति अपने पक्ष में कर ली। 1866 में प्रशा की विजय के बाद छोटे जर्मन राज्यों को जिस तरह उसने संभाला और 1867 में जिस प्रकार उत्तरी जर्मन परिसंघ का निर्माण किया उससे उसकी कूटनीतिक योग्यता और सपफलता का परिचय मिलता है। हैनोवर, हेसेका इलेक्टोटेट, नासू मिला लिए गए। दक्षिण जर्मन राज्यों के साथ गुप्त प्रतिरक्षात्मक और आÚातमक संधियां की गईं ताकि आस्ट्रिया और जर्मनी में यु( होने की स्थिति में संपूर्ण गैर आस्ट्रियाई जर्मन एकीकृत हो जाए। निस्संदेह Úांस के डर से छोटे दक्षिण जर्मन राज्य प्रशा में जा मिले। बंड्सरैथ या उत्तरी जर्मन परिसंघ के संघीय परिषद में प्रशा अल्पमत में था और छोटे राज्यों का बहुमत था। कुल 43 सदस्यों में प्रशा के केवल 17 सदस्य थे। हालांकि उत्तरी जर्मन परिसंघ ने संयुक्त निवेश नीति और सैन्य व्यवस्था कायम की परंतु छोटे-छोटे राज्यों की स्वतंत्राता को विशेष महत्व दिया।
दक्षिण परिसंघ के निर्माण की असपफलता से यह सि( हो गया था कि दक्षिणी राज्य अंततः बिस्मार्क के उत्तरी जर्मन परिसंघ में शामिल हो जाएंगे। हालांकि बैंडेनबर्ग इसमें शामिल होने का इच्छुक था परंतु बावेरिया और र्वेमबर्ग इसका विरोध कर रहे थे। 1870 में Úांस के साथ हुए यु( में प्रशा की विजय ने जर्मन साम्राज्य का निर्माण किया। दक्षिण जर्मन डायटों के अनुमोदन के बाद 1871 में चार दक्षिण राज्यों बावेरिया, वर्टेमबर्ग, बैंडेनवर्ग और हेस जम्रन साम्राज्य में शामिल हो गए। अब जर्मन साम्राज्य का संघीय रूप सामने आया।
डंामत व िळमतउमदलµबिस्मार्कµजर्मनी के एकीकरण से पहले 39 जर्मन राज्य, हिन्होंने प्राचीन पवित्रा रोमन साम्राज्य का स्थान लिया था, एक संगठन के रूप में एक साथ बंधे, जिसे जर्मन परिसंघ ;ब्वदमिकमतंजपवदद्ध कहा जाता था। इटलीवासियों की सपफलता ने जर्मनी में भी राष्ट्रवादी आकांक्षाओं को सबल बना दिया किंतु जर्मनी का एकीकरण वास्तव में एक कठिन कार्य था। जर्मनी में यह कार्य आॅओ वाॅन बिस्मार्क ;1815-1898द्ध द्वारा संपन्न किया गया, जिसने यूरोप के अलग तीस वर्ष के इतिहास को रूप प्रदान किया। बिस्मार्क ने अपना राजनीतिक जीवन 1848 के क्रांति-वर्ष में शाही विशेषधिकार के प्रबल समर्थक एवं रक्षक के रूप में प्रारंभ किया। इसके पुरस्कार स्वरूप, राजा विलियम प्रथम ने उसे जर्मन परिसंघ की Úैंकपफर्ट डायट में प्रशा के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया। Úैंकपफर्ट के बाद उसने सेंट पीटर्सबर्ग और पिफर पेरिस में प्रशा के राजदूत के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की। इसी बीच अपने ही देश में राजा विलयम प्रथम को प्रशा की संसद में उदारवादियों ;स्पइमतंसेद्ध की ओर से तकलीपफें सहनी पड़ रही थीं। संसद ने सेना में सुधार लाने के लिए धनराशि मंजूर करने से इंकार कर दिया था, जबकि सेना के जनरल बार-बार इसकी मांग कर रहे थे। इन परिस्थितियों में जब विलियम प्रथम राजगद्दी छोड़ने ही वाला था, तभी उसने चांसलर के पद का कार्यभार संभालने के लिए बिस्मार्क को वापस बुला लिया।
प्रारंभ से ही बिस्मार्क ने उदारवादियों से मिलकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी। उसने घोषित किया कि वर्तमान बड़े प्रश्नों को न तो संसद द्वारा और न ही संसदीय उपायों द्वारा हल किया जाएगा, ऽ बल्कि उन्हें ‘रक्त और लौह’ से यानी कठोरतापूर्वक सुलझाया जाएगा। सेना ने और अधिकांश नौकरशाओं ने उसकी नीतियों का समर्थन किया।
1863 के नए चुनावों में संसद में उदारवादियों को पुनः बहुमत मिल गया। इसलिए बिस्मार्क को उदारवादियों से जनता का समर्थन छीनकर राजतंत्रा था सेना के पख में करने के लिए कुछ और उपाय करने पड़े। इसके लिए उसने प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया। इस कार्य में उसने जनता का ध्यान घरेलू मामलों से हटाकर विदेशी मामलों की ओर मोड़ने में सपफलता प्राप्त की। 1864 में, उसने श्लेषविग और होल्स्टीन क्षेत्रों के प्रश्नों पर डेनमार्क शास्त्रिायों तक सीमित थे, अतः पश्चिमी यूरोपीय देशों की तरह राजनीति और समाज को या विश्व साम्राज्य के मध्ययुगीन विचार को समाप्त करने में ये आंदोलन असपफल रहे। जर्मन राष्ट्रवाद 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ और समुदाय का ‘प्राकृतिक’ गठजोड़ तथा सगोत्राता इसका आधार बना, यह किसी अनुबंध या नागरिकता अी अवधारणा पर आधारित नहीं था। रूसियों की तरह जर्मन राष्ट्रवाद भी राष्ट्र की ‘आत्मा’ या ‘लक्ष्य’ से पूर्वाग्रहग्रस्त था क्योंकि इसका संबंध सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ से नहीं था और नीति निर्माण तथा सरकार की अपेक्षा शिक्षा और अधिप्रचार के द्वारा इसका माहौल बनाया गया था।
मार्टिन लूथर द्वारा पोप की सत्ता को अस्वीकार किए जाने से राष्ट्रीय चेतना का आधार निर्मित हुआ। 1486 में पहली बार जर्मन राष्ट्र के लिए पवित्रा रोमन साम्राज्य अभिव्यक्ति का प्रयोग किया गया और 16वीं शताब्दी में इसका आम प्रयोग होने लगा। सबसे पहले लूथर, उलरिख वाॅन हटन और मानवतावादियों ने ‘जर्मन राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग किया। हालांकि जर्मन स्वच्छंदतावादियों और बु(िजीवियों ने ‘सांस्कृतिक राष्ट्र’ ;ब्नसजनतम छंजपवदद्ध की अवधारणा के आधार पर राष्ट्रवाद की जातीय और भाषाई परिभाषा विकसित की परंतु राष्ट्र-राज्य के निर्माण की वास्तविक प्रक्रिया जटिल ऐतिहासिक वास्तविकताओं से होकर गुजरी।
राजनीतिक पृष्ठभूमिµनेपोलियन के यु(ों की समाप्ति के समय जर्मनी का राजनैतिक विखंडीकरण अंशतः समाप्त हुआ। होली रोमन साम्राज्य की समाप्ति के बाद संप्रभु जर्मन राज्यों की संख्या 300 से घटकर 38 हो गई। प्रत्येक जर्मन राज्य की स्वतंत्राता और संप्रभुता को कायम रखने के लिए 1815 में जर्मन संघ ;ठनतकद्ध की स्थापना हुई। वियना कांग्रेस ;1815द्ध के बाद यूरोपीय व्यवस्था का निर्माण हुआ। इस व्यवस्था का निर्माण आस्ट्रिया, प्रशा और रूस के संकीर्णतावादी राजतंत्रों द्वारा किया गया था जिनका उद्देश्य यूरोप में जनतांत्रिक विचार के प्रसार को नियंत्रित करना था। इस नीति के प्रमुख निर्माता आस्ट्रिया के चांसलर प्रिस मेटरनिख ने 1820 और 1830 के बीच जनतांत्रिक विचारों और आंदोलनों तथा शाही सत्ता को दी गई चुनौतियों को दबाने में सक्रिय भूमिका निभाई। 19वीं शताब्दी में जर्मनी का राजनैतिक एकीकरण कठिन था क्योंकि संकीर्णवादी शासक उदारवादी विचारों के खिलापफ थे। 1815 के बाद जर्मन राज्यों में प्रतिनिधिक संस्थाओं की स्थापना की गई और उन्हें कापफी सीमित अधिकार दिए गए। 1848 के बाद अधिकांश जर्मन राज्यों में जनतांत्रिक सुधार लागू किए गए। प्रशा में सुधार की गति धीमी थी क्योंकि मत देने का अधिकार तीन प्रकार के आयकर दाताओं को समान रूप से प्रदान किया गया। यह विभाजन आयकर देने के परिमाण पर आधारित था। समूह अल्पसंख्यक एक तिहाई आयकर देते थे। अतः प्रशा की बिधाई संस्थाओं में उन्हें एक तिहाई मत देने का अधिकार प्राप्त था। प्रशा में प्रतिनिधित्व की यह व्यवस्था 1918 तक जारी रही और इसने एक पिछड़ी राजनैतिक व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
आर्थिक पृष्ठभूमिµब्रिटेन की तुलना में जर्मनी का सापेक्षित पिछड़ापन और ब्रिटिश प्रतियोगिता का सामना करने की इच्छा ने जर्मनी में बुर्जुआ विचारधारा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और कुछ हद तक बुर्जुआ और कामगार हितों, जर्मन राज्यों और खासकर प्रशा की नीतियों के बीच संतुलन स्थापित किया। हालांकि कृषि अभी भी अर्थव्यवस्था का प्रमुख ड्डोत था परंतु 1833 में सीमा शुल्क संघ या जाॅल्वेरिन की स्थापना के बाद 1830 के दशक में कपड़ा उद्योग में महत्वपूर्ण विकास हुआ। 1840 के दशक में औद्योगिक विकास हुआ और रेलवे में निवेश किया गया। जर्मन औद्योगीकरण की शुरूआत की अवधि में 1850-1873 के दौरान कोयला, लोहा और रेलवे पर आधारित भारी उद्योगों का विकास हुआ। हालांकि जाॅल्वेरिन और रेलवे के तीव्र विकास के कारण जर्मन उद्योग में तीव्र प्रगति हुई परंतु जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करने की दृष्टि से औद्योगिक प्रगति पर्याप्त मजबूत नहीं थी। जर्मन औद्योगिक वर्ग इतना बड़ा या अर्थव्यवस्था में इतना महत्वपूर्ण नहीं था कि वह जर्मन राजनीति, चाहे वह एकीकरण हो या उदारवादी जनतंत्रा हो, में निर्णयक भूमिका अदा कर सके। लेकिन यह भी सत्य है कि 19वीं शताब्दी के दौरान जर्मन बुर्जुआ वर्ग का तेजी से विकास हुआ और इसके पफलस्वरूप 1800-1830 के बीच उदारवाद के आरंभिक युग में उत्पादन प्रणाली के स्थान पर औद्योगिक क्रांति की कारखाना प्रणाली की स्थापना हुई खराब प्रबंधन और अपेक्षाकृत अविकसित और राजनीतिक दृष्टि से विभाजित बाजारों के कारण कई समस्याएं पैदा हुई और कई उद्यम 1800-1830 के बीच दिवालिया हो गए। बुजुआ समूहों ने परिहवन और औद्योगिक विकास की मांग के लिए आर्थिक प्रगति का जो रास्ता अख्तियार किया वह 1848 के पहले ही पितृ भूमि के लिए उद्योग के संदेश से जुड़ गया। उदारवादी उद्यमियों ने पितृभूमि के लिए उद्योग के मुद्दे को 1848 से पहले राजनीतिक एकता की अपेक्षाओं के साथ जोड़ दिया।
एकीकरण की प्रक्रियाµजर्मन एकीकरण की प्रक्रिया यु( और सैनिक प्रयत्नों से प्रभावित हुई सबसे बड़े जर्मन राज्य प्रशा ने इस प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई। यदि प्रशा और आस्ट्रिया ने समय पर सेना न भेजी होती तो हेसे-कैसल, ब्रान-शेविग और सैक्सोनी जैसे छोटे जर्मन राज्य 1830 के क्रांतिकारी विप्लवों में धाराशाई हो जाते। 1848-49 में एक बार पिफर प्रशा और आस्ट्रिया ने जन आंदोलनों को दबाने के लिए सैन्य शक्ति का उपयोग किया। डेनमार्क के खिलापफ लड़ाई लड़कर स्लेशविग, हाॅल्सटीन को जर्मन संघ में शामिल कर लिया गया। अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद 1815 का जर्मन परिसंघ या बंड 1876 तक जर्मनी की राष्ट्रवादी शक्तियों के लिए पूर्व निर्धारित और वैध रंगमंच बना रहा। 1851 में पूर्वी प्रशा और श्लेशविग जर्मन परिसंघ के हिस्से नहीं थे जबकि चेक बहुल क्षेत्रा बोहेमिया और मोसविया इसमें शामिल थे। 1848 में जर्मन सभा के लिए होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने से चेक उदारवादियों ने मना कर दिया। इस प्रकार यह परिसंघ एक ऐसे वृहद् जर्मनी का आधार नहीं प्रदान कर सका जिसमें सभी जर्मन भाषी लोग शामिल हों बल्कि यह एक एकीकृत जर्मनी के लिए एक सर्वाधिक मान्य स्वरूप के रूप में उभरकर सामने आया। 19वीं शताब्दी में जर्मनी में हुए सबसे बड़े और व्यापक आंदोलन के कारण 1848 में जर्मन राष्ट्रीय सभा की स्थापना की गई। 1848 के Úैंकपफर्ट संसद में संक्षेप में जनतांत्रिक और एकीकृत जर्मनी की संभावना का संकेत दिया गया। जनतांत्रिक आंदोलन को दबाए जाने से इस प्रक्रिया में देरी हुई और जर्मन राष्ट्रवाद की प्रकृति बदल गई।
हालांकि 1848-49 की क्रांतियां जर्मन राजनीति के जनतांत्राीकरण या जर्मनी के एकीकरण में असपफल रहीं परंतु आनेवाले वर्षों में जर्मन राज्यों में सकीर्णवादिता और विशिष्टतावादिता में सुधार हो सका। लेकिन जर्मन का एकीकरण मात्रा उदारवादी उपायों से संभव नहीं था। प्रशा की पुरानी व्यवस्था के खिलापफ अपनी कमजोरियों को पहचानने के बाद राष्ट्रीय उदारवादियों ने 1866-1878 में बिस्मार्क से सहयोग प्राप्त करने का प्रयत्न किया। प्रशा में संसदीय प्रजातंत्रा लागू किए जाने की मांग के स्थगन के आधार पर यह सहयोग प्राप्त किया गया। वस्तुतः राष्ट्रीय एकीकरण और जनतांत्रिक सुधारों के सभीकरण के साथ लक्ष्य की प्राप्ति बहुत मुश्किल थी। 1848-49 की क्रांतियों की असपफलता और बिस्मार्क द्वारा रक्त और लौह की नीति अपनाए जाने के कारण एकीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में निस्ंदेह जर्मनी में बुर्जुआ वर्ग ने एक क्रांति की परंतु राजनैतिक जीवन का जनतांत्राीकरण न के बराबर हुआ।
यु( और कूटनीति केे सहार जर्मनी का एकीकरण किया गया क्योंकि मध्य यूरोप में एक मजबूत राज्य के बनने से बड़ी शक्तियों के संबंध में खलल पड़ना अवश्यभावी था और इससे Úांस के हितों पर विशेश रूप से प्रभाव पड़ना था। प्रशा की विधान सभा बिस्मार्क के सैन्य खर्च के प्रति सकारात्मक नहीं थी और इसके लिए उसने अनुमोदन देने से मना कर दिया था परंतु पिफर भी प्रशा का यह नेता प्रशा के वर्चस्व और जर्मन एकीकरण के अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सपफल रहा। 1863 में श्लेशविग-होस्टिंग के डचों पर जर्मनों के दावे के मुद्दे को पिफर से उठाने ;1848 में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा थाद्ध और डेनमार्क से इन डच क्षेत्रों को छीन लेने के बाद आस्ट्रिया से यु( होना अवश्य भावी हो गया। आस्ट्रिया और प्रशा के बीच हुए यु( में हालांकि कुस्टोज में आस्ट्रिया को विजय प्राप्त हुई किंतु कोनीग्राट्ज में उनकी हार हुई। 1867 में उत्तर जर्मन परिसंघ के निर्माण से Úांस की शक्ति या सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया। इसीलिये यह कहा जाता है कि कोनीग्राट्ज में आस्ट्रिया की नहीं, Úांस की हार हुई। 1866 के आस्ट्रिया प्रशा यु( में बिस्मार्क की विजय से यह स्पष्ट हो गया कि Úांस और जर्मनी के यु( के बाद ही जर्मन एकता संभव हो सकेगी। नेपोलियन प्प्प् के परामर्शदाता यह नहीं चाहते थे कि जर्मन एकीकरण और आगे बढ़ सके, दूसरी ओर बिस्मार्क जर्मन राष्ट्र-राज्य को मजबूत करने के लिए Úांस को यु(भूमि में हराना चाहता था। स्पेन की गद्दी पर होहेन जाॅलरेन के उत्तराधिकार के विवाद को बहाना बनाकर बिस्मार्क ने Úांस के साथ यु( छेड़ दिया जिससे Úांस को प्रतिरक्षा की मुद्रा में आना पड़ा जबकि जर्मन लोगों में देशभक्ति की भावना पैदा हो गई।
अंततः प्रशा और आस्ट्रिया के बीच हुए यु( ने जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया में एक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जुलाई 1863 में आस्ट्रिया के सम्राट Úांसिस जोसेपफ ने संधीय सुधार की योजना पर विचार करने के लिए Úैकपफर्ट में सभी जर्मन राजाओं की एक बैठक बुलाई। इस सुधार के द्वारा पुनर्सगइित केंद्रीय सत्ता आस्ट्रिया और उसके सहयोगियों के हाथों में स्थायी रूप से सौंपी जानी थी। आस्ट्रिया के सम्राट ने प्रशा के राजा को इस सम्मेलन में आने का निमंत्राण दिया और कहा कि यह सुधार संकीर्णतावादी दृष्टि से होना था और इसमें क्रांति का कोई खतरा नहीं था। हालांकि प्रशा का राजा विलियम इस सम्मेलन में भाग लेने को लगभग राजी हो गया था परंतु बिस्मार्क ने कहा कि अगर राजा ने Úैंकपफर्ट के सम्मेलन में हिस्सा लिया तो वह इस्तीपफा दे देगा और इस प्रकार प्रशा के इस मंत्राी ने जर्मनी में आस्ट्रिया की स्थिति मजबूत करने की उसकी साजिश को नाकामयाब कर दिया। प्रशा की अनुपस्थिति से आस्ट्रिया के प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं रह गया। संघीय सुधार की अपनी योजना पर जर्मन परिसंघ के साथ मिलने के आस्ट्रिया के प्रस्ताव को छोटे जर्मन राज्यों के साथ-साथ जनमत ने भी अस्वीकार कर दिया। छोटे राज्य अपनी स्वायत्तता और लेन-देन की शक्ति बनाएं रखना चाहते थे, अतः उन्होंने आस्ट्रिया का यह प्रस्ताव वैसे ही नामंजूर कर दिया था। उदारवादी विचारधारा ने आस्ट्रिया का प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि उसमें लोक जनमत पर आधारित संसद का कोई प्रावधान नहीं था। विस्मार्क ने 1863 में यह घोषणा की कि वह प्रत्यक्ष मतदान पर आधारित जन सभा को समर्थन देने के लिए तैयार है। परंतु उसकी इस घोषणा पर किसी ने विश्वास नहीं किया। अंततः उत्तरी जर्मन परिसंघ ने राइखस्टैग का चुनाव चसस्क मताधिकार के आधार पर किया।
बिस्मार्क की नीति को प्रशा की प्रतिनिधिक सभा में पर्याप्त समर्थन प्राप्त नहीं था परंतु वह अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सपफल रहा क्योंकि आंतरिक नीति के कारणों से राजा बिस्मार्क की नीतियों को मानने के लिए तैयार था। अक्टूबर 1864 में 12 वर्षों के लिए जाॅल्वेरिन को उसके मल रूप में पुनः मंजूरी दे दी गई। इसका कारण यह था कि इससे प्रशा के हितों की पूर्ति होती थी और जर्मनी में संघीय सुधार के प्रश्न के साथ-साथ ज्यादातर लोग इसके समर्थन में थे। आस्ट्रिया ने दक्षिण जर्मन राज्यों के असंतोष का उपयोग कर जाॅल्वेरिन को समाप्त करने की कोशिश की और प्रशा की उदारवादी सीमा शुल्क नीति के खिलापफ दक्षिण जर्मन राज्यों की भावनाओं का अपने पक्ष में उपयोग करने की कोशिश की परंतु आस्ट्रिया शुल्क संघ में शामिल होकर दक्षिण जर्मन राज्यों को अधिक संरक्षणवादी नीति अपनाने के लिए उकसाना चाहता था लेकिन इसमें भी उसे सपफलता नहीं मिली। अशंतः इसका कारण यह था कि उत्तर जर्मनी के छोटे राज्य प्रशा से घिरे हुए थे और उन्हें आस्ट्रिया की इस प्रकार की संक्षणवादी नीति से पफायदा होने वाला नहीं था। बावेरिया और आस्ट्रिया के साथ राजनीतिक संबंध रखने के बावजूद सैक्सोनी जाॅल्वेरिन में बना रहा। दक्षिण जर्मन राज्य प्रशा की सीमा शुल्क नीति को मानने के लिए बाध्य हुए क्योंकि उत्तरी जर्मन राज्यों के बिना वे आस्ट्रिया के साथ शुल्क संघ में शामिल नहीं होना चाहते थे। चूंकि आस्ट्रियाई साम्राज्य के साथ शुल्क संघ में शामिल होने से उनका आर्थिक हित नहीं सघता था और चूँकि वे अलग-थलग नहीं रहना चाहते थे इसलिए छोटे दक्षिणी जर्मन राज्य भी जाॅल्वेरिन में बने रहे।
1866 में आस्ट्रिया से यु( करने से पहले बिस्मार्क ने अपनी नीतिगत कुशलता से अंतर्राष्ट्रीय स्थिति अपने पक्ष में कर ली। 1866 में प्रशा की विजय के बाद छोटे जर्मन राज्यों को जिस तरह उसने संभाला और 1867 में जिस प्रकार उत्तरी जर्मन परिसंघ का निर्माण किया उससे उसकी कूटनीतिक योग्यता और सपफलता का परिचय मिलता है। हैनोवर, हेसेका इलेक्टोटेट, नासू मिला लिए गए। दक्षिण जर्मन राज्यों के साथ गुप्त प्रतिरक्षात्मक और आÚातमक संधियां की गईं ताकि आस्ट्रिया और जर्मनी में यु( होने की स्थिति में संपूर्ण गैर आस्ट्रियाई जर्मन एकीकृत हो जाए। निस्संदेह Úांस के डर से छोटे दक्षिण जर्मन राज्य प्रशा में जा मिले। बंड्सरैथ या उत्तरी जर्मन परिसंघ के संघीय परिषद में प्रशा अल्पमत में था और छोटे राज्यों का बहुमत था। कुल 43 सदस्यों में प्रशा के केवल 17 सदस्य थे। हालांकि उत्तरी जर्मन परिसंघ ने संयुक्त निवेश नीति और सैन्य व्यवस्था कायम की परंतु छोटे-छोटे राज्यों की स्वतंत्राता को विशेष महत्व दिया।
दक्षिण परिसंघ के निर्माण की असपफलता से यह सि( हो गया था कि दक्षिणी राज्य अंततः बिस्मार्क के उत्तरी जर्मन परिसंघ में शामिल हो जाएंगे। हालांकि बैंडेनबर्ग इसमें शामिल होने का इच्छुक था परंतु बावेरिया और र्वेमबर्ग इसका विरोध कर रहे थे। 1870 में Úांस के साथ हुए यु( में प्रशा की विजय ने जर्मन साम्राज्य का निर्माण किया। दक्षिण जर्मन डायटों के अनुमोदन के बाद 1871 में चार दक्षिण राज्यों बावेरिया, वर्टेमबर्ग, बैंडेनवर्ग और हेस जम्रन साम्राज्य में शामिल हो गए। अब जर्मन साम्राज्य का संघीय रूप सामने आया।
डंामत व िळमतउमदलµबिस्मार्कµजर्मनी के एकीकरण से पहले 39 जर्मन राज्य, हिन्होंने प्राचीन पवित्रा रोमन साम्राज्य का स्थान लिया था, एक संगठन के रूप में एक साथ बंधे, जिसे जर्मन परिसंघ ;ब्वदमिकमतंजपवदद्ध कहा जाता था। इटलीवासियों की सपफलता ने जर्मनी में भी राष्ट्रवादी आकांक्षाओं को सबल बना दिया किंतु जर्मनी का एकीकरण वास्तव में एक कठिन कार्य था। जर्मनी में यह कार्य आॅओ वाॅन बिस्मार्क ;1815-1898द्ध द्वारा संपन्न किया गया, जिसने यूरोप के अलग तीस वर्ष के इतिहास को रूप प्रदान किया। बिस्मार्क ने अपना राजनीतिक जीवन 1848 के क्रांति-वर्ष में शाही विशेषधिकार के प्रबल समर्थक एवं रक्षक के रूप में प्रारंभ किया। इसके पुरस्कार स्वरूप, राजा विलियम प्रथम ने उसे जर्मन परिसंघ की Úैंकपफर्ट डायट में प्रशा के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया। Úैंकपफर्ट के बाद उसने सेंट पीटर्सबर्ग और पिफर पेरिस में प्रशा के राजदूत के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की। इसी बीच अपने ही देश में राजा विलयम प्रथम को प्रशा की संसद में उदारवादियों ;स्पइमतंसेद्ध की ओर से तकलीपफें सहनी पड़ रही थीं। संसद ने सेना में सुधार लाने के लिए धनराशि मंजूर करने से इंकार कर दिया था, जबकि सेना के जनरल बार-बार इसकी मांग कर रहे थे। इन परिस्थितियों में जब विलियम प्रथम राजगद्दी छोड़ने ही वाला था, तभी उसने चांसलर के पद का कार्यभार संभालने के लिए बिस्मार्क को वापस बुला लिया।
प्रारंभ से ही बिस्मार्क ने उदारवादियों से मिलकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी। उसने घोषित किया कि वर्तमान बड़े प्रश्नों को न तो संसद द्वारा और न ही संसदीय उपायों द्वारा हल किया जाएगा, ऽ बल्कि उन्हें ‘रक्त और लौह’ से यानी कठोरतापूर्वक सुलझाया जाएगा। सेना ने और अधिकांश नौकरशाओं ने उसकी नीतियों का समर्थन किया।
1863 के नए चुनावों में संसद में उदारवादियों को पुनः बहुमत मिल गया। इसलिए बिस्मार्क को उदारवादियों से जनता का समर्थन छीनकर राजतंत्रा था सेना के पख में करने के लिए कुछ और उपाय करने पड़े। इसके लिए उसने प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया। इस कार्य में उसने जनता का ध्यान घरेलू मामलों से हटाकर विदेशी मामलों की ओर मोड़ने में सपफलता प्राप्त की। 1864 में, उसने श्लेषविग और होल्स्टीन क्षेत्रों के प्रश्नों पर डेनमार्क के साथ यु( छेड़ दिया। ये दोनों क्षेत्रा कापफी लंबे समय से डेनमार्क के राजा द्वारा प्रशासित हो रहे थे। आस्ट्रियाइयों ने इस यु( में प्रशा का साथ दिया यह बिस्मार्क की कूटनीतिक सपफलता थी। आस्ट्रिया की मदद से जीते इस यु( के बाद बिस्मार्क ने डेनमार्क को इस क्षेत्रा से हटाकर आस्ट्रिया के साथ इन क्षेत्रों के प्रशासन में हिस्सेदारी कर ली। इस प्रकार उसने प्रशा के विरू( डेनमार्क को अकेला कर पराजित किया। दूसरी ओर इस घटना के बाद बिस्मार्क ने प्रशा तथा आस्ट्रिया के बीच यु( छिड़ जाने की स्थिति में Úांस तथा इटली का समर्थन प्राप्त करने के लिए उनसे अलग-अलग संधियाँ कर ली।
इसके बाद बिस्मार्क ने प्रशा और नए निगमित राज्यों को मिलाकर उत्तरी जर्मन परिसंघ ;छवतजी ळमतउंद ब्वदमिकमतंजपवदद्ध बनाया और प्रशा को इस परिसंघ का निर्विवाद नेता बना दिया। इस परिसंघ के संविधान में, जो 1871 के बाद जर्मन साम्राज्य का शासी दस्तावेज बन गया, निचले विधान सदन यानी राइस्वस्ेग की व्यवस्था की गई जिसका चुनाव साईजनिक पुरूष मताधिकार से होता था। यद्यपि यह एक जनतांत्रिक कदम दिखाई दिया किंतु वास्तव में बिस्मार्क की इच्छानुसार राइखस्टेग के पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं थी और उसके सदय जानते थे कि सेना हमेशा राजा और उसके मंत्राी का ही साथ देर्गी।
बिस्मार्क अब उस मौके का इंतजार कर रहा था। जब दक्षिणी जर्मनी के राज्यों को परिसंघ में लाकर एकीकरण की प्रक्रिया को पूरा करे और वह मौका भी एक जटिल कूटनीति के पफलस्वरूप उसे मिल गया जब प्रशा के विलियम प्रथम के चचेरे भाइ को स्पेन का शासक बनाने की संभावना उत्पन्न हो गई। Úांस ने इस विचार का विरोध किया। बिस्मार्क ने इस बातचीत के बारे में तैयार की गई एक प्रेस विज्ञप्ति का स्वयं इस प्रकार संपादन किया कि जिससे यह प्रतीत हो कि विलियम प्रथम ने Úांसीसी राजदूत का अपमान किया है, हालांकि यह बात सच नहीं थी। नेपोलियन तृतीय ;नेपोलियन बोनापार्ट का भतीजाद्ध की Úांसीसी सरकार तुरंत बिस्मार्क के झांसे में आ गई और जुलाई 1870 में Úांस ने प्रशा के विरू( यु( घोषित कर दिया। बिस्मार्क इसी मौके की तलाश में था, Úांस के साथ यु( छिड़ने पर उसने राष्ट्रवादी भावनाओं को उभारकर दक्षिणी जर्मनी के राज्यों को प्रशा का साथ देने को राजी कर लिया। 1 सितंबर 1870 को, सेडान की लड़ाई में, जर्मनी ने बिस्मार्क के नेतृत्व में न केवल Úांस की सेना को हराया, बल्कि नेपोलियन तृतीय को भी पकड लिया। सितंबर के अंतिम दिनों में पेरिस को भी घ्ेार लिया गया। अंततः 28 जनवरी 1871 को उसने घुटने टेक दिए। इससे पूर्व ही, 18 जनवरी 1871 को वर्साय के राजमहल के मुख्य कक्ष में एकीकृत जर्मन साम्राज्य की स्थापना की घोषणा की जा चुकी थी। नए संघ के अंतर्गत, दक्षिणी राज्यों के शासकों ने अपने-अपने राज्य के अध्यक्ष का पद संभाले रखा। इस प्रकार बिस्मार्क की रक्त एवं लौह नीति ने 19वीं शताब्दी में जर्मनी के एकीकरण द्वारा यूरोप के बीचो-बीच एक प्रबल एवं सशक्त राज्य की स्थापना कर दी। यद्यपि इसमें उदारवादी सरकार के कुछ विशिष्ट लक्षण थे, लेकिन बिस्मार्क की कल्पना के अनुकूल शक्ति का केंद्र राजतंत्रा तथा सैन्य तंत्रा ही बना रहा।

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