Wednesday, 20 July 2016

क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ता गठजोड़


पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का काम अब लगभग पूरा होने वाला है। यह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के नाम से प्रसिद्ध परियोजना का हिस्सा है।
चाइना ओवरसीज पोर्ट्स होल्डिंग कंपनी के सीईओ झंग बओझांग के अनुसार, 'बंदरगाह की क्रेन लगभग तैयार हो चुकी हैं, और हम यह मानकर चल रहे हैं कि इस साल के अंत तक यह बंदरगाह पूरी क्षमता के साथ काम करने लगेगा।' अगले साल तक यह दस लाख टन कार्गों की ढुलाई का काम करने लगेगा, हालांकि इसमें से ज्यादातर सामान आयात होने वाली वह निर्माण सामग्री होगी, जिसका इस्तेमाल आर्थिक गलियारे में किया जाएगा।
बलूचिस्तान प्रांत के दक्षिण-पश्चिम का बंदरगाह शहर ग्वादर इस गलियारे का केंद्र है। इस बीच पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष ने भारत पर आरोप लगाया है कि वह चीन के सहयोग से चल रही 46 अरब डॉलर की इस परियोजना के महत्व को कम करने की कोशिश कर रहा है। आर्थिक गलियारे के प्रभाव पर हुए एक सम्मेलन में बोलते हुए सेनाध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ ने कहा कि 'मैं यहां यह ध्यान दिलाना चाहूंगा कि हमारा पड़ोसी भारत विकास की इस कोशिश को खुले तौर पर चुनौती दे रहा है... मैं इस मामले में, खासतौर पर भारत की खुफिया एजेंसी रॉ का नाम लेना चाहूंगा, जो पाकिस्तान को पूरी तरह अस्थिर करने में जुटी है।'
इस बीच भारत के खिलाफ बने चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ में एक नया मोड़ गया है। हालांकि मोदी सरकार ने चीन और पाकिस्तान, दोनों देशों से रिश्ते सुधारने की काफी कोशिश की, लेकिन दोनों मुल्कों का रुख नकारात्मक रहा। दोनों के इस रुख का कारण काफी समय से स्पष्ट है। पाकिस्तान के सैनिक और खुफिया मुख्यालय की कोई दिलचस्पी भारत से रिश्ते सुधारने में नहीं है, इसलिए उनकी कोशिश यही रही कि नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ के बीच बनती बात खत्म की जाए।
पिछले महीने पाकिस्तान के आला अधिकारियों ने यह बताया कि उन्होंने बलूचिस्तान से एक भारतीय जासूस को गिरफ्तार किया है, जिसका नाम कुलभूषण जाधव है। पाक सेना ने इस सिलसिले में एक वीडियो भी जारी किया, जिसमें जाधव कह रहा है कि वह ईरान के चाबहार में रहकर यह काम कर रहा था। इसी रुख का एक दूसरा पक्ष तब देखने को मिला, जब पठानकोट आंतकवादी हमले की जांच के लिए भारत आए पाकिस्तानी जांच दल ने यह कह दिया कि यह हमला खुद भारतीय एजेंसियों ने ही करवाया था। और इसी के तुरंत बाद नई दिल्ली में बैठे पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने घोषणा कर दी कि भारत-पाक शांति प्रक्रिया स्थगित की जाती है।
अचानक ही चीन भी यही रवैया अपनाता दिखा और दिल्ली बीजिंग के बीच आतंकवाद को लेकर जो सहयोग बनता दिख रहा था, वह जमीन पर आने से पहले ही बिखर गया। चीन इस पर अड़ गया कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को आतंकवादी घोषित किया जाना एक गंभीर मसला है। इसके बाद उसने पठानकोट आंतकवादी हमले के मुख्य षड्यंत्रकारी जैश--मुहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने की भारत की कोशिश को संयुक्त राष्ट्र में रोक दिया। जबकि पठानकोट हमले के तुरंत बाद ही अफगानिस्तान के भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमला बोला गया था और जांच में पाया गया कि उस हमले में भी जैश--मुहम्मद शामिल था। साल 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले में भी इसी संगठन के लोग शामिल थे।
पाकिस्तान में चीन से रिश्तों के बारे में कहा जाता रहा है कि ये 'हिमालय से भी ऊंचे और शहद से भी मीठे' हैं, लेकिन अब लगता है कि ये रिश्ते उस ऊंचाई को भी पार कर गए हैं। चीन के रणनीतिकार अब खुले तौर पर यह कहते हैं कि पाकिस्तान उनके देश का असली सहयोगी है। हिंद महासागर में चीन की पनडुब्बियों की आवाजाही और पाकिस्तान-चीन का संयुक्त सैन्य अभ्यास इस क्षेत्र में भारत के प्रभुत्व को चुनौती ही नहीं दे रहा, बल्कि क्षेत्र के नौसैन्य संतुलन को भी बिगाड़ रहा है। इस बीच चीन इस क्षेत्र के भूभाग की स्थिति को भी फिर से परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान में चल रही आर्थिक गलियारा परियोजना के तहत वह वहां कई नागरिक, ऊर्जा और सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं तैयार कर रहा है।
ये परियोजनाएं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित और बलटिस्तान जैसे क्षेत्रों में बनेंगी। चीन ने एक तरह से इस क्षेत्र पर पाकिस्तान के गैर कानूनी कब्जे को मान्यता दे दी है। चीन दुनिया का तीसरे नंबर का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है और उसका सबसे बड़ा खरीदार पाकिस्तान है। वह पाकिस्तान को सिर्फ परंपरागत हथियारों का निर्यात ही नहीं कर रहा, बल्कि परमाणु मिसाइल कार्यक्रम को स्थापित करने में भी उसकी मदद कर रहा है। पाकिस्तान हर तरह से यह सुनिश्चित कर रहा है कि भारत के मुकाबले पाकिस्तान की सैनिक स्थिति मजबूत बनी रहे। इसलिए चीन को पाकिस्तान में हमेशा ही एक भरोसमंद सहयोगी माना जाता है। जब भी भारत का मामला आता है, वह पाकिस्तान के साथ खड़ा हो जाता है। यहां तक कि अब वह भारत के खिलाफ आतंकवादियों के इस्तेमाल करने की पाकिस्तान की रणनीति को भी समर्थन देने लगा है।
विश्व व्यवस्था में जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है और उसके अमेरिका से रिश्ते प्रगाढ़ हो रहे हैं, चीन को पाकिस्तान की उतनी ही ज्यादा जरूरत महसूस हो रही है। दक्षिण एशिया के मामलों में चीन की पाकिस्तान के प्रति जो नीति है, यह उससे भी जाहिर हो जाता है। भारत के उभार के साथ ही चीन के लिए पाकिस्तान का महत्व बढ़ता जा रहा है। अब इस बात की संभावना नहीं है कि चीन भारत के खिलाफ पाकिस्तान के कार्ड का इस्तेमाल बंद कर देगा। यह सहयोग चीन और पाकिस्तान, दोनों के लिए फायदे का है। इस गठजोड़ ने भारत के लिए एक साथ दो मोर्चे खोल दिए हैं।

भारत और अमेरिका के बीच प्रगाढ़ होते रिश्तों के बीच चीन के लिए पाकिस्तान कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण बन गया है। अमेरिका और चीन के सत्ता संघर्ष में दक्षिण एशिया एक महत्वपूर्ण मोर्चा है। क्षेत्र का यह महत्व आने वाले समय में और बढ़ जाएगा। ऐसे में, मोदी सरकार को इन दो मोर्चों से मिल रही उस चुनौती को समझना होगा, जो अब बढ़ती ही जाएगी। नई दिल्ली को अब इन हालात से सीधे मुकाबला करना होगा।

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