इटली का एकीकरण
1848 से 1875 तक के 25 वषों में, यूरोप में अनेक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुअए। ये राजनीतिक परिवर्तन तीन आदर्श शब्दों ‘‘स्वतंत्राता, समानता और भ्रातृत्व’’ पर आधारित थे। इन शब्दों का अर्थ था व्यक्तिगत राजनीतिक स्वतंत्राता, आर्थिक समानता और राष्ट्रीय एकता के आधार पर भ्रात्व पानी भाईचारे की भावना। इस समय इटली एक राष्ट्र नहीं, मात्रा भौगोलिक अभिव्यक्ति था और कई राज्यों में बंटा हुआ था। इटली के राष्ट्रवादी लोग बहुत समय से चाह तरे थे कि इटली के प्रायद्वीप के छोटे-छोटे निरंकुशतावादी राजे-रजवाड़े एक बड़े राज्य के रूप में समेकित हो जाएं, लेकिन इस उद्देश्य को प्राप्त करने के साधनों के बारे में सहमति नहीं बन पा रही थी। एक ओर, धार्मिक विचारधारा वाले देशभक्तों के विचार से सबसे व्यवहारिक हल यह था कि पोप की प्रधानता में इटली के राज्यों का एक संघ बना दिया जाए। दूसरी ओर, उदार राष्ट्रवादी, एक संवैधानिक राजतंत्रा का समर्थन कर रहे थे।
इतालवी राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमिµइटली में राष्ट्रवाद का उदय वस्तुतः 1830 और 1840 के दशक में हुआ जिसे शनैः शनैः व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ और अंततः 18वीं शताब्दी के अंत में इटली के एकीकारण के रूप में इसे वास्तविक अभिव्यक्ति प्राप्त हुई। इतालव राष्ट्रवाद की सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक पृष्ठभूमि ने इस राष्ट्रवादी भावना को समग्रता में अभिक्त किया।
सांस्कृतिक पृष्ठभूमिµपुनर्जागरण काल और उससे पहले से ही इटली के विचार के रूप में इटली का अस्तित्व कायम था। इतालवी भाषा को एक सौम्य और सुंदर भाषा के रूप में देखा जाता था और इतालवी राज्यों की आम सांस्कृतिक जड़ों की बात की जाती थी। होली रोमन साम्राज्य और पोप प्रथा के पतन के बाद Úांसिस्कों पेट्रार्क जैसे साहित्यकारों ने इटली के लिए साहित्यिक देशभक्ति का नेतृत्व किया। 14वीं शताब्दी में कोला दी रियान्जों ने रोम की छत्राछाया में पूरे इटली को एकीकृत करने का प्रयास किया। 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इटली के राजनीतिक क्षेत्रा पर राजनीकि वर्चस्व स्थापित करने के लिए Úांसीसी, स्विस और जर्मन सेनाओं के बीच लगातार संघर्ष चलता रहा। इन यु(ों ने शासकीय वर्गों की चेतना को प्रभावित किया।
1500 ई. के आस-पास हुए इतालवी यु(ों के दौरान उपयुक्त साहित्यिक भाषा का प्रश्न महत्वपूर्ण रूप से उभरकर सामने आया। रोग और मिलान, उर्बिनों और मनतुआ के दरबारियों के बीच बहस शुरू हुई। इस बहस में ऐसी साहित्यिक भाषा पर विचार किया जाने लगा जो बोबियों से ऊपर उठकर इटली को एक सर्वमान्य भाषा दे सके और इस प्रकार पूरे इतालवी उपमहाद्वीप को एक भाषा देने का प्रयास किया जाने लगा। इटली पर सैन्य आक्रमण होने के पफलस्वरूप एकीकृत साहित्यिक देशी भाषा के लिए अभियान शुरू हुआ। इस बहस के आरंभ से ही इतालवी भाषा में लिखे गए साहित्य को लैटिन से अग श्रेष्ठ नहीं तो उसके समकक्ष माना गया। भाषाई श्रेष्ठता के भाव ने एक राष्ट्रवादी चेतना के निर्माण में मदद की।
राजनैतिक पृष्ठभूमिµ18वीं शताब्दी के अंत में Úांसीसी क्रांति ने इतालवी राष्ट्रवाद के लिए एक आदर्श पेश किया। जिस समय लोम्बार्डी में Úांसीसी सेना का आधिपत्य था उस समय उन्होंने इटली के लिए मुक्त सरकार के सर्वोत्तम रूप विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता आयोजित की। इससे एक बहस की शुरूआत हुई जिसमें इटली की प्राचीन महिमा का गुणगान किया गया, Úांस और 1795 के इसके संविधान की प्रशंसा की गई और इतालवी पुनरूद्वार और एकीकारण की योजना बनाई गई। इस बहस ने इटली के एकीकरण के संबंध में भिन्न-भिन्न लोगों की भिन्न आकांक्षाओं को अभिव्यक्त भी किया। एक ओर जहां नरमपंथी राष्ट्रवादियों ने एकीकरण की धीमी प्रक्रिया का समर्थन किया और सिसैल्पाइन गणतंत्रा के आत्मशासित इतालवी राज्य के आदर्श को सामने रखा नहीं उग्र सुधारवादियों ने केंद्रीकरण और क्रांतिकारी राष्ट्र-राज्य का पक्ष लिया।
नेपोलियन द्वारा निर्मित इटली राज्य से भी इतालवी राष्ट्रवादी भावना को उभारने में मदद मिली किंतु 1806 में महाद्वीपीय व्यवस्था लागू होने के बाद इटली Úांस का उपनिवेश बन गया। इटली का बजट कापफी बढ़ गया और इसका आधे से अधिक हिस्सा Úांस के सैनिक खर्चे और अंशदान में खर्च होने लगा। लेकिन इसके साथ ही नेपोलियन के कानूनी नियमों और प्रांतीय व्यवस्था के कारण इटली में राष्ट्र राज्य का नया आदर्श विकसित हुआ। इटली में बु(िवाद के दौरान नौकरशाहों, मजिस्ट्रेटों, वैधानिक और वित्तीय विशेषज्ञों का उदय हुआ और इन्हें नेपोलियन व्यवस्था में कापफी महत्व मिला।
इटली का एकीकरण
1848 से 1875 तक के 25 वषों में, यूरोप में अनेक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुअए। ये राजनीतिक परिवर्तन तीन आदर्श शब्दों ‘‘स्वतंत्राता, समानता और भ्रातृत्व’’ पर आधारित थे। इन शब्दों का अर्थ था व्यक्तिगत राजनीतिक स्वतंत्राता, आर्थिक समानता और राष्ट्रीय एकता के आधार पर भ्रात्व पानी भाईचारे की भावना। इस समय इटली एक राष्ट्र नहीं, मात्रा भौगोलिक अभिव्यक्ति था और कई राज्यों में बंटा हुआ था। इटली के राष्ट्रवादी लोग बहुत समय से चाह तरे थे कि इटली के प्रायद्वीप के छोटे-छोटे निरंकुशतावादी राजे-रजवाड़े एक बड़े राज्य के रूप में समेकित हो जाएं, लेकिन इस उद्देश्य को प्राप्त करने के साधनों के बारे में सहमति नहीं बन पा रही थी। एक ओर, धार्मिक विचारधारा वाले देशभक्तों के विचार से सबसे व्यवहारिक हल यह था कि पोप की प्रधानता में इटली के राज्यों का एक संघ बना दिया जाए। दूसरी ओर, उदार राष्ट्रवादी, एक संवैधानिक राजतंत्रा का समर्थन कर रहे थे।
इतालवी राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमिµइटली में राष्ट्रवाद का उदय वस्तुतः 1830 और 1840 के दशक में हुआ जिसे शनैः शनैः व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ और अंततः 18वीं शताब्दी के अंत में इटली के एकीकारण के रूप में इसे वास्तविक अभिव्यक्ति प्राप्त हुई। इतालव राष्ट्रवाद की सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक पृष्ठभूमि ने इस राष्ट्रवादी भावना को समग्रता में अभिक्त किया।
सांस्कृतिक पृष्ठभूमिµपुनर्जागरण काल और उससे पहले से ही इटली के विचार के रूप में इटली का अस्तित्व कायम था। इतालवी भाषा को एक सौम्य और सुंदर भाषा के रूप में देखा जाता था और इतालवी राज्यों की आम सांस्कृतिक जड़ों की बात की जाती थी। होली रोमन साम्राज्य और पोप प्रथा के पतन के बाद Úांसिस्कों पेट्रार्क जैसे साहित्यकारों ने इटली के लिए साहित्यिक देशभक्ति का नेतृत्व किया। 14वीं शताब्दी में कोला दी रियान्जों ने रोम की छत्राछाया में पूरे इटली को एकीकृत करने का प्रयास किया। 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इटली के राजनीतिक क्षेत्रा पर राजनीकि वर्चस्व स्थापित करने के लिए Úांसीसी, स्विस और जर्मन सेनाओं के बीच लगातार संघर्ष चलता रहा। इन यु(ों ने शासकीय वर्गों की चेतना को प्रभावित किया।
1500 ई. के आस-पास हुए इतालवी यु(ों के दौरान उपयुक्त साहित्यिक भाषा का प्रश्न महत्वपूर्ण रूप से उभरकर सामने आया। रोग और मिलान, उर्बिनों और मनतुआ के दरबारियों के बीच बहस शुरू हुई। इस बहस में ऐसी साहित्यिक भाषा पर विचार किया जाने लगा जो बोबियों से ऊपर उठकर इटली को एक सर्वमान्य भाषा दे सके और इस प्रकार पूरे इतालवी उपमहाद्वीप को एक भाषा देने का प्रयास किया जाने लगा। इटली पर सैन्य आक्रमण होने के पफलस्वरूप एकीकृत साहित्यिक देशी भाषा के लिए अभियान शुरू हुआ। इस बहस के आरंभ से ही इतालवी भाषा में लिखे गए साहित्य को लैटिन से अग श्रेष्ठ नहीं तो उसके समकक्ष माना गया। भाषाई श्रेष्ठता के भाव ने एक राष्ट्रवादी चेतना के निर्माण में मदद की।
राजनैतिक पृष्ठभूमिµ18वीं शताब्दी के अंत में Úांसीसी क्रांति ने इतालवी राष्ट्रवाद के लिए एक आदर्श पेश किया। जिस समय लोम्बार्डी में Úांसीसी सेना का आधिपत्य था उस समय उन्होंने इटली के लिए मुक्त सरकार के सर्वोत्तम रूप विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता आयोजित की। इससे एक बहस की शुरूआत हुई जिसमें इटली की प्राचीन महिमा का गुणगान किया गया, Úांस और 1795 के इसके संविधान की प्रशंसा की गई और इतालवी पुनरूद्वार और एकीकारण की योजना बनाई गई। इस बहस ने इटली के एकीकरण के संबंध में भिन्न-भिन्न लोगों की भिन्न आकांक्षाओं को अभिव्यक्त भी किया। एक ओर जहां नरमपंथी राष्ट्रवादियों ने एकीकरण की धीमी प्रक्रिया का समर्थन किया और सिसैल्पाइन गणतंत्रा के आत्मशासित इतालवी राज्य के आदर्श को सामने रखा नहीं उग्र सुधारवादियों ने केंद्रीकरण और क्रांतिकारी राष्ट्र-राज्य का पक्ष लिया।
नेपोलियन द्वारा निर्मित इटली राज्य से भी इतालवी राष्ट्रवादी भावना को उभारने में मदद मिली किंतु 1806 में महाद्वीपीय व्यवस्था लागू होने के बाद इटली Úांस का उपनिवेश बन गया। इटली का बजट कापफी बढ़ गया और इसका आधे से अधिक हिस्सा Úांस के सैनिक खर्चे और अंशदान में खर्च होने लगा। लेकिन इसके साथ ही नेपोलियन के कानूनी नियमों और प्रांतीय व्यवस्था के कारण इटली में राष्ट्र राज्य का नया आदर्श विकसित हुआ। इटली में बु(िवाद के दौरान नौकरशाहों, मजिस्ट्रेटों, वैधानिक और वित्तीय विशेषज्ञों का उदय हुआ और इन्हें नेपोलियन व्यवस्था में कापफी महत्व मिला। हालांकि इतालवी सेना में सैनिकों की जबर्दस्ती भर्ती की गई और इसका उपयों नेपोलियन के अभियानों के लिए किया जाता था परंतु इससे भी राष्ट्रवाद की भावना उभरी। यह Úांसीसी आधिपत्य के खिलापफ एक प्रतिक्रिया थी। शाही रोम के साथ-नेपोलियन के जुड़ाव के कारण भी इटली के लेखकों ने रोमन विरासत को अस्वीकार कर दिया।
इटली में आस्ट्रिया का अधिपत्य था। नेपोलियन की पराजय के बाद आस्ट्रिया का नियंत्राण और भी मजबूत हो गया। जर्मन परिसंघ की तर्ज पर इतालवी परिसंघ के लिए मेटरनिख के प्रस्ताव का पीडमौंट तथा पोप के पराशर्मदाताओं ने विरोध किया। 1815 के बाद गुप्त संस्टाओं ने इतालवी जैकोबिन परंपराओं के समर्थकों को अपनी जोर आकर्षित किया। कार्बोनरी और अन्य गुप्त संस्थाओं का सरोकार केवल इतालवी राष्ट्रवाद से ही था। दक्षिण इटली के कार्बोनरी को 19वीं शताब्दी के क्रांतिकारी संगठनों में जनता का सबसे अधिक समर्थन प्राप्त था जो इटली के एकीकरण की बजाय नेपल्स के जनतांत्राीकरण में अधिक रूचि रखते थे। हालांकि नेपल्स में कार्बोनरी के उग्र सुधारवादी सदस्य पोप के राज्यों और पीडमौट में लोम्बार्डी और 4 इटली के अन्य भागों में क्रांति को पफैलाना चाहते थे परंतु सैनिक षडंयत्रा बहुत सपफल नहीं हुए और 1820-21 की क्रांतियों की असपफलता के बाद कापफी लोगों को देश निकाला दिया गया और उन्हें ब्रिटेन भेज दिया गया।
1830-31 की Úांतियों की असपफलता के बाद ;खासतौर पर मोडेना और बोलोग्ना मेंद्ध इटलीवासियों ने तीव्रता से यह महसूस किया कि उन्हें अपने ही प्रयत्नों पर निर्भर रहना होगा और आंदोलन की खुली विधि-अपनानी होगी। ज्यूसेप मेजिनी ने युवा इटली की शुरूआत की ओर क्रांतिकारी तानाशाही तथा आतंकवाद के कट्टरपंथी नमूने को अस्वीकार कर दिया। मेजिनी एक जनंतात्रिक राष्ट्रवादी था जिसने हमेशा परमपंथियों के संभ्रांतवाद और जैकोबिनों के क्रांतिकारी तानाशाही के आदर्श का विरोध किया। मेजिनी का राष्ट्रवाद विशिष्ट नहीं था और वे सभी राष्ट्रों की स्वतंत्राता के बाद यूरोप के संयुक्त राज्यों के उदय में विश्वास रखते थे। हालांकि वे राष्ट्रीय स्वतंत्राता के लिए जन संग्राम में विश्वास रखते थे परंतु उनका यह भी मानना था कि सार्वभौम मताधिकार मेजिनी ने जनसंग्राम में किसानों के समर्थन के महत्व को समझा परंतु इटली के गणतंत्रा कभी भी शहर और गांवों के अंतर को पाट नहीं सके।
इटली में कई राज्य थे जो Úांसीसी-आस्ट्रियाई शत्राुता के संबंध में अपनी स्वायत्तता और विशेषाधिकार सुरक्षित रखना चाहते थे। इटली में राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया इन्हीं पर आधारित थी। इसी में से एक राज्य था पीडमौंट जिसके राजा चाल्र्स उलबर्ट ने उदारवाद या देशाक्ति किसी भी पक्ष में 1840 तक अपना झुकाव नहीं प्रदर्शित किया। चाल्र्स एल्बर्ट ;1831-1849द्ध एक संकीर्णतावादी राजा था जो मेटरनिख व्यवस्था से पर हेज नहीं रखता था और इटली में क्रांति को रोकने के लिए आस्ट्रिया की पफौज का उपयोग करने में उसके सामने कोई दुविधा नहीं थी। Úांस में आल्प्स से आगे के क्षेत्रा पर भी एल्बर्ट ने अपना दावा किया था और उसने नेपल्स के राजा द्वारा प्रस्तावित इतालवी राज्यों के संघ में शामिल होने से इंकार कर दिया। 1847 में इतालवी राज्यों को एक-दूसरे के निकट लाने के प्रथम चरण के रूप में पोंप ने सीमा शुल्क संघ के निर्माण का प्रस्ताव रखा। टस्कनी का शासक लियोपोल्ड इस संघ में शामिल होने के लिए राजी हो गया किंतु पीडमौंट ने इसे नहीं माना। पोप के दूत कार्बोली बस्सि ने स्पष्ट किया कि पोप इटली की एकता के लिए नरमपंथी मांगों को स्वीकार कर क्रांतिकारियों और एकीकृत इतालवी गणतंत्रा के समर्थकों को रोकना चाहते हैं। वास्तव में इटली में वर्चस्व स्थापित करने के लिए पीडमौंट और आस्ट्रिया के बीच चल रहे संघर्ष में पोप नेतृत्व की बागडोर पीडमौंट को सौपने के लिए तैयार थे।
आर्थिक पृष्ठभूमिµजर्मनी के समान इटली का राष्ट्रीय आंदोलन मजबूत औद्योगिक बुर्जुआ वर्ग पर आधारित नहीं था। जर्मनी की तुलना में इटली के राजनीतिक एकीकरण के पहले आर्थिक एकीकरण का स्तर कापफी कम था तथा इटली के सीमा शुल्क संघ की जर्मन जाॅल्वरिन से कोई तुलना ही नहीं की जा सकती। दक्षिणी इटली का पिछड़ापन एक अन्य गंभीर आर्थिक समस्या थी। 18वीं शताब्दी और 19वीं शताब्दी के मध्य के बीच इतालवली अर्थव्यवस्था के कुछ विद्वानों का यह मानना था कि इटली में कोई एक विशिष्ट एकीकृत अर्थव्यवस्था नहीं थी। 17वीं शताब्दी के दौरान इटली की अर्थव्यवस्था में पतन आने के बावजूद वहां की स्थिति पूर्व-औद्योगिक यूरोप या अन्य महाद्वीपों के समान अल्पविकसित अर्थव्यवस्था नहीं थी।
इटली के आर्थिक और राजनीतिक विकास का विश्लेषण करते समय उत्तरी क्षेत्रा के पीडमौंट और लोम्बार्डी की समृ(ि की तुलना हमेशा एक कम आधुनिकीकृत दक्षिण क्षेत्रा से की जाती है। इटली के औद्योगीकरण और राष्ट्रवाद पर विचार करने वाल इतिहासकारों ने इटली के इस क्षेत्राीय आर्थिक असंतुलन को एकीकरण में सबस बड़ी बाधा माना है। इटली की आर्थिक विकास दर और राजनीतिक समस्याओं पर विचार करने वाले विद्वानों ने दक्षिण की समस्याओं का भी विवेचन किया था। उसके अनुसार इन असमानताओं के कारण इटली का एकीकरण होने के बाद अनेक समस्याएं सामने आईं। इतालवी राज्य ने दोहरी नीति अपनाई परंतु यह अपनी समस्याओं का समाधान भी नहीं कर सकी।
सबसे पहले 1850 क दशक में पीडमौंट में काबूर द्वारा लागू किए गए सीमा शुल्क आर व्यापार समझौते को एकीकृ राज्य में लागू किया गया। 1862-63 के Úांस क साथ हुए समुद्री और व्यापार समझौतों के बाद इंग्लिश मुक्त व्यापार के तर्ज पर सीमा शुल्क को कम किया गया। यह तर्क दिया गया कि एकीकरण के दौरान ब्रिटेन और Úांस द्वारा राजनैतिक और सैनिक सहायता देने के एवज में मुक्त व्यापार नीतियां अपनाई गई। विदेशी बाजार में इटली के निर्चात की पहुंच बढ़ाने और विदेशी पूंजी तथा औद्योगिकी को आकर्षित करने के लिए भी मुक्त व्यापार अपनाया गया। लेकिन इस तरह के प्रयासों को विशेश असपफलता नहीं मिल सकी और इटली की क्षत्राीय असंतुलन, द्वैधता, पिछड़पन आदि से जुड़ी समस्याओं को दूर नहीं किया जा सका।
धार्मिक पृष्ठभूमिµइटली के सांस्कृतिक और राजनैतिक जीवन में कैथोलिक चर्च ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इतिहासकारों और साहित्यकारों ने राष्ट्रवाद के विचार और चर्च के बीच मेल-मिलाप कराने की कोशिश की। पीडमौंट के पुरोहित विन्सेन्जो जियाबर्टी ने पोप की अध्यक्षता में इटली परिसंधा बनाने की बात की। 1846 आर 1848 की क्रांति के बीच की अवधि में जियोबर्टी और मेजिनी के विचारों में मेल होने की संभावना दीख रही थी। अप्रैल 1848 में जब पोप पायस ने कैथोलिक आस्ट्रिया क खिलापफ राष्ट्रीय यु( से अपना समर्थन वापस ले लिया तो उन्हें इटली में राष्ट्रवादी विचार का समर्थन भी खोना पड़ा। हालांकि उदारवादी कैथोलिक आंदोलन ने पाप के विरोध क बावजूद कैथोलिकवाद क साथ राष्ट्रवाद क मल-मिलाप के विचार को आगे बढ़ाने में मदद की। हालांकि 1848 में पीडमौंट क राजा की अपेक्षा पोप सीमा शुल्क संघ बनाने के लिए ज्यादा उत्सुक थे। परंतु वे जनता की चेतना का जगाने क लिए अपनी नैतिक सत्ता का उपयोग करने के पक्ष में नहीं थे। अप्रैल 1848 के उपदेश क बाद पोप ने यह घोषणा की कि वह आस्ट्रिया के साथ राजनैतिक संघ बनाने की संभावना कल्पना मात्रा रह गई। इसके जवाब में पोप के मंत्राी ने यह तर्क दिया कि पीडमौंट के विस्तार और इटली की स्वायत्तता को एक दूसरे का पर्याय नहीं माना जाना चाहिए। रोम मं हुई क्रांति और पोप के पलायन के बाद रोमन गणतंत्रा की स्थापना हुई। Úांसीसी और आस्ट्रियाई सेनाओं की मदद से पाप जून 1849 में वापस लौटने में सपफल रहा। इटली के एकीकारा के समय पोप और कैथोलिक चर्च ने संकीर्णतावादी भूमिका निभाई। सांसारिक क्षेत्रा में हारने के बाद पोप ने अपन धर्मावलंबियों को राष्ट्रीय राजनीति में भाग लेने से मना कर दिया।
एकीकरण की प्रक्रियाµकाउंट कावर के नेतृत्व में पीडमौंट-सार्डीनिया ने इटली के एकीकरण का नेतृत्व किया और इसमें मेजिनी और गैरीबाल्डी के नेत्त्व में जनसंगठन का समर्थन प्राप्त हुआ। हालांकि इस प्रक्रिया में जन-संगठन की महत्वपूर्ण इटली का एकीकरण
1848 से 1875 तक के 25 वषों में, यूरोप में अनेक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुअए। ये राजनीतिक परिवर्तन तीन आदर्श शब्दों ‘‘स्वतंत्राता, समानता और भ्रातृत्व’’ पर आधारित थे। इन शब्दों का अर्थ था व्यक्तिगत राजनीतिक स्वतंत्राता, आर्थिक समानता और राष्ट्रीय एकता के आधार पर भ्रात्व पानी भाईचारे की भावना। इस समय इटली एक राष्ट्र नहीं, मात्रा भौगोलिक अभिव्यक्ति था और कई राज्यों में बंटा हुआ था। इटली के राष्ट्रवादी लोग बहुत समय से चाह तरे थे कि इटली के प्रायद्वीप के छोटे-छोटे निरंकुशतावादी राजे-रजवाड़े एक बड़े राज्य के रूप में समेकित हो जाएं, लेकिन इस उद्देश्य को प्राप्त करने के साधनों के बारे में सहमति नहीं बन पा रही थी। एक ओर, धार्मिक विचारधारा वाले देशभक्तों के विचार से सबसे व्यवहारिक हल यह था कि पोप की प्रधानता में इटली के राज्यों का एक संघ बना दिया जाए। दूसरी ओर, उदार राष्ट्रवादी, एक संवैधानिक राजतंत्रा का समर्थन कर रहे थे।
इतालवी राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमिµइटली में राष्ट्रवाद का उदय वस्तुतः 1830 और 1840 के दशक में हुआ जिसे शनैः शनैः व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ और अंततः 18वीं शताब्दी के अंत में इटली के एकीकारण के रूप में इसे वास्तविक अभिव्यक्ति प्राप्त हुई। इतालव राष्ट्रवाद की सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक पृष्ठभूमि ने इस राष्ट्रवादी भावना को समग्रता में अभिक्त किया।
सांस्कृतिक पृष्ठभूमिµपुनर्जागरण काल और उससे पहले से ही इटली के विचार के रूप में इटली का अस्तित्व कायम था। इतालवी भाषा को एक सौम्य और सुंदर भाषा के रूप में देखा जाता था और इतालवी राज्यों की आम सांस्कृतिक जड़ों की बात की जाती थी। होली रोमन साम्राज्य और पोप प्रथा के पतन के बाद Úांसिस्कों पेट्रार्क जैसे साहित्यकारों ने इटली के लिए साहित्यिक देशभक्ति का नेतृत्व किया। 14वीं शताब्दी में कोला दी रियान्जों ने रोम की छत्राछाया में पूरे इटली को एकीकृत करने का प्रयास किया। 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इटली के राजनीतिक क्षेत्रा पर राजनीकि वर्चस्व स्थापित करने के लिए Úांसीसी, स्विस और जर्मन सेनाओं के बीच लगातार संघर्ष चलता रहा। इन यु(ों ने शासकीय वर्गों की चेतना को प्रभावित किया।
1500 ई. के आस-पास हुए इतालवी यु(ों के दौरान उपयुक्त साहित्यिक भाषा का प्रश्न महत्वपूर्ण रूप से उभरकर सामने आया। रोग और मिलान, उर्बिनों और मनतुआ के दरबारियों के बीच बहस शुरू हुई। इस बहस में ऐसी साहित्यिक भाषा पर विचार किया जाने लगा जो बोबियों से ऊपर उठकर इटली को एक सर्वमान्य भाषा दे सके और इस प्रकार पूरे इतालवी उपमहाद्वीप को एक भाषा देने का प्रयास किया जाने लगा। इटली पर सैन्य आक्रमण होने के पफलस्वरूप एकीकृत साहित्यिक देशी भाषा के लिए अभियान शुरू हुआ। इस बहस के आरंभ से ही इतालवी भाषा में लिखे गए साहित्य को लैटिन से अग श्रेष्ठ नहीं तो उसके समकक्ष माना गया। भाषाई श्रेष्ठता के भाव ने एक राष्ट्रवादी चेतना के निर्माण में मदद की।
राजनैतिक पृष्ठभूमिµ18वीं शताब्दी के अंत में Úांसीसी क्रांति ने इतालवी राष्ट्रवाद के लिए एक आदर्श पेश किया। जिस समय लोम्बार्डी में Úांसीसी सेना का आधिपत्य था उस समय उन्होंने इटली के लिए मुक्त सरकार के सर्वोत्तम रूप विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता आयोजित की। इससे एक बहस की शुरूआत हुई जिसमें इटली की प्राचीन महिमा का गुणगान किया गया, Úांस और 1795 के इसके संविधान की प्रशंसा की गई और इतालवी पुनरूद्वार और एकीकारण की योजना बनाई गई। इस बहस ने इटली के एकीकरण के संबंध में भिन्न-भिन्न लोगों की भिन्न आकांक्षाओं को अभिव्यक्त भी किया। एक ओर जहां नरमपंथी राष्ट्रवादियों ने एकीकरण की धीमी प्रक्रिया का समर्थन किया और सिसैल्पाइन गणतंत्रा के आत्मशासित इतालवी राज्य के आदर्श को सामने रखा नहीं उग्र सुधारवादियों ने केंद्रीकरण और क्रांतिकारी राष्ट्र-राज्य का पक्ष लिया।
नेपोलियन द्वारा निर्मित इटली राज्य से भी इतालवी राष्ट्रवादी भावना को उभारने में मदद मिली किंतु 1806 में महाद्वीपीय व्यवस्था लागू होने के बाद इटली Úांस का उपनिवेश बन गया। इटली का बजट कापफी बढ़ गया और इसका आधे से अधिक हिस्सा Úांस के सैनिक खर्चे और अंशदान में खर्च होने लगा। लेकिन इसके साथ ही नेपोलियन के कानूनी नियमों और प्रांतीय व्यवस्था के कारण इटली में राष्ट्र राज्य का नया आदर्श विकसित हुआ। इटली में बु(िवाद के दौरान नौकरशाहों, मजिस्ट्रेटों, वैधानिक और वित्तीय विशेषज्ञों का उदय हुआ और इन्हें नेपोलियन व्यवस्था में कापफी महत्व मिला। हालांकि इतालवी सेना में सैनिकों की जबर्दस्ती भर्ती की गई और इसका उपयों नेपोलियन के अभियानों के लिए किया जाता था परंतु इससे भी राष्ट्रवाद की भावना उभरी। यह Úांसीसी आधिपत्य के खिलापफ एक प्रतिक्रिया थी। शाही रोम के साथ-नेपोलियन के जुड़ाव के कारण भी इटली के लेखकों ने रोमन विरासत को अस्वीकार कर दिया।
इटली में आस्ट्रिया का अधिपत्य था। नेपोलियन की पराजय के बाद आस्ट्रिया का नियंत्राण और भी मजबूत हो गया। जर्मन परिसंघ की तर्ज पर इतालवी परिसंघ के लिए मेटरनिख के प्रस्ताव का पीडमौंट तथा पोप के पराशर्मदाताओं ने विरोध किया। 1815 के बाद गुप्त संस्टाओं ने इतालवी जैकोबिन परंपराओं के समर्थकों को अपनी जोर आकर्षित किया। कार्बोनरी और अन्य गुप्त संस्थाओं का सरोकार केवल इतालवी राष्ट्रवाद से ही था। दक्षिण इटली के कार्बोनरी को 19वीं शताब्दी के क्रांतिकारी संगठनों में जनता का सबसे अधिक समर्थन प्राप्त था जो इटली के एकीकरण की बजाय नेपल्स के जनतांत्राीकरण में अधिक रूचि रखते थे। हालांकि नेपल्स में कार्बोनरी के उग्र सुधारवादी सदस्य पोप के राज्यों और पीडमौट में लोम्बार्डी और 4 इटली के अन्य भागों में क्रांति को पफैलाना चाहते थे परंतु सैनिक षडंयत्रा बहुत सपफल नहीं हुए और 1820-21 की क्रांतियों की असपफलता के बाद कापफी लोगों को देश निकाला दिया गया और उन्हें ब्रिटेन भेज दिया गया।
1830-31 की Úांतियों की असपफलता के बाद ;खासतौर पर मोडेना और बोलोग्ना मेंद्ध इटलीवासियों ने तीव्रता से यह महसूस किया कि उन्हें अपने ही प्रयत्नों पर निर्भर रहना होगा और आंदोलन की खुली विधि-अपनानी होगी। ज्यूसेप मेजिनी ने युवा इटली की शुरूआत की ओर क्रांतिकारी तानाशाही तथा आतंकवाद के कट्टरपंथी नमूने को अस्वीकार कर दिया। मेजिनी एक जनंतात्रिक राष्ट्रवादी था जिसने हमेशा परमपंथियों के संभ्रांतवाद और जैकोबिनों के क्रांतिकारी तानाशाही के आदर्श का विरोध किया। मेजिनी का राष्ट्रवाद विशिष्ट नहीं था और वे सभी राष्ट्रों की स्वतंत्राता के बाद यूरोप के संयुक्त राज्यों के उदय में विश्वास रखते थे। हालांकि वे राष्ट्रीय स्वतंत्राता के लिए जन संग्राम में विश्वास रखते थे परंतु उनका यह भी मानना था कि सार्वभौम मताधिकार मेजिनी ने जनसंग्राम में किसानों के समर्थन के महत्व को समझा परंतु इटली के गणतंत्रा कभी भी शहर और गांवों के अंतर को पाट नहीं सके।
इटली में कई राज्य थे जो Úांसीसी-आस्ट्रियाई शत्राुता के संबंध में अपनी स्वायत्तता और विशेषाधिकार सुरक्षित रखना चाहते थे। इटली में राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया इन्हीं पर आधारित थी। इसी में से एक राज्य था पीडमौंट जिसके राजा चाल्र्स उलबर्ट ने उदारवाद या देशाक्ति किसी भी पक्ष में 1840 तक अपना झुकाव नहीं प्रदर्शित किया। चाल्र्स एल्बर्ट ;1831-1849द्ध एक संकीर्णतावादी राजा था जो मेटरनिख व्यवस्था से पर हेज नहीं रखता था और इटली में क्रांति को रोकने के लिए आस्ट्रिया की पफौज का उपयोग करने में उसके सामने कोई दुविधा नहीं थी। Úांस में आल्प्स से आगे के क्षेत्रा पर भी एल्बर्ट ने अपना दावा किया था और उसने नेपल्स के राजा द्वारा प्रस्तावित इतालवी राज्यों के संघ में शामिल होने से इंकार कर दिया। 1847 में इतालवी राज्यों को एक-दूसरे के निकट लाने के प्रथम चरण के रूप में पोंप ने सीमा शुल्क संघ के निर्माण का प्रस्ताव रखा। टस्कनी का शासक लियोपोल्ड इस संघ में शामिल होने के लिए राजी हो गया किंतु पीडमौंट ने इसे नहीं माना। पोप के दूत कार्बोली बस्सि ने स्पष्ट किया कि पोप इटली की एकता के लिए नरमपंथी मांगों को स्वीकार कर क्रांतिकारियों और एकीकृत इतालवी गणतंत्रा के समर्थकों को रोकना चाहते हैं। वास्तव में इटली में वर्चस्व स्थापित करने के लिए पीडमौंट और आस्ट्रिया के बीच चल रहे संघर्ष में पोप नेतृत्व की बागडोर पीडमौंट को सौपने के लिए तैयार थे।
आर्थिक पृष्ठभूमिµजर्मनी के समान इटली का राष्ट्रीय आंदोलन मजबूत औद्योगिक बुर्जुआ वर्ग पर आधारित नहीं था। जर्मनी की तुलना में इटली के राजनीतिक एकीकरण के पहले आर्थिक एकीकरण का स्तर कापफी कम था तथा इटली के सीमा शुल्क संघ की जर्मन जाॅल्वरिन से कोई तुलना ही नहीं की जा सकती। दक्षिणी इटली का पिछड़ापन एक अन्य गंभीर आर्थिक समस्या थी। 18वीं शताब्दी और 19वीं शताब्दी के मध्य के बीच इतालवली अर्थव्यवस्था के कुछ विद्वानों का यह मानना था कि इटली में कोई एक विशिष्ट एकीकृत अर्थव्यवस्था नहीं थी। 17वीं शताब्दी के दौरान इटली की अर्थव्यवस्था में पतन आने के बावजूद वहां की स्थिति पूर्व-औद्योगिक यूरोप या अन्य महाद्वीपों के समान अल्पविकसित अर्थव्यवस्था नहीं थी।
इटली के आर्थिक और राजनीतिक विकास का विश्लेषण करते समय उत्तरी क्षेत्रा के पीडमौंट और लोम्बार्डी की समृ(ि की तुलना हमेशा एक कम आधुनिकीकृत दक्षिण क्षेत्रा से की जाती है। इटली के औद्योगीकरण और राष्ट्रवाद पर विचार करने वाल इतिहासकारों ने इटली के इस क्षेत्राीय आर्थिक असंतुलन को एकीकरण में सबस बड़ी बाधा माना है। इटली की आर्थिक विकास दर और राजनीतिक समस्याओं पर विचार करने वाले विद्वानों ने दक्षिण की समस्याओं का भी विवेचन किया था। उसके अनुसार इन असमानताओं के कारण इटली का एकीकरण होने के बाद अनेक समस्याएं सामने आईं। इतालवी राज्य ने दोहरी नीति अपनाई परंतु यह अपनी समस्याओं का समाधान भी नहीं कर सकी।
सबसे पहले 1850 क दशक में पीडमौंट में काबूर द्वारा लागू किए गए सीमा शुल्क आर व्यापार समझौते को एकीकृ राज्य में लागू किया गया। 1862-63 के Úांस क साथ हुए समुद्री और व्यापार समझौतों के बाद इंग्लिश मुक्त व्यापार के तर्ज पर सीमा शुल्क को कम किया गया। यह तर्क दिया गया कि एकीकरण के दौरान ब्रिटेन और Úांस द्वारा राजनैतिक और सैनिक सहायता देने के एवज में मुक्त व्यापार नीतियां अपनाई गई। विदेशी बाजार में इटली के निर्चात की पहुंच बढ़ाने और विदेशी पूंजी तथा औद्योगिकी को आकर्षित करने के लिए भी मुक्त व्यापार अपनाया गया। लेकिन इस तरह के प्रयासों को विशेश असपफलता नहीं मिल सकी और इटली की क्षत्राीय असंतुलन, द्वैधता, पिछड़पन आदि से जुड़ी समस्याओं को दूर नहीं किया जा सका।
धार्मिक पृष्ठभूमिµइटली के सांस्कृतिक और राजनैतिक जीवन में कैथोलिक चर्च ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इतिहासकारों और साहित्यकारों ने राष्ट्रवाद के विचार और चर्च के बीच मेल-मिलाप कराने की कोशिश की। पीडमौंट के पुरोहित विन्सेन्जो जियाबर्टी ने पोप की अध्यक्षता में इटली परिसंधा बनाने की बात की। 1846 आर 1848 की क्रांति के बीच की अवधि में जियोबर्टी और मेजिनी के विचारों में मेल होने की संभावना दीख रही थी। अप्रैल 1848 में जब पोप पायस ने कैथोलिक आस्ट्रिया क खिलापफ राष्ट्रीय यु( से अपना समर्थन वापस ले लिया तो उन्हें इटली में राष्ट्रवादी विचार का समर्थन भी खोना पड़ा। हालांकि उदारवादी कैथोलिक आंदोलन ने पाप के विरोध क बावजूद कैथोलिकवाद क साथ राष्ट्रवाद क मल-मिलाप के विचार को आगे बढ़ाने में मदद की। हालांकि 1848 में पीडमौंट क राजा की अपेक्षा पोप सीमा शुल्क संघ बनाने के लिए ज्यादा उत्सुक थे। परंतु वे जनता की चेतना का जगाने क लिए अपनी नैतिक सत्ता का उपयोग करने के पक्ष में नहीं थे। अप्रैल 1848 के उपदेश क बाद पोप ने यह घोषणा की कि वह आस्ट्रिया के साथ राजनैतिक संघ बनाने की संभावना कल्पना मात्रा रह गई। इसके जवाब में पोप के मंत्राी ने यह तर्क दिया कि पीडमौंट के विस्तार और इटली की स्वायत्तता को एक दूसरे का पर्याय नहीं माना जाना चाहिए। रोम मं हुई क्रांति और पोप के पलायन के बाद रोमन गणतंत्रा की स्थापना हुई। Úांसीसी और आस्ट्रियाई सेनाओं की मदद से पाप जून 1849 में वापस लौटने में सपफल रहा। इटली के एकीकारा के समय पोप और कैथोलिक चर्च ने संकीर्णतावादी भूमिका निभाई। सांसारिक क्षेत्रा में हारने के बाद पोप ने अपन धर्मावलंबियों को राष्ट्रीय राजनीति में भाग लेने से मना कर दिया।
एकीकरण की प्रक्रियाµकाउंट कावर के नेतृत्व में पीडमौंट-सार्डीनिया ने इटली के एकीकरण का नेतृत्व किया और इसमें मेजिनी और गैरीबाल्डी के नेत्त्व में जनसंगठन का समर्थन प्राप्त हुआ। हालांकि इस प्रक्रिया में जन-संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका थी परंतु संभ्रांत वर्ग ने जनता की भागीदारी को कम-से-कम करने का प्रयास किया। हालांकि मेजिनी को जनसंग्राम की अवधारणा में विश्वास था परंतु वह कृषकों को एकजुट करने में असपफल रहा। 1820-21, 1830-31 और 1848-49 की क्रांतियों की असपफलता के बाद गणतंत्राीय राष्ट्रवादी विचारधारा सामने आई और इटली की एकता के लिए अधिक उदारवादी कावूर के साथ समझौता किया गया। इतालवी राष्ट्रीय समाज ने 1857 से कावूर और गणतंत्राीय राष्ट्रवादियों के साथ कभी मूक तो कभी खुल समझौता किया। इसी समझौते के तहत कावूर ने एक और गैरिबल्डी को स्वतंत्राता संग्राम के सेनानियों को तैयार करने के लिए कहा और दूसरी ओर गैरिबाल्डी 1860 में ‘इटली और विक्टर इमैन्युअल’ के नेतृत्व में लड़ने के लिए राजी हुआ। वस्तुतः 1860 के आरंभ में गैरिबाल्डी में स्वयंसेवी सेनानियों को जुटाने की क्षमता थी और विक्टर इमैन्युअल और पीडमौंट की सरकार ने गुप्त रूप से नेपोलियन प्प्प् की सरकार के खिलापफ अभियान में नेतृत्व ग्रहण करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया।
प्रक्रियाµइटली में एकीकरण पूर्व के दौर में अनेक जन-आंदोलन हुए किंतु यह भी सत्य है कि सभी प्रकार के जन-आंदोलन और सामूहिक हिंसा का संबंध प्रमुख राजनैतिक संकटों से नहीं था बल्कि वह प्रत्यक्षतः भोजन के लिए हुए दंगों, हिंसक हड़तालों, कर विद्रोहों, और भूमि पर सामूहिक कब्जा किए जाने जैसी गैर-राजनीतिक घटनाओं से सम्ब( था जो संकट के वर्षों में अनियमितताओं के कारण पैदा हुई थीं।
1830 और 1840 में पिफलाडेल्पफी था युवा इटली जैसे गुप्त संगठन सक्रिय थे। 1820-21 मं क्यूरिन, नेपल्स, पैलेरमो और आल्प्स क्षेत्रों में कई विद्रोह हुए और 1828-31 के दौरान पिफर से कई विद्रोह हुए और अगले दो वर्षों तक उनका प्रभाव बना रहा। सिसली, नेपल्स, वेनिस, बोम्बार्डी और पैपेल राज्यों में स्थायी तौर पर बुर्जुआ क्रांतियां हुईं जिनमें सड़कों पर दंगे हुए, भोजन के लिए दंगा हुआ तथा भूमि संबंधी दस्तावेजों और कर कार्यालयों को नष्ट किया गया। मजदूरों और किसानों ने 1848-49 में क्रांतिकारी शासन व्यवस्थाओं के खिलापफ विद्रोह किया जो शहरों में रोटी और रेाजगार तथा ग्रामीण इलाकों में जमीन के वितरण की उनकी मांग को पूरा करने में असमर्थ रही। क्रांतिकारी शासन व्यवस्थाओं द्वारा आरोपित आदेश का बहादुरी से हिसात्मक विरोध किया गया। मध्यवर्ग अपने लिए जनतांत्रिक संविधान चाहता था। शहर में रहने वाले निर्धनों, मजदूरों, और किसानां ने उनकी कराधान और सेना में जबर्दस्ती भर्ती नीतियों का जमकर विरोध किया। 1848-49 की क्रांतियां थीं पर यह राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि सीमित क्षेत्रों तक ही सीमित थीं। इन छिट-पुट और असंयोजित विद्रोहों का पीडमौट के राजतंत्रा और स्थानीय अभिजात्य वर्गों क गठबंधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। असल समस्या यह थी कि डेमोक्रेट्स ग्रामीण इलाकों से समर्थन जुटाने में असपफल रहे। मजिनी के प्रयत्नों के बावजूद उनक विचारों का प्रभाव ग्रामीण इलाकों पर नहीं पड़ा और वे शहर और गांवों के भेद को कम करने में सपफल नहीं रहे। इसका एक कारण यह भी था कि वे उग्र सुधारवादी रूढ़िवादी पुरोहितों की अपेक्षा किसानों क कम निकट संपर्क में थे। गणतंत्रावादियों को किसानों का समर्थन इसलिए भी नहीं मिला क्योंकि उनमें देशभक्ति का संचार करने के लिए भूमिपतियों ने किसी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं दिया। 1848-49 की क्रांतियों असपफल रहीं परंतु रोम में मजिनी और गैरिबाल्डी द्वारा तथा वेनिस में मेनिन द्वारा वीरतापूर्वक गणतंत्रा की रक्षा करने से इतालवी राष्ट्रवाद और वामपंथ को बढ़ावा मिला। इटली में 1848 की क्रांतियों और गणतंत्रों की रक्षा के प्रतीकात्मक महत्व के कारण इटली के एकीकरण और राजनीतिक सुधारों पर दूरगामी प्रभाव पड़ा।
कुस्टोजा ;जुलाई 1848द्ध और नोवारा ;मार्च 1848द्ध के यु(ों की हार से उबरने में इटली को ज्यादा समय नहीं लगा। भविष्य में आस्ट्रिया से यु( की स्थिति में ब्रिटेन और Úांस का समर्थन प्राप्त करने के लिए कावूर उनके प्रतिनिधि के रूप में 1855 में क्रीमिया यु( शामिल हुआ। कावूर के सैनिक अधिकारी ने यह घोषणा की थी कि क्रामिया के गर्भ से ही इटली का जन्म होगा। हालांकि क्रीमिया यु( में शामिल होकर इटली को कोई प्रत्यक्ष लाभ तो नहीं हुआ लेकिन उसे 1856 में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी समस्याओं पर विचार करने का अवसर प्राप्त हुआ। यूरोप के राजनीतिक नक्शे को बदलने के लिए पीडमौंट ने Úांस के साथ संधि करने का प्रयास किसा जिसके पफलस्वरूप 1858 में प्लाम्बियर्स में नेपोलियन प्प्प् और कावूर क बीच समझौता हुआ। 1852 में मध्यमार्गी-वामपंथ के साथ समझौता कर कावूर ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। मध्यमार्गी-दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी-कामपंथ के बीच हुए समणैते से कावूर को अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने में मदद मिली। कावूर ने 1855 में इस समझौते का उपयोग किया। उसने क्रीमिया यु( के लिए रत्ताज्जी से बिना शर्त समर्थन प्राप्त किया जिसके बदले उसने रत्ताज्जी के लाॅ आॅपफ कान्वेंट का समर्थन किया जिसके तहत लगभग 300 धार्मिक घरानों और पंथों को दबाकर कैथोलिक चर्च के विशेषाधिकारों पर नियंत्राण लगा दिया गया।
आरंभ में गणतंत्रावादी कावूर और पीडमौंटवासियों पर विश्वास नहीं करते थे परंतु धीरे-धीरे उन्होंने इटली के एकीकरण में पीडमौंट द्वारा निभाई जाने वाली केंद्रीय भूमिका को पहचाना। हालांकि आर्थिक दृष्टि से पीडमौंट प्रशा के समान मजबूत नहीं था परंतु इटली की क्रांति की प्रक्रिया में राजनीतिक और सैनिक दृष्टि से पीडमौंट ही सर्वाधिक सक्रिय प्रतिभागी था। मानिन ने मेजिनी क साथ संबंध तोड़ लिया था और छुट-पुट विद्रोहों क आलोचना की थी। 1848-49 के वेनेशियन गणतंत्रा के इस नेता ने पैलेवेसिनों से यह आग्रह किया कि कावूर को इटली की स्वतंत्राता में केंद्रीय भूमिका अदा करनी है। यहां तक कि गैरिबाल्डी और मेजिनी ने भी अपने-अपने ढंग से यह बात स्वीकार कर ली। हालांकि 1849 के दशक में काउंट कावूर की दृढ़ प्रतिज्ञ नीतियों और मेजिनी तथा गैरिबाल्डी के नेतृत्व में जनआंदोलनों ने मिलकर इटली का एकीकरण किया। कावूर ने सितंबर 1856 में सिसली के क्रांतिकारी ला पफैरिना से गुप्त रूप से मुलाकात की और आस्ट्रिया से होने वाले संभावित यु( में गणतंत्रावादियों का समर्थन हासिल किया। इटली में जनता की लगातार असपफलता से मेजिनी के कई समर्थकों का मोहभंग हो गया।
पीडमौंट को पूर्व क्रांतिकारियों और गणतंत्रावादियों के समर्थन को एक दिशा प्रदान करने के लिए पैलेविसिनी और ला पफेरिना ने जुलाई 1857 में इतालवी राष्ट्रीय समिति की स्थापना की। यहां तक कि 1858 के आरंभ में गैरिबाल्डी ने भी ट्यूरिन के इशारे का इंतजार करना उचित समझा और राष्ट्रीय समिति में शामिल हो गया। 1859 में पीडमौंट और आस्ट्रिया के बीच यु( हुआ। 1858 में प्लोम्बियर्स में नेपोलियन प्प्प् के साथ हुए समझौते के अनुरूप Úांस ने यह यु( में पीडमौंट की सहायता की। हालांकि 1858 में विलाÚांका के शांति समझौते से निराश होकर कावूर ने थोड़े समय के लिए पीडमौंट के प्रधानमंत्राी के पद से इस्तीपफा दे दिया था परंतु उसने मध्य इटली में भेजे गए आयुक्तों को वहीं रहने और पूर्व शासकों को पुनः बहाल किए जाने के खिलापफ जनमत तैयार करने की सलाह दी। अगस्त 1859 में कावूर ने जनता को बधाई दी कि उन्होंने शासकों को वापस नहीं आने दिया और विदेशी शक्ति की सहायता लिए बिना स्वतंत्राता प्राप्त की। 1860 में पिफर से प्रधानमंत्राी बनने पर कावूर ने मध्य इटली में अपने दूतों को आदेश दिया कि यूरोपीय मत को अपने पक्ष में करने के लिए वे यह दिखाने का प्रयत्न करें कि पीडमौंट के साथ मिलने के उनकी सभाओं के निर्णयों को जनता का समर्थन प्राप्त था। टस्कनी, डची और लिशन को इटली में शामिल करने के बदले कावूर Úांस को नाइस और सेवाय देने पर सहमत हो गया। हालांक यह भी कावूर की एह चाल थी और अंततः जनमत संग्रह के द्वारा यह निर्णय पुष्ट भी हो गया। ये जनमत संग्रह नियंत्रित एवं नियोजित थे परंतु इनमें जन-समर्थन प्राप्त करने में ‘इतालवी राष्ट्रीय समिति’ की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
अपने गृहप्रांत नाइस को Úांस को सौंपे जाने के कारण हालांकि गैरीबाल्डी दुखी था परंतु सिसली और नेपल्स के इटली का एकीकरण
1848 से 1875 तक के 25 वषों में, यूरोप में अनेक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुअए। ये राजनीतिक परिवर्तन तीन आदर्श शब्दों ‘‘स्वतंत्राता, समानता और भ्रातृत्व’’ पर आधारित थे। इन शब्दों का अर्थ था व्यक्तिगत राजनीतिक स्वतंत्राता, आर्थिक समानता और राष्ट्रीय एकता के आधार पर भ्रात्व पानी भाईचारे की भावना। इस समय इटली एक राष्ट्र नहीं, मात्रा भौगोलिक अभिव्यक्ति था और कई राज्यों में बंटा हुआ था। इटली के राष्ट्रवादी लोग बहुत समय से चाह तरे थे कि इटली के प्रायद्वीप के छोटे-छोटे निरंकुशतावादी राजे-रजवाड़े एक बड़े राज्य के रूप में समेकित हो जाएं, लेकिन इस उद्देश्य को प्राप्त करने के साधनों के बारे में सहमति नहीं बन पा रही थी। एक ओर, धार्मिक विचारधारा वाले देशभक्तों के विचार से सबसे व्यवहारिक हल यह था कि पोप की प्रधानता में इटली के राज्यों का एक संघ बना दिया जाए। दूसरी ओर, उदार राष्ट्रवादी, एक संवैधानिक राजतंत्रा का समर्थन कर रहे थे।
इतालवी राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमिµइटली में राष्ट्रवाद का उदय वस्तुतः 1830 और 1840 के दशक में हुआ जिसे शनैः शनैः व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ और अंततः 18वीं शताब्दी के अंत में इटली के एकीकारण के रूप में इसे वास्तविक अभिव्यक्ति प्राप्त हुई। इतालव राष्ट्रवाद की सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक पृष्ठभूमि ने इस राष्ट्रवादी भावना को समग्रता में अभिक्त किया।
सांस्कृतिक पृष्ठभूमिµपुनर्जागरण काल और उससे पहले से ही इटली के विचार के रूप में इटली का अस्तित्व कायम था। इतालवी भाषा को एक सौम्य और सुंदर भाषा के रूप में देखा जाता था और इतालवी राज्यों की आम सांस्कृतिक जड़ों की बात की जाती थी। होली रोमन साम्राज्य और पोप प्रथा के पतन के बाद Úांसिस्कों पेट्रार्क जैसे साहित्यकारों ने इटली के लिए साहित्यिक देशभक्ति का नेतृत्व किया। 14वीं शताब्दी में कोला दी रियान्जों ने रोम की छत्राछाया में पूरे इटली को एकीकृत करने का प्रयास किया। 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इटली के राजनीतिक क्षेत्रा पर राजनीकि वर्चस्व स्थापित करने के लिए Úांसीसी, स्विस और जर्मन सेनाओं के बीच लगातार संघर्ष चलता रहा। इन यु(ों ने शासकीय वर्गों की चेतना को प्रभावित किया।
1500 ई. के आस-पास हुए इतालवी यु(ों के दौरान उपयुक्त साहित्यिक भाषा का प्रश्न महत्वपूर्ण रूप से उभरकर सामने आया। रोग और मिलान, उर्बिनों और मनतुआ के दरबारियों के बीच बहस शुरू हुई। इस बहस में ऐसी साहित्यिक भाषा पर विचार किया जाने लगा जो बोबियों से ऊपर उठकर इटली को एक सर्वमान्य भाषा दे सके और इस प्रकार पूरे इतालवी उपमहाद्वीप को एक भाषा देने का प्रयास किया जाने लगा। इटली पर सैन्य आक्रमण होने के पफलस्वरूप एकीकृत साहित्यिक देशी भाषा के लिए अभियान शुरू हुआ। इस बहस के आरंभ से ही इतालवी भाषा में लिखे गए साहित्य को लैटिन से अग श्रेष्ठ नहीं तो उसके समकक्ष माना गया। भाषाई श्रेष्ठता के भाव ने एक राष्ट्रवादी चेतना के निर्माण में मदद की।
राजनैतिक पृष्ठभूमिµ18वीं शताब्दी के अंत में Úांसीसी क्रांति ने इतालवी राष्ट्रवाद के लिए एक आदर्श पेश किया। जिस समय लोम्बार्डी में Úांसीसी सेना का आधिपत्य था उस समय उन्होंने इटली के लिए मुक्त सरकार के सर्वोत्तम रूप विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता आयोजित की। इससे एक बहस की शुरूआत हुई जिसमें इटली की प्राचीन महिमा का गुणगान किया गया, Úांस और 1795 के इसके संविधान की प्रशंसा की गई और इतालवी पुनरूद्वार और एकीकारण की योजना बनाई गई। इस बहस ने इटली के एकीकरण के संबंध में भिन्न-भिन्न लोगों की भिन्न आकांक्षाओं को अभिव्यक्त भी किया। एक ओर जहां नरमपंथी राष्ट्रवादियों ने एकीकरण की धीमी प्रक्रिया का समर्थन किया और सिसैल्पाइन गणतंत्रा के आत्मशासित इतालवी राज्य के आदर्श को सामने रखा नहीं उग्र सुधारवादियों ने केंद्रीकरण और क्रांतिकारी राष्ट्र-राज्य का पक्ष लिया।
नेपोलियन द्वारा निर्मित इटली राज्य से भी इतालवी राष्ट्रवादी भावना को उभारने में मदद मिली किंतु 1806 में महाद्वीपीय व्यवस्था लागू होने के बाद इटली Úांस का उपनिवेश बन गया। इटली का बजट कापफी बढ़ गया और इसका आधे से अधिक हिस्सा Úांस के सैनिक खर्चे और अंशदान में खर्च होने लगा। लेकिन इसके साथ ही नेपोलियन के कानूनी नियमों और प्रांतीय व्यवस्था के कारण इटली में राष्ट्र राज्य का नया आदर्श विकसित हुआ। इटली में बु(िवाद के दौरान नौकरशाहों, मजिस्ट्रेटों, वैधानिक और वित्तीय विशेषज्ञों का उदय हुआ और इन्हें नेपोलियन व्यवस्था में कापफी महत्व मिला। हालांकि इतालवी सेना में सैनिकों की जबर्दस्ती भर्ती की गई और इसका उपयों नेपोलियन के अभियानों के लिए किया जाता था परंतु इससे भी राष्ट्रवाद की भावना उभरी। यह Úांसीसी आधिपत्य के खिलापफ एक प्रतिक्रिया थी। शाही रोम के साथ-नेपोलियन के जुड़ाव के कारण भी इटली के लेखकों ने रोमन विरासत को अस्वीकार कर दिया।
इटली में आस्ट्रिया का अधिपत्य था। नेपोलियन की पराजय के बाद आस्ट्रिया का नियंत्राण और भी मजबूत हो गया। जर्मन परिसंघ की तर्ज पर इतालवी परिसंघ के लिए मेटरनिख के प्रस्ताव का पीडमौंट तथा पोप के पराशर्मदाताओं ने विरोध किया। 1815 के बाद गुप्त संस्टाओं ने इतालवी जैकोबिन परंपराओं के समर्थकों को अपनी जोर आकर्षित किया। कार्बोनरी और अन्य गुप्त संस्थाओं का सरोकार केवल इतालवी राष्ट्रवाद से ही था। दक्षिण इटली के कार्बोनरी को 19वीं शताब्दी के क्रांतिकारी संगठनों में जनता का सबसे अधिक समर्थन प्राप्त था जो इटली के एकीकरण की बजाय नेपल्स के जनतांत्राीकरण में अधिक रूचि रखते थे। हालांकि नेपल्स में कार्बोनरी के उग्र सुधारवादी सदस्य पोप के राज्यों और पीडमौट में लोम्बार्डी और 4 इटली के अन्य भागों में क्रांति को पफैलाना चाहते थे परंतु सैनिक षडंयत्रा बहुत सपफल नहीं हुए और 1820-21 की क्रांतियों की असपफलता के बाद कापफी लोगों को देश निकाला दिया गया और उन्हें ब्रिटेन भेज दिया गया।
1830-31 की Úांतियों की असपफलता के बाद ;खासतौर पर मोडेना और बोलोग्ना मेंद्ध इटलीवासियों ने तीव्रता से यह महसूस किया कि उन्हें अपने ही प्रयत्नों पर निर्भर रहना होगा और आंदोलन की खुली विधि-अपनानी होगी। ज्यूसेप मेजिनी ने युवा इटली की शुरूआत की ओर क्रांतिकारी तानाशाही तथा आतंकवाद के कट्टरपंथी नमूने को अस्वीकार कर दिया। मेजिनी एक जनंतात्रिक राष्ट्रवादी था जिसने हमेशा परमपंथियों के संभ्रांतवाद और जैकोबिनों के क्रांतिकारी तानाशाही के आदर्श का विरोध किया। मेजिनी का राष्ट्रवाद विशिष्ट नहीं था और वे सभी राष्ट्रों की स्वतंत्राता के बाद यूरोप के संयुक्त राज्यों के उदय में विश्वास रखते थे। हालांकि वे राष्ट्रीय स्वतंत्राता के लिए जन संग्राम में विश्वास रखते थे परंतु उनका यह भी मानना था कि सार्वभौम मताधिकार मेजिनी ने जनसंग्राम में किसानों के समर्थन के महत्व को समझा परंतु इटली के गणतंत्रा कभी भी शहर और गांवों के अंतर को पाट नहीं सके।
इटली में कई राज्य थे जो Úांसीसी-आस्ट्रियाई शत्राुता के संबंध में अपनी स्वायत्तता और विशेषाधिकार सुरक्षित रखना चाहते थे। इटली में राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया इन्हीं पर आधारित थी। इसी में से एक राज्य था पीडमौंट जिसके राजा चाल्र्स उलबर्ट ने उदारवाद या देशाक्ति किसी भी पक्ष में 1840 तक अपना झुकाव नहीं प्रदर्शित किया। चाल्र्स एल्बर्ट ;1831-1849द्ध एक संकीर्णतावादी राजा था जो मेटरनिख व्यवस्था से पर हेज नहीं रखता था और इटली में क्रांति को रोकने के लिए आस्ट्रिया की पफौज का उपयोग करने में उसके सामने कोई दुविधा नहीं थी। Úांस में आल्प्स से आगे के क्षेत्रा पर भी एल्बर्ट ने अपना दावा किया था और उसने नेपल्स के राजा द्वारा प्रस्तावित इतालवी राज्यों के संघ में शामिल होने से इंकार कर दिया। 1847 में इतालवी राज्यों को एक-दूसरे के निकट लाने के प्रथम चरण के रूप में पोंप ने सीमा शुल्क संघ के निर्माण का प्रस्ताव रखा। टस्कनी का शासक लियोपोल्ड इस संघ में शामिल होने के लिए राजी हो गया किंतु पीडमौंट ने इसे नहीं माना। पोप के दूत कार्बोली बस्सि ने स्पष्ट किया कि पोप इटली की एकता के लिए नरमपंथी मांगों को स्वीकार कर क्रांतिकारियों और एकीकृत इतालवी गणतंत्रा के समर्थकों को रोकना चाहते हैं। वास्तव में इटली में वर्चस्व स्थापित करने के लिए पीडमौंट और आस्ट्रिया के बीच चल रहे संघर्ष में पोप नेतृत्व की बागडोर पीडमौंट को सौपने के लिए तैयार थे।
आर्थिक पृष्ठभूमिµजर्मनी के समान इटली का राष्ट्रीय आंदोलन मजबूत औद्योगिक बुर्जुआ वर्ग पर आधारित नहीं था। जर्मनी की तुलना में इटली के राजनीतिक एकीकरण के पहले आर्थिक एकीकरण का स्तर कापफी कम था तथा इटली के सीमा शुल्क संघ की जर्मन जाॅल्वरिन से कोई तुलना ही नहीं की जा सकती। दक्षिणी इटली का पिछड़ापन एक अन्य गंभीर आर्थिक समस्या थी। 18वीं शताब्दी और 19वीं शताब्दी के मध्य के बीच इतालवली अर्थव्यवस्था के कुछ विद्वानों का यह मानना था कि इटली में कोई एक विशिष्ट एकीकृत अर्थव्यवस्था नहीं थी। 17वीं शताब्दी के दौरान इटली की अर्थव्यवस्था में पतन आने के बावजूद वहां की स्थिति पूर्व-औद्योगिक यूरोप या अन्य महाद्वीपों के समान अल्पविकसित अर्थव्यवस्था नहीं थी।
इटली के आर्थिक और राजनीतिक विकास का विश्लेषण करते समय उत्तरी क्षेत्रा के पीडमौंट और लोम्बार्डी की समृ(ि की तुलना हमेशा एक कम आधुनिकीकृत दक्षिण क्षेत्रा से की जाती है। इटली के औद्योगीकरण और राष्ट्रवाद पर विचार करने वाल इतिहासकारों ने इटली के इस क्षेत्राीय आर्थिक असंतुलन को एकीकरण में सबस बड़ी बाधा माना है। इटली की आर्थिक विकास दर और राजनीतिक समस्याओं पर विचार करने वाले विद्वानों ने दक्षिण की समस्याओं का भी विवेचन किया था। उसके अनुसार इन असमानताओं के कारण इटली का एकीकरण होने के बाद अनेक समस्याएं सामने आईं। इतालवी राज्य ने दोहरी नीति अपनाई परंतु यह अपनी समस्याओं का समाधान भी नहीं कर सकी।
सबसे पहले 1850 क दशक में पीडमौंट में काबूर द्वारा लागू किए गए सीमा शुल्क आर व्यापार समझौते को एकीकृ राज्य में लागू किया गया। 1862-63 के Úांस क साथ हुए समुद्री और व्यापार समझौतों के बाद इंग्लिश मुक्त व्यापार के तर्ज पर सीमा शुल्क को कम किया गया। यह तर्क दिया गया कि एकीकरण के दौरान ब्रिटेन और Úांस द्वारा राजनैतिक और सैनिक सहायता देने के एवज में मुक्त व्यापार नीतियां अपनाई गई। विदेशी बाजार में इटली के निर्चात की पहुंच बढ़ाने और विदेशी पूंजी तथा औद्योगिकी को आकर्षित करने के लिए भी मुक्त व्यापार अपनाया गया। लेकिन इस तरह के प्रयासों को विशेश असपफलता नहीं मिल सकी और इटली की क्षत्राीय असंतुलन, द्वैधता, पिछड़पन आदि से जुड़ी समस्याओं को दूर नहीं किया जा सका।
धार्मिक पृष्ठभूमिµइटली के सांस्कृतिक और राजनैतिक जीवन में कैथोलिक चर्च ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इतिहासकारों और साहित्यकारों ने राष्ट्रवाद के विचार और चर्च के बीच मेल-मिलाप कराने की कोशिश की। पीडमौंट के पुरोहित विन्सेन्जो जियाबर्टी ने पोप की अध्यक्षता में इटली परिसंधा बनाने की बात की। 1846 आर 1848 की क्रांति के बीच की अवधि में जियोबर्टी और मेजिनी के विचारों में मेल होने की संभावना दीख रही थी। अप्रैल 1848 में जब पोप पायस ने कैथोलिक आस्ट्रिया क खिलापफ राष्ट्रीय यु( से अपना समर्थन वापस ले लिया तो उन्हें इटली में राष्ट्रवादी विचार का समर्थन भी खोना पड़ा। हालांकि उदारवादी कैथोलिक आंदोलन ने पाप के विरोध क बावजूद कैथोलिकवाद क साथ राष्ट्रवाद क मल-मिलाप के विचार को आगे बढ़ाने में मदद की। हालांकि 1848 में पीडमौंट क राजा की अपेक्षा पोप सीमा शुल्क संघ बनाने के लिए ज्यादा उत्सुक थे। परंतु वे जनता की चेतना का जगाने क लिए अपनी नैतिक सत्ता का उपयोग करने के पक्ष में नहीं थे। अप्रैल 1848 के उपदेश क बाद पोप ने यह घोषणा की कि वह आस्ट्रिया के साथ राजनैतिक संघ बनाने की संभावना कल्पना मात्रा रह गई। इसके जवाब में पोप के मंत्राी ने यह तर्क दिया कि पीडमौंट के विस्तार और इटली की स्वायत्तता को एक दूसरे का पर्याय नहीं माना जाना चाहिए। रोम मं हुई क्रांति और पोप के पलायन के बाद रोमन गणतंत्रा की स्थापना हुई। Úांसीसी और आस्ट्रियाई सेनाओं की मदद से पाप जून 1849 में वापस लौटने में सपफल रहा। इटली के एकीकारा के समय पोप और कैथोलिक चर्च ने संकीर्णतावादी भूमिका निभाई। सांसारिक क्षेत्रा में हारने के बाद पोप ने अपन धर्मावलंबियों को राष्ट्रीय राजनीति में भाग लेने से मना कर दिया।
एकीकरण की प्रक्रियाµकाउंट कावर के नेतृत्व में पीडमौंट-सार्डीनिया ने इटली के एकीकरण का नेतृत्व किया और इसमें मेजिनी और गैरीबाल्डी के नेत्त्व में जनसंगठन का समर्थन प्राप्त हुआ। हालांकि इस प्रक्रिया में जन-संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका थी परंतु संभ्रांत वर्ग ने जनता की भागीदारी को कम-से-कम करने का प्रयास किया। हालांकि मेजिनी को जनसंग्राम की अवधारणा में विश्वास था परंतु वह कृषकों को एकजुट करने में असपफल रहा। 1820-21, 1830-31 और 1848-49 की क्रांतियों की असपफलता के बाद गणतंत्राीय राष्ट्रवादी विचारधारा सामने आई और इटली की एकता के लिए अधिक उदारवादी कावूर के साथ समझौता किया गया। इतालवी राष्ट्रीय समाज ने 1857 से कावूर और गणतंत्राीय राष्ट्रवादियों के साथ कभी मूक तो कभी खुल समझौता किया। इसी समझौते के तहत कावूर ने एक और गैरिबल्डी को स्वतंत्राता संग्राम के सेनानियों को तैयार करने के लिए कहा और दूसरी ओर गैरिबाल्डी 1860 में ‘इटली और विक्टर इमैन्युअल’ के नेतृत्व में लड़ने के लिए राजी हुआ। वस्तुतः 1860 के आरंभ में गैरिबाल्डी में स्वयंसेवी सेनानियों को जुटाने की क्षमता थी और विक्टर इमैन्युअल और पीडमौंट की सरकार ने गुप्त रूप से नेपोलियन प्प्प् की सरकार के खिलापफ अभियान में नेतृत्व ग्रहण करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया।
प्रक्रियाµइटली में एकीकरण पूर्व के दौर में अनेक जन-आंदोलन हुए किंतु यह भी सत्य है कि सभी प्रकार के जन-आंदोलन और सामूहिक हिंसा का संबंध प्रमुख राजनैतिक संकटों से नहीं था बल्कि वह प्रत्यक्षतः भोजन के लिए हुए दंगों, हिंसक हड़तालों, कर विद्रोहों, और भूमि पर सामूहिक कब्जा किए जाने जैसी गैर-राजनीतिक घटनाओं से सम्ब( था जो संकट के वर्षों में अनियमितताओं के कारण पैदा हुई थीं।
1830 और 1840 में पिफलाडेल्पफी था युवा इटली जैसे गुप्त संगठन सक्रिय थे। 1820-21 मं क्यूरिन, नेपल्स, पैलेरमो और आल्प्स क्षेत्रों में कई विद्रोह हुए और 1828-31 के दौरान पिफर से कई विद्रोह हुए और अगले दो वर्षों तक उनका प्रभाव बना रहा। सिसली, नेपल्स, वेनिस, बोम्बार्डी और पैपेल राज्यों में स्थायी तौर पर बुर्जुआ क्रांतियां हुईं जिनमें सड़कों पर दंगे हुए, भोजन के लिए दंगा हुआ तथा भूमि संबंधी दस्तावेजों और कर कार्यालयों को नष्ट किया गया। मजदूरों और किसानों ने 1848-49 में क्रांतिकारी शासन व्यवस्थाओं के खिलापफ विद्रोह किया जो शहरों में रोटी और रेाजगार तथा ग्रामीण इलाकों में जमीन के वितरण की उनकी मांग को पूरा करने में असमर्थ रही। क्रांतिकारी शासन व्यवस्थाओं द्वारा आरोपित आदेश का बहादुरी से हिसात्मक विरोध किया गया। मध्यवर्ग अपने लिए जनतांत्रिक संविधान चाहता था। शहर में रहने वाले निर्धनों, मजदूरों, और किसानां ने उनकी कराधान और सेना में जबर्दस्ती भर्ती नीतियों का जमकर विरोध किया। 1848-49 की क्रांतियां थीं पर यह राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि सीमित क्षेत्रों तक ही सीमित थीं। इन छिट-पुट और असंयोजित विद्रोहों का पीडमौट के राजतंत्रा और स्थानीय अभिजात्य वर्गों क गठबंधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। असल समस्या यह थी कि डेमोक्रेट्स ग्रामीण इलाकों से समर्थन जुटाने में असपफल रहे। मजिनी के प्रयत्नों के बावजूद उनक विचारों का प्रभाव ग्रामीण इलाकों पर नहीं पड़ा और वे शहर और गांवों के भेद को कम करने में सपफल नहीं रहे। इसका एक कारण यह भी था कि वे उग्र सुधारवादी रूढ़िवादी पुरोहितों की अपेक्षा किसानों क कम निकट संपर्क में थे। गणतंत्रावादियों को किसानों का समर्थन इसलिए भी नहीं मिला क्योंकि उनमें देशभक्ति का संचार करने के लिए भूमिपतियों ने किसी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं दिया। 1848-49 की क्रांतियों असपफल रहीं परंतु रोम में मजिनी और गैरिबाल्डी द्वारा तथा वेनिस में मेनिन द्वारा वीरतापूर्वक गणतंत्रा की रक्षा करने से इतालवी राष्ट्रवाद और वामपंथ को बढ़ावा मिला। इटली में 1848 की क्रांतियों और गणतंत्रों की रक्षा के प्रतीकात्मक महत्व के कारण इटली के एकीकरण और राजनीतिक सुधारों पर दूरगामी प्रभाव पड़ा।
कुस्टोजा ;जुलाई 1848द्ध और नोवारा ;मार्च 1848द्ध के यु(ों की हार से उबरने में इटली को ज्यादा समय नहीं लगा। भविष्य में आस्ट्रिया से यु( की स्थिति में ब्रिटेन और Úांस का समर्थन प्राप्त करने के लिए कावूर उनके प्रतिनिधि के रूप में 1855 में क्रीमिया यु( शामिल हुआ। कावूर के सैनिक अधिकारी ने यह घोषणा की थी कि क्रामिया के गर्भ से ही इटली का जन्म होगा। हालांकि क्रीमिया यु( में शामिल होकर इटली को कोई प्रत्यक्ष लाभ तो नहीं हुआ लेकिन उसे 1856 में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी समस्याओं पर विचार करने का अवसर प्राप्त हुआ। यूरोप के राजनीतिक नक्शे को बदलने के लिए पीडमौंट ने Úांस के साथ संधि करने का प्रयास किसा जिसके पफलस्वरूप 1858 में प्लाम्बियर्स में नेपोलियन प्प्प् और कावूर क बीच समझौता हुआ। 1852 में मध्यमार्गी-वामपंथ के साथ समझौता कर कावूर ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। मध्यमार्गी-दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी-कामपंथ के बीच हुए समणैते से कावूर को अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने में मदद मिली। कावूर ने 1855 में इस समझौते का उपयोग किया। उसने क्रीमिया यु( के लिए रत्ताज्जी से बिना शर्त समर्थन प्राप्त किया जिसके बदले उसने रत्ताज्जी के लाॅ आॅपफ कान्वेंट का समर्थन किया जिसके तहत लगभग 300 धार्मिक घरानों और पंथों को दबाकर कैथोलिक चर्च के विशेषाधिकारों पर नियंत्राण लगा दिया गया।
आरंभ में गणतंत्रावादी कावूर और पीडमौंटवासियों पर विश्वास नहीं करते थे परंतु धीरे-धीरे उन्होंने इटली के एकीकरण में पीडमौंट द्वारा निभाई जाने वाली केंद्रीय भूमिका को पहचाना। हालांकि आर्थिक दृष्टि से पीडमौंट प्रशा के समान मजबूत नहीं था परंतु इटली की क्रांति की प्रक्रिया में राजनीतिक और सैनिक दृष्टि से पीडमौंट ही सर्वाधिक सक्रिय प्रतिभागी था। मानिन ने मेजिनी क साथ संबंध तोड़ लिया था और छुट-पुट विद्रोहों क आलोचना की थी। 1848-49 के वेनेशियन गणतंत्रा के इस नेता ने पैलेवेसिनों से यह आग्रह किया कि कावूर को इटली की स्वतंत्राता में केंद्रीय भूमिका अदा करनी है। यहां तक कि गैरिबाल्डी और मेजिनी ने भी अपने-अपने ढंग से यह बात स्वीकार कर ली। हालांकि 1849 के दशक में काउंट कावूर की दृढ़ प्रतिज्ञ नीतियों और मेजिनी तथा गैरिबाल्डी के नेतृत्व में जनआंदोलनों ने मिलकर इटली का एकीकरण किया। कावूर ने सितंबर 1856 में सिसली के क्रांतिकारी ला पफैरिना से गुप्त रूप से मुलाकात की और आस्ट्रिया से होने वाले संभावित यु( में गणतंत्रावादियों का समर्थन हासिल किया। इटली में जनता की लगातार असपफलता से मेजिनी के कई समर्थकों का मोहभंग हो गया।
पीडमौंट को पूर्व क्रांतिकारियों और गणतंत्रावादियों के समर्थन को एक दिशा प्रदान करने के लिए पैलेविसिनी और ला पफेरिना ने जुलाई 1857 में इतालवी राष्ट्रीय समिति की स्थापना की। यहां तक कि 1858 के आरंभ में गैरिबाल्डी ने भी ट्यूरिन के इशारे का इंतजार करना उचित समझा और राष्ट्रीय समिति में शामिल हो गया। 1859 में पीडमौंट और आस्ट्रिया के बीच यु( हुआ। 1858 में प्लोम्बियर्स में नेपोलियन प्प्प् के साथ हुए समझौते के अनुरूप Úांस ने यह यु( में पीडमौंट की सहायता की। हालांकि 1858 में विलाÚांका के शांति समझौते से निराश होकर कावूर ने थोड़े समय के लिए पीडमौंट के प्रधानमंत्राी के पद से इस्तीपफा दे दिया था परंतु उसने मध्य इटली में भेजे गए आयुक्तों को वहीं रहने और पूर्व शासकों को पुनः बहाल किए जाने के खिलापफ जनमत तैयार करने की सलाह दी। अगस्त 1859 में कावूर ने जनता को बधाई दी कि उन्होंने शासकों को वापस नहीं आने दिया और विदेशी शक्ति की सहायता लिए बिना स्वतंत्राता प्राप्त की। 1860 में पिफर से प्रधानमंत्राी बनने पर कावूर ने मध्य इटली में अपने दूतों को आदेश दिया कि यूरोपीय मत को अपने पक्ष में करने के लिए वे यह दिखाने का प्रयत्न करें कि पीडमौंट के साथ मिलने के उनकी सभाओं के निर्णयों को जनता का समर्थन प्राप्त था। टस्कनी, डची और लिशन को इटली में शामिल करने के बदले कावूर Úांस को नाइस और सेवाय देने पर सहमत हो गया। हालांक यह भी कावूर की एह चाल थी और अंततः जनमत संग्रह के द्वारा यह निर्णय पुष्ट भी हो गया। ये जनमत संग्रह नियंत्रित एवं नियोजित थे परंतु इनमें जन-समर्थन प्राप्त करने में ‘इतालवी राष्ट्रीय समिति’ की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
अपने गृहप्रांत नाइस को Úांस को सौंपे जाने के कारण हालांकि गैरीबाल्डी दुखी था परंतु सिसली और नेपल्स के अभियान में उसने कावूर को साथ दिया। दक्षिण अभियान में सपफलता प्राप्त कर जब वह रोम की ओर बढ़ा तो कावूर ने उसे रोक दिया क्योंकि इससे नेपोलियन प्प्प् से टकराना पड़ता और इसका प्रतिकूल अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव पड़ता। नेपोलियन की सेनाओं से निपटने के लिए, जो अक्टूबर 1860 में कापुआ और गेएटा के किले में पीछे हर चुकी थीं, गैरिबाल्डी ने खुद पीडमौंट के राजा से दक्षिण की ओर बढ़ने का अनुरोध किया। गैरिबाल्डी के स्वयं-सेवकों की अभूतपूर्व सपफलता के कारण कावूर को संपूर्ण इटली को एकीकृत करने की प्रेरणा मिली, अभी तक उसने अपना ध्यान उत्तरी और मध्य इटली पर ही केंद्रित कर रखा था। एकीकरण की प्रक्रिया में राजा और कावूर की सत्ता को चुनौती देने और जनता को एमजुट करने के लिए हालांकि कुछ गणतंत्रावादियों ने पहले ही दक्षिण में अभियान का मन बना रखा था परंतु 1860 से पहले यह उद्देश्य पूरा न हो सका। 1859 में बिना किसी सामूहिक खून खराने के उत्तरी और मध्य इटली पर कब्जा जमा लिया गया परंतु 1860 में दक्षिण में सत्ता के हस्तांतरण में भारी हिंसा हुई।
गैरिबाल्डी के सिसली पहुंचने से पहले ही दक्षिण इटली में हिंसा भड़क उठी थी। यह हिसा बोबोन सरकार, इसकी संपत्ति और कर्मचारियों के खिलापफ केंद्रित थी। जैसे ही गैरिबाल्डी ने सिसली पर अपना नियंत्राण स्थापित किया वैसे ही हिंसा की दिशा बदल गई। गैरिबाल्डी ने मैसिनेटों को समाप्त करने काटर भूमि सुधार का वादा किया परंतु इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि उसने वहां की सेना और बुर्जुआ वर्ग से समझौता कर रखा था। बुर्जुआ वर्ग के गैरिबाल्डी से मिल जाने के बाद किसानों और मजदूरों को किसी प्रकार के न्याय मिलने या मांगों की पूर्ति होने की आशा न रही। इस प्रकार गैरिबाल्डी और राष्ट्रीय क्रांति के विरोधा में संपत्ति पर आक्रमण किया गया और जमीन पर कब्जा जमाया गया। बोर्नोन राजाओं के खिलापफ लामबंद उनके हितों का नुकसान हो रहा था। अतः सत्ता के हस्तांतरण के बाद हिंसात्मक टकराव और भी अधिक हो गया। 1861 में इतालवी राष्ट्र-राज्य के निर्माण के बाद अन्य गणतंत्रावादियों के साथ यहां तक कि गैरिबाल्डी और मेजिनी को भी दरकिनार कर दिया गया।
जहां तक इटली के एकीकरण का सवाल है, वेनेशिया और रोम का प्रश्न ज्यों का त्यों बना रहा। संभवतः नेपोलियन प्प्प् के कहने पर बैंकर इसाक पेरेरे ने यह प्रस्ताव रखा था कि 1860 के अंत तक आस्ट्रिया इटली को वेनेशिया बेच देगा। हर्जाने के तौर पर आस्ट्रिया तुर्की से बोस्निया-हर्जेगोविना खरीद सकता था। कुछ वर्षों बाद इटली के प्रधानमंत्राी ला मारमोरा ने 10 करोड़ लीरा में वेनिस खरीदने का प्रस्ताव रखा था परंतु आस्ट्रिया ने एक बार पिफर इंकार कर दिया। 1866 में आस्ट्रिया के साथ हुए यु( में इटली ने प्रशा का साथ दिया परंतु इटली की सैन्य शक्ति बहुत कारगर सि( नहीं हुई। हालांकि 1866 के यु( के दौरान किसी भी शहर में विद्रोह नहीं हुआ और वेनिस के थोड़े ही लोग गैरिबाल्डी के स्वयंसेवकों में शामिल हुए। जनमत संग्रह में संघ के पक्ष में जबर्दस्त मतदान के बाद वेनिस को इटली में शामिल कर लिया गया। रोम पर कब्जा जमाने के कई असपफल प्रयत्न हुए जिनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रयत्न 1867 में गैरिबाल्डी ने किया था। सितंबर 1870 में एक संक्षिप्त यु( के बाद इसे मिला लिया गया। इस प्रकार इटली का एकीकरण संपन्न हुआ।
डंामते व िप्जंसलµकावूर-मैजिनी-गैरिबाल्डीµइटली का एकीकरण विभिन्न विचारधाराओं एवं प्रयासों के सम्मिलित प्रयत्नों का परिणाम था जिसे कावूर, मैजिनी और गैरिबाल्डी ने अपने-अपने पक्ष से संभव बनाया। कावूर मैजिनी और गैरिबाल्डी को एकीकरण का मस्तिष्क, हृदय और तलवार कहा गया है।
कावूर जो कि पडिमोंट ;सार्डीनियाद्ध का शाही मंत्राी था जिसे राजा विक्टर इमैन्युअल प्प् ने 1852 में नियुक्त किया था। कावूर का विचार था कि यदि इटलीवासी अपने आपको कुशल एवं आर्थिक दृष्टि से प्रगतिशील साबित कर दें तो बड़ी शक्तियाँ इटली की स्वशासन की योग्यता को मान लेंगी। उसने मुक्त व्यापार, रेल निर्माण, आर्थिक विस्तार और कृषि की उन्नति के लिए काम किया। उसने एक राष्ट्रवादी समिति की भी स्थापना की और सार्डीनिया के नेतृत्व के अंतर्गत अन्य इतालवी राज्यों में इटली के एकीकरण का समर्थन करने के उद्देश्य से समाचारपत्रों के प्रकाशन के लिए मुद्रणालय स्थापित किए। कावूर को यह भी विश्वास था कि इटली का एकीकरण Úांस की सहायता से ही संभव होगा। इसलिए, कावू ने रूस के विरु( क्रीमिया के यु( में Úांस और ब्रिटेन का साथ दिया। इस कदम से इस यु( के बाद हुए शांति सम्मेलन में कावूर को इटली के एकीकरण का प्रश्न उठाने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय मंत्रा प्राप्त हुआ। यद्यपि Úांस ने कावूर के साथ धोखा दिया किंतु कावूर की कूटनीति ने जनमत संग्रह को एकीकरण के पक्ष में करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर ली। समय की मांग के अनुरूप गैरिबाल्डी के राष्ट्रवाद का उचित प्रयोग करते हुए कावूर ने एकीकरण को संभव बनाया और कम से कम हिंसा के द्वारा इटली को एकीकृत कर लिया।
ज्युसेप मेजिनी इटली का एक स्वप्न दृष्टा गणतंत्रावादी था जिसने ‘यंग इटली’ नामक संगठन की शुरूआत की तथा क्रांतिकारी तानाशाही और आतंकवाद के कट्टरपंथी नमूने को नकार कर इटली में गणतांत्रिक प्रणाली लाने के लिए युवाओं को संगठित किया। बड़ी संख्या में युवा उसके संगठन से जुड़े थे और उनसे भी अधिक लोगों पर उसका मानसिक प्रभाव था। सुधारवादी विचारधारा के मेजिनी ने वास्तव में इटली के एकीकरण तथा गणतंत्रा की स्थापना के लिए वैचारिक-हार्दिक आधार का निर्माण किया। राष्ट्रीय स्वतंत्राता के लिए जनसंग्राम में विश्वास के साथ ही मैजिनी और उसके समर्थक सार्वभौम मताधिकार पर आधारित जनतांत्रिक शासनप्रणाली के पक्षधर थे, इन्होंने ही जन-संग्राम में आम लोगों एवं कृषकों के महत्व को समझा और उन्हें जागृत करने का प्रयास किया। इन प्रयासों का लाभ कावूर को अपने व्यवहारिक कार्य में मिला।
गैरिबाल्डी एक तलवार का धनी, वीर राष्ट्रवादी था जो एकीकरण की राह की प्रत्येक बाधा को सैन्य प्रयोगों से हल करने का पक्षधर था। वह अत्यंत वीर एवं साहसी था और बावूर की भांति कूटनीति में विश्वास नहीं रखता था। उसने एवं उसके हजारों समर्थकों से बनी सेना के इटली के एकीकरण में सामने आई सैन्य जरूरतों को हल किया एवं दक्षिणी इटली में सिसली, पलेरमो और नेपल्स के राज्यों पर जीत हासिल की। अपने उत्कट राष्ट्रवाद के बावजूद गैरिबाल्डी ने समय की नाजुकता के अनुकूल गणतंत्रावाद को स्वीकार किया और अनिच्छा से ही सही, कुछ समय के लिए सार्डीनिया का नेतृत्व स्वीकार किया। इससे कावूर को सही वक्त का इंतहार करने का समय मिला और एकीकरण संपन्न हो सका।