Friday, 22 December 2017

लोक प्रशासन पर विल्सन के विचार
वुडरो विल्सन को लोक प्रशासन के क्षेत्र में एक प्रारंभिक अथवा बीजीय (ैमउपदंस) व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। अपने प्रसिद्ध लेख ‘द स्टडी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन’ के माध्यम से उन्होंने न सिर्फ प्रशासन के वैज्ञानिक अध्ययन के प्रति रूचि जागृत की बल्कि प्रशासन के वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता पर भी बल दिया। उनका लेख सरकार के व्यवहार को विश्लेषणात्मक अध्ययन और सामान्यीकरण के क्षेत्र के रूप में रेखांकित करने वाला युगान्तकारी लेख था और माना जाता है कि लोक प्रशासन की खोज के विषय के रूप में शुरूआत यहीं से हुई। प्रशासन के अध्ययन के बारे में यह लेख उन्होंने उस वक्त लिखा जब उन्हें अमरीकी प्रशासन का कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं था। फिर भी उनके लेख का ‘अर्थपूर्ण दूरगामी प्रयास’ माना गया है।
वुडरो विल्सन ने प्रशासन संबंधी अपने विचारों का प्रतिपादन करते हुए उन कारणों की चर्चा की जिसके कारण लोक प्रशासन एक अध्ययन और जाँच (प्दअमेजपहंजपवद) क्षेत्र के रूप में विलम्ब से उभरा जबकि राजनीति विज्ञान, जिसका लोक प्रशासन उत्पाद या फल है, का उदय 2200 वर्ष पूर्व हुआ था। प्रशासन संबंधी अपने विचारों के प्रतिपादन में विल्सन के विचार पर वाल्टर वागेहॉट के विचारों का व्यापक प्रभाव पड़ा हालाँकि विल्सन का राजनीतिक दर्शन सबसे अधिक एडमंड बुर्के के विचार से प्रभावित हुआ था। जान हापकिन्स विश्वविद्यालय के प्रो- रिचर्ड ने विल्सन को प्रशासनिक अध्ययन के लिए प्रेरित और प्रभावित किया।
प्रशासन के सामान्य क्षेत्र से जनमानस को अवगत कराते हुए विल्सन ने अपने लेख में स्पष्ट किया कि प्रशासन के अध्ययन का विकास समाज में बढ़ती हुई जटिलताओं, राज्य के कार्यों में बढ़ोतरी और लोकतांत्रिक ढाँचों में सरकारो के विकास के परिणामस्वरूप हुआ। कार्यों का बढ़ता हुआ बोझ यह सोचने को विवश किया कि निरन्तर बढ़ते और जटिल होते कार्यों को किस प्रकार और किन दिशाओं में किया जाए। इन्हीं समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव देते हुए विल्सन ने कहा कि सरकारों में सुधार की आवश्यकता है और विशेषतौर पर प्रशासनिक क्षेत्र में। प्रशासनिक अध्ययन का उद्देश्य यह खोजना था कि सरकार सही तरह से और सफलतापूर्वक क्या कर सकती है और किस प्रकार इन कार्यों को सर्वाधिक सम्भव दक्षता तथा न्यूनतम सम्भावित धन और ऊर्जा की लागत से कर सकती है। इस अध्ययन का दूसरा उद्देश्य था कार्यकारी पद्धतियों को अनुभवजन्य (म्उचपतपबंस) प्रयागों तथा असमंजसता से बचाना और उन्हें स्थायी सिद्धान्तों की जड़ में छिपे हुए आधारों पर स्थापित करना। इसी कारण विल्सन ने कहा कि प्रशासन का एक विज्ञान होना चाहिए जो सरकार के मार्ग को शक्तिशाली बनाए, उसके कार्य कुछ कम सरकारी बनाए, उसके संगठन को शुद्धता और मजबूती दे तथा कर्त्तव्यपरायणता के साथ उसके कर्त्तव्यों को पूर्ण करे।
विल्सन के अनुसार प्रशासन सरकार का सर्वाधिक स्वभाविक और सुस्पष्ट अंग है। प्रशासन कार्यरत सरकार है। यह  कार्यकारी है, क्रियात्मक है और सबसे ज्यादा दृष्टिगोचर अंग है सरकार का। लेकिन चूँकि ‘कार्यरत सरकार’ राजनीति के विद्यार्थियों को प्रेरित नहीं करती इसलिए किसी ने भी प्रशासन का विधिवत अध्ययन आवश्यक नहीं समझा। इन्हीं कारणों से विल्सन ने प्रशासन के पृथक अध्ययन और राजनीति से प्रशासन के अलगाव पर बल दिया। उनका यह विश्वास था कि प्रशासन का क्षेत्र व्यवसाय का क्षेत्र है। इसलिए राजनीति के कार्यकर्ताओं को प्रशासन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। शुद्ध प्रशासनिक कार्यों में किया गया राजनीतिक हस्तक्षेप एक भयानक पाप है, विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों में। विल्सन का मानना था कि लोक प्रशासन के विषय संविधान निर्माताओं के विषय से भिन्न होते हैं। संविधान बनाने से कहीं ज्यादा कठिन उसे चलाना होता है। उनके अनुसार संविधान में निहित सिद्धान्त ऐसे अवश्य होने चाहिए जो प्रशासनिक प्रक्रियाओं और कार्यों को सरल बना सकें। प्रशासनिक सिद्धान्त और विचारधारा के साथ सांविधानिक मूल्य का सामंजस्यपूर्ण होना चाहिए। हालाँकि यह सर्वदा सरल नहीं होता। अपने इस राजनीति प्रशासन द्विभाजन संबंधी विचारों के प्रतिपादन में विल्सन पूर्ण स्पष्टता प्रदर्शित नहीं कर पाते क्योंकि कई स्थानों पर वह इन दोनों के बीच निर्भरता और घनिष्ठ संबंध दर्शाने का भी प्रयत्न करते हैं। उनके इस विचार पर आगे के विचारकों के विचार भी भिन्न हैं। जहाँ एक तरफ मोशर का मानना है कि विल्सन ने राजनीति-प्रशासन द्विभाजन पर सबसे शक्तिशाली वक्तव्य दिया वहीं दूसरी ओर रिग्स के अनुसार विल्सन को कोई भ्रम नहीं था कि प्रशासनिक विकास राजनीतिक शून्य में नहीं हो सकता क्योंकि प्रशासनिक कार्यों को राजनीतिक साधनों द्वारा बनाई नई सामान्य नीतियों के कार्यान्वयन के सिवाए देखना मुश्किल है।
विल्सन के अनुसार प्रशासन के विज्ञान में धीमी गति से प्रगति का कारण यू-एस-ए- में व्याप्त लोक संप्रभुता थी। उनकी धारणा थी कि राजतंत्र की तुलना में लोकतंत्र में प्रशासन को संगठित करना कठिन कार्य है। जब भी लोकमत सरकारी सिद्धान्तों पर प्रभावी होंगे प्रशासनिक सुधार की गति धीमी होगी और अवांछनीय समझौते करने होंगे। उनके अनुसार जब तक किसी देश के संविधान से खिलवाड़ (पिदबमतमसल) बन्द नहीं होता, तब तक प्रशासन पर ध्यान केन्द्रित करना बहुत मुश्किल है।
लोक प्रशासन की विषय-वस्तु और विशेषताओं की चर्चा करते हुए विल्सन ने लोक प्रशासन को पारिभाषित किया। उनके अनुसार लोक प्रशासन विधि का विस्तृत और व्यवस्थित प्रयोग है। समान्य विधि का हर विशिष्ट प्रयोग प्रशासन का कार्य है। उनके अनुसार सरकारी कार्यवाही की विस्तृत योजनाएँ प्रशासनिक नहीं होती हालाँकि ऐसी योजनाओं का विस्तृत प्रयोग प्रशासनिक अवश्य होता है। यह भिन्नता सामान्य योजनाओं और प्रशासनिक माध्यमों के बीच का है। विल्सन लोक प्रशासन में प्रबंधकीय दृष्टिकोण के महान समर्थक थे, इसके बावजूद कि उनकी यह मान्यता थी कि प्रशासनिक सिद्धान्तों को उन मूल्यों, विचारों और प्रतिमानों के अनुरूप होना चाहिए जिन पर संविधान आधारित है। उनके अनुसार प्रशासन के अध्ययन को व्यवसाय प्रशासन के केन्द्रीय तत्वों यथा दक्षता, मितव्ययिता और प्रभावशीलता से संबंधित या सदृश होना चाहिए। लोक प्रशासन के कार्य और निजी प्रशासन के कार्य दोनों एक-दूसरे के समान हैं। अतः दोनों में कोई मौलिक अन्तर पर दृष्टिकोण परिवर्तन उचित नहीं।
विल्सन यू-एस-ए- में लोक सेवा सुधार के अग्रणी विचारकों में एक थे। उन्होंने राजनीतिक तटस्था और पेशेवर योग्यता रखने वाले लोक सेवा समूह का दृष्टिकोण प्रतिपादित किया। यह कहा जा सकता है कि विल्सन के मन में एक आधुनिक कार्मिक प्रशासन का बौद्धिक आधार था। यों तो विल्सन का विश्वास था कि प्रशासक सिद्धान्ततः राजनीतिक प्रक्रियाओं में शामिल नहीं होते फिर भी वे ऐसे नौकरशाही अभिजन वर्ग या बुर्जुआ वर्ग का विरोध करते थे जो लोकतांत्रिक नियंत्रण के अधीन न हों। उनके अनुसार भर्ती के तरीकों में किए गए सुधार को कार्यकारी कार्यों और कार्यकारी संगठनों और उनकी कार्यवाही की पद्धतियों पर भी लागू किया जाना चाहिए। निकोलस हेनरी ने कहा है कि विल्सन ने लोक कर्त्तव्य के नैतिक अर्थ को लोकसेवा की अवधारणा की सीमा से अलग हटकर विस्तार देने का प्रयास किया और वह भी लोक प्रशासन के सम्पूर्ण क्षेत्र में।
समाज में प्रशासन की बढ़ती महत्ता से प्रेरित होकर विल्सन ने प्रशासकों के एक योग्य व दक्ष समूह को तैयार करने के लिए औपचारिक प्रशासनिक व्यवस्था की आवश्यकता पर बल दिया। उनके अनुसार प्रशिक्षण पाठ्यक्रम को प्रशासनिक सिद्धान्तों और तकनीकों के स्व-प्रमाणित सत्य के अध्ययन और प्रयोग पर बल देना चाहिए।
विल्सन का विचार था कि तुलनात्मक पद्धति प्रशासन के क्षेत्र से ज्यादा कहीं और सहायक नहीं हो सकती। उन्होंने दार्शनिक पद्धति को अस्वीकार कर ऐतिहासिक और तुलनात्मक पद्धति पर बल दिया और कहा कि सरकारों के तुलनात्मक अध्ययन के बगैर इस गलतफहमी से मुक्ति नहीं मिल सकती कि लोकतांत्रिक और अन्य राज्यों में प्रशासन के आधार अलग-अलग होते हैं। किसी पद्धति या व्यवस्था की कमजोरियों, गुणों और विशेषताओं को अन्य व्यवस्थाओं से तुलना किए बगैर समझना सम्भव नहीं। यह डर दूर करते हुए कि तुलनात्मक पद्धति से विदेशी पद्धति के आयात का मार्ग प्रशस्त होगा, विल्सन ने कहा कि ‘‘अगर मैं किसी खूनी को चाकू तेज करता हुआ देखूँ तो मैं खून करने के उसके सम्भावित उद्देश्य को लिए बगैर उसके चाकू तेज करने की कला सीख सकता हूँ।’’ अतः यूरोपीय एकतंत्रें से दक्ष प्रशासनिक पद्धति को उनके एकतंत्रीय भावना और लक्ष्य को स्वीकार्य किए बगैर सीखा जा सकता है और निश्चित रूप से सीखा जाना चाहिए। अगर लोकतंत्र को इतना योग्य और ताकतवर बनाता है कि वह आन्तरिक और बाह्य बलों से प्राप्त अराजकता की चुनौतियों का सामना कर सके।
निष्कर्षतः लोक प्रशासन संबंधी विल्सन के चिंतन को सारांश रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है -
(प) समाज कल्याण और हित के लिए प्रशासन की महत्ता लगातार बढ़ रही है।
(पप) प्रशासन को ‘विज्ञान’ के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
(पपप) मनुष्य प्रशासनिक सिद्धान्तों और तकनीकों को सीख सकता है और उसे प्रशिक्षित किया जा सकता है।
(पअ) प्रशासन के कार्य निष्पक्ष, विस्तृत और प्रबंधनीय हैं।
(अ) ऐसी प्रशासनिक प्रक्रियाएँ और तकनीक हैं जो सार्वभौमिक रूप से प्रयोग योग्य हैं और इस तरह से सभी आधुनिक सरकारों के लिए समान (बवउउवद) हैं।
(अप) प्रशासन ज्ञान का एक क्षेत्र है जिसे महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में प्राप्त किया जा सकता है।
(अपप) प्रशासन राजनीति से पृथक है।
(अपपप) प्रशासनिक अध्ययन में दूसरी सरकारों का अनुभव भी शामिल किया जाना चाहिए।
विल्सन के विचारों की आलोचना
प्रथमतः लोक प्रशासन का अध्ययन विल्सन के विचार के आने के पहले से ही हो रहा था। यह विषय 1880 के दशक में यूरोप में काफी विकसित था और इस विषय पर यूरोपीय साहित्य का ही इस्तेमाल अमरीकी विद्वानों ने किया। लोक प्रशासन का शैक्षणिक क्षेत्र फ्रांस में 1812 से 1859 के बीच परिपक्व अवस्था में था। विल्सन ने खुद स्वीकार किया है कि उनके राजनीति-प्रशासन द्विभाजन संबंधी विचार का स्रोत ब्लंशली था। साथ ही साथ यह भी एक तथ्य है कि विल्सन के लेख को 1930 के दशक के पूर्व लगभग किसी भी विद्वान ने नहीं पढ़ा था।
द्वितीयतः विल्सन प्रतिपादन राजनीति-प्रशासन द्विभाजन संबंधी विचार उसके जर्मनी के स्रोतों के गलत अध्ययनों पर आधारित था। इस कारण वह यूरोपीय वृतांत से मौलिक रूप से भिन्न था। अपनी इसी त्रुटि को महसूस करते हुए विल्सन ने अपने लेख के प्रकाशन के तीन वर्ष के भीतर ही राजनीति-प्रशासन द्विभाजन संबंधी विचार का परित्याग कर दिया।
तृतीयतः विल्सन का लेख अतिसामान्य, अति व्यापक और अति अस्पष्ट था। विल्सन कई मुद्दों पर असमंजसता की स्थिति में थे और उन्होंने उत्तर देने की अपेक्षा प्रश्न ज्यादा खड़े किए। वह यह स्पष्ट करने में विफल रहे कि प्रशासन के अध्ययन में क्या शामिल हो या फिर राजनीतिक क्षेत्रें और प्रशासन के बीच सही संबंध क्या हो या प्रशासन विज्ञान कभी प्राकृतिक विज्ञान की तरह विज्ञान बन पाएगा अथवा नहीं। ऐसी स्थिति में यह आशंका उत्पन्न होती है कि क्या विल्सन स्वयं ठीक से यह जानते थे कि लोक प्रशासन वास्तव में क्या है। हाल के शोध कार्यों ने इस धारणा पर भी प्रश्न उठाए हैं कि विल्सन ने ही लोक प्रशासन को शैक्षणिक विषय बनाया। बान रिपर ने तो अमेरिकी प्रशासनिक अध्ययन के पहले विवरणों को अन्य जन्मदाताओं की उपज मानकर विल्सन और उनके लेख को इससे संबंधित किसी भी जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया है।
उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद अंततः यह कहना अनुचित होगा कि लोक प्रशासन के क्षेत्र में विल्सन की भूमिका शून्य थी। वे अमेरीकी इतिहास के उदार विचारक थे और उदार पूंजीवाद के प्रति प्रतिबद्ध थे। उन्होंने अपना लेख उस वक्त लिखा जब अमेरीका ने पेशेवर विशेषज्ञ लोक सेवा के विचार को खोजा ही था और 1883 में पेंडेल्टन एक्ट कानून का रूप लिया था। उस वक्त अमेरीका को प्रासंगिक अनुभवों की खोज में बाहरी देशों की ओर देखना आवश्यक था और इस खातिर विल्सन ने तुलनात्मक अध्ययन की इच्छा व आवश्यकता पर बल दिया। वे एक आधुनिकीकर्त्ता (उवकमतदपेमत) के रूप में उभरे। वे चाहते थे प्रशासन में अभिरूचि बढ़ाना और उसे न्यायोचित ठहराना। अपने ‘सबसे विशिष्ट’ लेख के माध्यम से उन्होंने न केवल ‘‘प्रशासन के विचार’’ प्रस्तुत किए बल्कि लोक प्रशासन को एक सामान्य विषय के तौर पर स्थापित भी किया।

Tuesday, 12 December 2017

नव लोक प्रबंधन

पिछले सौ वर्षों के इतिहास में लोक प्रशासन समय के साथ-साथ स्वयं में      परिवर्तनों को आत्मसात् करता हुआ विकसित होता रहा है। बदलते परिदृश्य के साथ-साथ सामाजिक और व्यावहारिक विज्ञान के क्षेत्र में हुए शोध कार्यों ने यद्यपि व्यवस्था का संवर्द्धित किया है परन्तु मूलभूत सिद्धान्त एक ही रहे हैं। समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप लोक प्रशासन प्रगति को प्राप्त नहीं कर सका है। आज का समाज संक्रमणकाल से गुजर रहा है। बाजार और मुद्रा, राजनीति और जनता का वैश्वीकरण भयावह संदिग्धता अस्पष्टता से ओत-प्रोत है। वैश्वी एकीकरण बनाम राष्ट्रीय संप्रभुता के वाद-प्रतिवाद का विश्लेषण समय का प्रचलन है।
1980 के शुरूआत से सरकारी संस्थाओं की प्रकृति, उनके कार्य और व्यवहार विश्व भर में अप्रत्याशित रूप से बदलते जा रहे हैं। इस प्रकार के परितर्वनों के प्रेरक तत्व हैं -
(प) तकनीकी खोज
(पप) राज्य और राज्य संगठनों की भूमिका के निदर्शनात्मक (च्ंतंकपहउंजपब) पुनर्निश्चयन (तंकमपिदपजपवद) का प्रयास।
(पपप) संधि आधारित अधिराष्ट्रीय संस्थानों का विकास।
(पअ) अपने प्रतियोगी देशों के तीव्र आर्थिक विकास से उत्पन्न अपने राष्ट्रीय संप्रभुता/सुरक्षा के संदर्भ में कुछ राष्ट्रों द्वारा खतरा महसूस करना।
उपर्युक्त प्रेरक तत्वों के साथ परिवर्तनशील परिस्थिति में लोक प्रशासन के एक नए प्रतिमान ‘नव लोक प्रबंधन’ का उदय हुआ है। यह नया प्रतिमान लोक संगठनों के उद्यमशील भूमिका पर बल देता है। नए प्रतिमान के विकास के साथ यह अनुभव किया गया है कि आधुनिक विश्व की बढ़ती जटिलताओं के साथ राज्य की शक्ति समाज की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान में सीमित होती जा रही है। समय के बढ़ते क्रम में सरकार ने स्वयं अनेक उत्तरदायित्व ले लिए हैं जिसे समाज के साथ बाँटा जा सकता है। अपनी दक्षता और कुशलता बनाए रखने के लिए उसे स्वयं को सीमित करना चाहिए।
इस तरह यह नया प्रतिमान नए परिवर्तनों का समर्थन करता है। इन अपेक्षित परिवर्तनों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है - (प) व्यापक परिवर्तन (डंबतव बींदहमे) तथा सूक्ष्म परिवर्तन (डंबतव बींदहमे)। व्यापक परिवर्तन लोक संगठनों की संरचना और कार्य में परिवर्तन से संबंधित है जबकि सूक्ष्म परिवर्तन लोक संगठनों के प्रदर्शन सुधार के लिए उनके कार्यों में अधिक से अधिक प्रबंधकीय तत्वों को लाने से संबंधित है। दोनों ही प्रकार के परिवर्तनों का मूल उद्देश्य लोक संगठन को उपभोक्ता केन्द्रित, बहिर्दृष्टियुक्त और लागत-सचेतन बनाना है। इसलिए नव लोक प्रबंधन तीन श्म्श् की अवधारणा को कार्यान्वित करना चाहता है - दक्षता (मिपिबपमदबल)ए प्रभावशीलता (मिमिबजपअमदमेे) और मितव्ययिता (म्बवदवउल)। इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं -
1- प्रबंधन निष्पादन मूल्यांकन तथा दक्षता
2- सार्वजनिक अधिकारीतंत्रें को उन अभिकरणों को विभाजित करना जो उपभोक्ता-भुगतान आधार (नेमत-चंल इेंपे) पर परस्पर कार्य करेंगे।
3- अर्ध-बाजार (ुनेंप-उंतामज) का उपयोग तथा प्रतिस्पर्धा के लिए ठेके पर देना।
4- लागत-कटौती लोक प्रशासन को कम खर्चीला बनाने के लिए।
5- प्रबंधन की एक शैली जो अन्य विषयों के साथ-साथ उत्पादन लक्ष्य, अल्पावधि ठेके, आर्थिक प्रोत्साहन तथा प्रबन्धन की स्वतंत्रता पर बल देती है।
अपनी उपर्युक्त विशेषताओं के साथ नव लोक प्रबंधन ने राज्य के क्रियाकलापों पर सशक्त प्रभाव बनाया है और लोकप्रिय नई तकनीकों के मजबूत अभिव्यक्ति का सरकार की योग्यता/क्षमता पर गहरा और दीर्घकालीन प्रभाव पड़ेगा। विशेषकर सेवा प्रदान करने और संसाधन एकत्रीकरण में। यद्यपि ‘नव लोक प्रबंधन’ की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका अभी तक सहर्ष  प्रयुक्त नहीं है (वहाँ ‘रि-इन्वेंटिंग’ और ‘उत्तर नौकरशाही सुधार प्रतिमान’ शब्द बहुतायत में प्रयुक्त होते हैं) तथापि यूरोप में प्रशासनिक संरचना और संस्कृति को पुनर्पारिभाषित करने के प्रयास को वर्णित करने के लिए इसका व्यापक प्रयोग हो रहा है। ऑस्वार्न और गैवलर ने नव लोक प्रबंधन के दस लक्ष्य या सिद्धान्त बताए हैं। ये हैं -
1- उत्प्रेरक सरकार (ब्ंजंसलजपब ळवअजण्): सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और स्वयंसेवी संस्थाओं को उत्प्रेरित (ब्ंजंसलेंजपवद) करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए तथा उन्हें सामाजिक समस्याओं के समाधान में लगाना चाहिए एवं स्वयं को मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।
2- समुदाय स्वामित्व सरकार (ब्वउउनदपजल-वूदमक ळवअजण्): सरकार को नागरिकों, परिवारों और समुदायों को शक्ति सम्पन्न बनाना चाहिए जिससे वे अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान कर सकें।
3- प्रतियोगी सरकार (ब्वउचमजमजपअम ळवअजण्): सरकार को विभिन्न उपलब्धकर्त्ताओं के मध्य प्रतियोगिता की भावना विकसित करनी चाहिए। इससे लागत कम होगी और प्रतियोगिता बढे़गी।
4- लक्ष्य निर्देशित सरकार (डपेेपवद क्तपअमद ळवअजण्): सरकार को लक्ष्य द्वारा निर्देशित होना चाहिए न कि नियमों व विनियमों द्वारा।
5- प्रतिफल उन्मुखी सरकार (त्मेनसज वतपमदजमक ळवअजण्): सरकार को लक्ष्य उपलब्धि को बढ़ावा देकर प्रतिफल पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और प्रदर्शन का मापन करना चाहिए।
6- उपभोक्ता निर्देशित सरकार (ब्वदेनउमत क्तपअमद ळवअजण्): सरकार को ग्राहक के प्रति ध्यान केन्द्रीकृत करना चाहिए न कि नौकरशाही के प्रति। ग्राहक को विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए तथा उसकी अभिरूचि का सर्वेक्षण करना चाहिए और उन्हें सुझाव देने को प्रेरित करना चाहिए।
7- उपक्रम सरकार (म्दजमतचतपेपदह ळवअजण्): सरकार को राजस्व प्राप्त करने पर ज्यादा व व्यय पर कम बल देना चाहिए।
8- पूर्वाभासी सरकार (।दजपबपचंजवतल ळवअजण्): सरकार को समस्याओं की पहचान और उसकी रोकथाम करने पर ज्यादा बल देना चाहिए न कि उसके बढ़ने या उसके इलाज पर।
9- विकेन्द्रीकृत सरकार (क्मबमदजतंसपेमक ळवअजण्): सरकार को प्राधिकार विकेन्द्रीकृत करना चाहिए।
10- बाजार उन्मुखी सरकार (डंतामज वतपमदजमक ळवअजण्): सरकार को नौकरशाही तंत्र की अपेक्षा बाजारी तंत्र को अपनाना चाहिए।
उपर्युक्त लक्ष्यों के साथ विश्व के विभिन्न देशों में ‘नव लोक प्रबंधन’ की अवधारणा को लागू किया जा रहा है। अनेक पश्चिमी देशों में नव लोक प्रबंधन तकनीक के कार्यान्वयन ने लोक क्षेत्रें के एजेंसीकरण बाजारीकरण और निजीकरण में नाटकीय वृद्धि की है। हालाँकि यह भी सही है कि यह सभी मामलों के साथ नहीं है। आस्टेªलिया का अनुभव ब्रिटेन से भिन्न रहा है तो खुद ब्रिटेन का अन्य यूरोपीय संघीय देशों, कनाडा या अमेरिका से भिन्न रहा है। नव लोक प्रबंधन एजेंसीकरण को बढ़ावा देकर लोक क्षेत्र को लचीला, अस्थिर और अल्प ढाँचागत बनाना चाहता है। वास्तव में लोक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बीच की सीमाएँ अनुबंधीकरण और संविदाकार प्रमुख/एजेंट संबंधों की उपच्छाया (च्मदनउइतं) में समाविष्ट हो गई हैं। आज इस अवधारणा की परिभाषा को निरंतर परिस्कृत और अद्यतन बनाया जा रहा है। नौकरशाही नियमों और पदसोपानों में कमी, बजट पारदर्शिता तथा आगत और निर्गत के लागत की पहचान, संविदा संजाल का उपयोग, संगठनों और उनके कार्यों का असंकलन (कपेंहहतमहंजम), प्रबंधक प्रतियोगिता बढ़ाना और उपभोक्ता की शक्ति बढ़ाना आज नव लोक प्रबंधन की माँग है। आधुनिक निजी क्षेत्र व्यवसाय तकनीकों कीदक्षता माँग तथा लागत-कटौती तर्क और नव लोक प्रबंधन की सहवर्ती (बवदबवउपजंदज) गतिशीलता या गतिकी ने बाजारीकरण को और अधिक बढ़ाया है तथा अब लोक सेवा और वस्तुओं की उपलब्धता विश्व बाजार में कार्यरत बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से ही होती है। अतः यह कहा जा सकता है कि नव लोक प्रबंधन ने अपने चपटे (सिंजजमदमक) पदसोपान, संविदा पर विश्वास, व्यक्तिगत पहल और निजी क्षेत्र के लिए गए प्रबंधकीय तकनीक से पुरानी पद्धति की अक्षमता और अप्रभावशीलता को मिटा दिया जो विधि-तार्किक नियमों पर केन्द्रित होती थी। हालाँकि यहाँ स्पष्ट करना उचित होगा कि नव लोक प्रबंधन के समर्थकों ने यह भुला दिया कि जटिल और प्रायः बोझिल पदसोपानों की स्थापना, भाई-भतीजावाद, अन्याय, अनुत्तरदायित्व और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ही हुआ था।
पुरातन नौकरशाही के नव लोक प्रबंधन द्वारा नियमित व स्थिर प्रतिस्थापन के साथ व्यवसायियों तथा विद्वतपरिषद् द्वारा सरकार के केन्द्रीय कार्य की परिभाषा माँगी जा रही है। नीति-निर्माण प्रक्रियाओं में वरिष्ठ कैरियर अधिकारियों की वास्तविक आगत भी कम हो रही है। उनकी भूमिका और सलाह अमेरिकी राष्ट्रपति रीगन, बुश और लींटन के समय में अतिअनिश्चित बनी रही। चूँकि नव लोक प्रबंधन बाजार उदार नीति विश्लेषण का अनुकूलित, गैर राजनीतिक रूप है, इसलिए ज्यादा तकनीकपूर्ण, सहमतिजन्य और जातीय (हमदमतपब) है। इस उपागम की छाप नीति और प्रशासकीय समाधान का मिश्रण है जिसमें असंकलन (कपेंहहतंहंजपवद), प्रतियोगिता और उद्यीपतीकरण पर बल दिया जाता है।
निष्कर्ष: नव लोक प्रबंधन की अद्यतन अवधारणा सरकार की अधिकतम भूमिका और उसके केन्द्रीय विशिष्ट कार्यों को नागरिकों की ओर से एक अभिज्ञ या समझदार उपभोक्ता के रूप में पहचान रही है। साथ-ही-साथ यह अवधारणा जनहित को अधिकतम बनाने हेतु निजी क्षेत्र द्वारा आपूर्ति कराए जा रहे सेवाओं के क्रेता के रूप में भी प्रस्तुत कर रही है। लेकिन उदार लोकतांत्रिक सरकारों के ये नए रूप उनकी मूल व केन्द्रीय योग्यता को ही समाप्त कर देंगे और एक खोखला या निरर्थक राज्य का उदय हो जाएगा यदि कुछ विशिष्ट कदम न उठाए गए या कोई मार्गदर्शिका नहीं तैयार की गई।